जलोदर एक ऐसी स्थिति है जो कि उदरावण गुहा (पेरिटोनियम कैविटी) के अंदर विषाक्त फ्लूइड (तरल) के जमने के कारण होती है। आयुर्वेद के अनुसार, जलोदर एक प्रकार का उदर रोग है (पेट से संबंधित) जो कि मल के जमाव (विषाक्त पदार्थों) के कारण होता है।
विषाक्त पदार्थों के जमने के कारण दोष, प्राण वात (शरीर में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत), अग्नि (शरीर का अग्नि तत्व) और अपान वात (एक प्रकार का वात) में गड़बड़ी आ जाती है। जलोदर के संकेतों और लक्षणों में पेट फूलने के साथ पेट में सूजन और दर्द शामिल हैं। जलोदर का संबंध हेपेटाइटिस (लिवर में सूजन), लिवर सिरोसिस और फैटी लिवर से है। अगर शुरुआती चरण में ही इसका पता चल जाए तो आसानी से इसका इलाज किया जा सकता है। जलोदर के इलाज के लिए दवा और सर्जरी दोनों ही तरीके इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
इसके उपचार का प्रमुख कार्य पेट से विषाक्त पदार्थों को हटाना है। ऐसा पंचकर्म थेरेपी में से एक नित्य मृदु विरेचन (रोज़ हल्के रेचक का इस्तेमाल करना) की मदद से किया जाता है। पुनर्नवा जैसी जड़ी बूटियों मरीज के पेशाब में वृद्धि की जाती है।
अन्य जड़ी बूटियों जैसे कि पिप्पली और हरीतकी की भी सलाह दी जाती है। जलोदर के इलाज में आयुर्वेदिक मिश्रणों जैसे कि श्वेत पर्पटी (एक हर्बो-मिनरल मिश्रण) और आरोग्यवर्धिनी वटी (कई जड़ी बूटियों का मिश्रण) का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ गंभीर मामलों में सर्जरी की सलाह दी जा सकती है। इस बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक आहार से संबंधित नियमों का सख्ती से पालन करने और नियमित उपचार की सलाह देते हैं।