मोतियाबिंद में आंखों के लेंस में धुंधलापन होता है, जिससे देखने की क्षमता में कमी आती है। मोतियाबिंद तब होता है जब आंखों में प्रोटीन के गुच्छे जमा हो जाते हैं जो लेंस को साफ चित्र रेटिना को भेजने से रोकते हैं। रेटिना, लेंस के माध्यम से संकेतों में आने वाली रोशनी को परिवर्तित करता है। यह संकेत ऑप्टिक तंत्रिका को भेजता है, जो उन्हें मस्तिष्क में ले जाता है। मोतियाबिंद अक्सर धीरे-धीरे विकसित होता है और एक या दोनों आंखें इससे प्रभावित हो सकती हैं। इसमें फीके रंग दिखना, धुंधला दिखना, ऑब्जेक्ट के चारों ओर रोशनी दिखना, चमकदार रोशनी में देखने में परेशानी और रात को देखने में परेशानी हो सकती है।
वैसे तो मोतियाबिंद 80 साल की उम्र के बाद होता है, लेकिन ये कम उम्र में भी प्रभावित कर सकता है। रात में कम दिखाना, बार-बार कांटेक्ट लेंस या चश्मा बदलने की जरूरत पड़ना, एक आंख से कई दृश्य दिखना, रंग धुंधले दिखना, धुंधला दिखाई देखना और धूप, हैडलाइट या लैंप की रोशनी से आंखें चुंधिया जाना, मोतियाबिंद के कुछ लक्षण हैं। डायबिटीज जैसी कुछ बीमारियों में भी मोतियाबिंद हो सकता है। धूम्रपान और शराब पीने एवं धूप और पराबैंगनी किरणों में लंबे समय तक रहने की वजह से भी मोतियाबिंद का खतरा बढ़ सकता है।
डायबिटीज से बचने के लिए myUpchar Ayurveda Madhurodh डायबिटीज टैबलेट का उपयोग करे।और अपने जीवन को स्वस्थ बनाये।
मोतियाबिंद के इलाज में सर्जरी की जाती है। हालांकि, होम्योपैथी में प्राकृतिक दवाओं जैसे कि सिनेरारिआ मरिटिमा को आई ड्रॉप्स के रूप में इस्तेमाल कर मोतियाबिंद के शुरुआती चरण का इलाज किया जाता है। अन्य होम्योपैथिक दवाओं में कैल्केरिया फ्लोरिका, कास्टिकम, कोनियम मेकुलेटम, फॉस्फोरस, यूफ्रेसिया ऑफिसिनैलिस, साइलीसिया टेर्रा, सल्फर, टैलुरियम मैटालिकम और थिओसिनामीनम शामिल हैं।