एमआरआई स्कैन जो एक ब्रेन इमेजिंग तकनीक है, इसका इस्तेमाल कर वैज्ञानिकों ने 100 साल से भी ज्यादा पुराने इस रहस्य का खुलासा कर दिया है कि आखिर मलेरिया मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करता है। क्लिनिकल इन्फेक्शियस डिजीजेज नाम के जर्नल में एक नई रिसर्च प्रकाशित हुई है जिसमें वैज्ञानिकों ने पहली बार इस बात का खुलासा किया है कि सेरिब्रल मलेरिया के कारण किसी वयस्क की मौत का कारण ये है कि सेरिब्रेल मलेरिया मस्तिष्क में ऑक्सीजन की हानि को ट्रिगर करता है। 

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सेरिब्रल मलेरिया के हर 5 में से 1 मरीज की मौत हो जाती है
शोधकर्ताओं की मानें तो मलेरिया के 5 परजीवियों में से एक प्लास्मोडियम फैल्सिपैरम इंफेक्शन सबसे ज्यादा खतरनाक है और इसके कारण होने वाली बीमारी सेरिब्रेल मलेरिया बेहद गंभीर और जानलेवा बीमारी है जो ऐनाफिलीज मच्छर के काटने से होती है। सेरिब्रल मलेरिया से पीड़ित मरीजों को एंटी-मलेरिया ट्रीटमेंट देने के बावजूद हर 5 में से 1 मरीज की मौत हो जाती है और जो लोग बीमारी से बच जाते हैं उनमें भी तंत्रिका संबंधी संज्ञानात्मक (न्यूरोकॉग्निटिव) दुष्प्रभाव (आफ्टर-इफेक्ट) देखने को मिलते हैं। मलेरिया का मस्तिष्क पर क्या असर होता है इस पहेली ने पिछले 100 सालों से वैज्ञानिकों को परेशान किया है।   

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ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी को रोकने के लिए कई इलाज मौजूद हैं
सेरिब्रल मलेरिया के मरीजों में मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी या हानि को रोकने या कम करने के लिए हाइपोथर्मिया जैसे इलाज पहले से मौजूद हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि मौजूदा एंटी-मलेरिया ट्रीटमेंट के साथ ही इन न्यूरॉन्स से जुड़े मरीज के जीवित बचने की संभावना को बढ़ाने वाले दृष्टिकोण को भी जल्द ही सेरिब्रल मलेरिया से पीड़ित वयस्क मरीजों में ट्रायल किया जाएगा, इस उम्मीद से कि मरीज के बचने की संभावना को बेहतर बनाया जा सके।

2019 में 4 लाख से अधिक लोगों की मलेरिया की वजह से हुई मौत
साल 2019 में दुनियाभर में मलेरिया के करीब 22 करोड़ 90 लाख (229 मिलियन) मामले सामने आए थे और साल 2019 में ही मलेरिया की वजह से 4 लाख से अधिक लोगों की मौत भी हो गई थी। इस रिसर्च में शामिल टीम के सदस्य लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन, इस्पात जनरल हॉस्पिटल राउरकेला, हेडलबर्ग यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ कॉम्प्लेक्स मलेरिया इन इंडिया से ताल्लुक रखते हैं। शोधकर्ताओं की टीम ने सेरिब्रल मलेरिया से पीड़ित मरीजों के मस्तिष्क की निगारनी करने के लिए कटिंग-एज एमआरआई तकनीक का इस्तेमाल किया। 

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मरीजों के मस्तिष्क में हुए बदलाव की तुलना की गई
इस दौरान अनुसंधानकर्ताओं ने सेरिब्रल मलेरिया से बचे हुए मरीजों के मस्तिष्क में जो बदलाव हुआ उसकी तुलना उन विभिन्न आयु समूहों के लोगों के मस्तिष्क से की जिनकी इस बीमारी की वजह से मृत्यु हो गई थी। इस तुलना के बाद शोधकर्ताओं ने खुलासा किया कि सेरिब्रल मलेरिया के कारण ज्यादातर वयस्कों की जो मौत हुई उसका संबंध मस्तिष्क में ऑक्सीजन की गंभीर कमी या हाइपोक्सिया से था। जहां तक बच्चों की बात है तो इस स्टडी ने इससे पहले अफ्रीका में हुए रिसर्च की पुष्टि की कि मस्तिष्क में होने वाली गंभीर सूजन के कारण श्वसन रुकावट इस आयु वर्ग में मौत का सबसे कॉमन कारण है।

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एमआरआई स्कैन के जरिए ब्रेन में हुए बदलाव की मिली जानकारी
इस स्टडी के को-लीड ऑथर और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में मलेरिया पैथोजेनेसिस के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सैम वैसमर कहते हैं, "मलेरिया का ब्रेन पर क्या असर होता है, यह सवाल 100 सालों से वैज्ञानिकों के लिए पहेली बना हुआ था लेकिन अब न्यूरोइमेजिंग सुविधा के जरिए हमारे लिए यह समझना आसान हो गया है कि आखिर मरीज के मस्तिष्क के अंदर क्या चल रहा होता है।"

इस स्टडी में भारत के राउरकेला स्थित इस्पात जनरल हॉस्पिटल में सेरिब्रल मलेरिया का इलाज करवा रहे 65 मरीजों और बिना किसी जटिलता वाले मलेरिया के 26 कंट्रोल मरीजों को शामिल किया गया। इन सभी का एक खास तरह का एमआरआई स्कैन हुआ जिसके जरिए मस्तिष्क में होने वाले बदलाव के साथ ही सूजन और ऊत्तकों में पानी के अणुओं की मौजूदगी जो ऑक्सीजन की हानि का संकेत देता है को देखने की कोशिश की गई।

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रिसर्च टीम ने पाया कि जैसे-जैसे मरीज की उम्र बढ़ने लगती है ब्रेन में होने वाली सूजन में कमी आने लगती है और ये भी कि, बच्चों के विपरीत, एक ही समूह के वयस्क मरीजों में  मस्तिष्क की सूजन और मृत्यु के बीच कोई संबंध नहीं था। इसकी बजाय, गंभीर और घातक वयस्क मामलों में यह देखने में आया कि ऑक्सीजन की गंभीर कमी ने ब्रेन की सभी संरचनाओं को प्रभावित किया, उन बचे हुए लोगों की तुलना में जिनके मस्तिष्क के केवल किसी स्थानीय हिस्से में ऑक्सीजन की कमी पायी गई। 

वयस्कों में मृत्यु के स्पष्ट कारण की पहचान करने में मिली मदद
डॉ वैसमर आगे कहते हैं, "बीते कई वर्षों से, वैज्ञानिकों ने सेरिब्रल मलेरिया की पैथोलॉजी को समझने के लिए अटॉप्सी रिपोर्ट (शव परीक्षण) पर ही भरोसा किया है, लेकिन ये रिपोर्ट आपको जीवित और मृत लोगों के बीच तुलना करने की अनुमति नहीं देती। न्यूरोइमेजिंग तकनीक की मदद से हमें जीवित मस्तिष्क का स्नैपशॉट देखने को मिला जिसकी मदद  से हम वयस्कों में मृत्यु के विशिष्ट कारण की पहचान करने में सक्षम हो पाए।"  

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