गर्भावस्था के पहले 6 हफ्तों के भीतर भ्रूण के हृदय का विकास होने लगता है। हृदय के विकास के साथ-साथ कुछ मुख्य रक्त वाहिकाएं जैसे एओर्टा (महाधमनी), पल्मोनरी धमनी और पल्मोनरी नसें आदि भी बननी शुरु हो जाती हैं। इस दौरान, शिशु में हृदय विकार विकसित हो सकते हैं जैसे कि हार्ट वाल्व में असामान्यता, रक्त प्रवाह में अवरोध और दिल में छेद आदि।
भ्रूण के विकसित होने के दौरान हृदय की संरचना में कोई असामान्यता होने की वजह से शिशु का जन्म हृदय संबंधी विकृति (हृदय दोष) के साथ हो सकता है। इस स्थिति को जन्मजात हृदय रोग (कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज) कहा जाता है। हर मरीज में इस स्थिति की गंभीरता भिन्न होती है। अगर शिशु की स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर हो तो उसकी कई सालों तक सर्जरी चलती है। इसमें एक सर्जरी करने के बाद जब घाव भर जाता है तब दूसरी सर्जरी की जाती है। जन्मजात हृदय रोग भी कई प्रकार से हो सकता है, जो निर्भर करता है कि हृदय में किस जगह पर विकृति हुई है।
हृदय कैसे काम करता है?
हृदय में दो चैंबर बाईं तरफ और दो चैंबर दाईं तरफ होते हैं। दाहिनी तरफ के चैंबर पल्मोनरी धमनियों के जरिए फेफडों में खून पंप करते हैं। खून फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर पल्मोनरी नसों के जरिए हृदय के बाईं तरफ पहुंचाता है। इसके बाद बाईं तरफ के चैंबर एओर्टा के ज़रिए खून को पंप करके उसे पूरे शरीर में प्रवाहित करता है। भ्रूण के विकसित होने के दौरान इस प्रक्रिया में किसी प्रकार की खराबी आने पर जन्मजात हृदय रोग हो सकता है।
जन्मजात हृदय रोग के लक्षण
यदि हृदय विकार बहुत ज्यादा बढ़ गया है या गंभीर है तो इसके लक्षण शिशु के जन्म लेने के तुरंत बाद या फिर कुछ महीनों के भीतर दिखने शुरु हो जाते हैं। जन्मजात हृदय रोग से ग्रस्त बच्चे का रंग हल्का भूरा या फिर उसकी त्वचा का रंग नीला (सायनोसिस) भी हो सकता है। जन्मजात हृदय रोग से ग्रस्त बच्चे को स्तनपान करते समय सांस लेने में दिक्कत होने के साथ सांस फूलने की परेशानी हो सकती है।
इसके अलावा, बच्चे का पैर, पेट और आंखों के आस-पास की त्वचा में सूजन आ सकती है।
हृदय संबंधी कुछ अन्य दोष भी हैं, जिनके लक्षणों का पता नहीं लग पाता है और इसकी वजह से बचपन में इस स्थिति का परीक्षण नहीं हो पाता है। हृदय विकार के कम गंभीर होने पर शिशु को सांस लेने में दिक्कत या थकान या व्यायाम करने या फिर अन्य किसी शारीरिक गतिविधि के दौरान बेहोशी हो सकती है। इतना ही नहीं बच्चे के हाथ, टखने या पैरों में सूजन भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में जल्द से जल्द बच्चे को डॉक्टर के पास लेकर जाएं।
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जन्मजात हृदय रोग के कारण
कई कारणों से हृदय में असामान्यताएं आ सकती हैं। इसमें हृदय की दीवारों में छेद होना, प्रमुख रक्त वाहिकाओं या हार्ट वाल्व की रक्त वाहिकाओं का असामान्य रूप से विकसित होना और हृदय का पूरी तरह से विकसित न हो पाना आदि शामिल है। इतना ही नहीं ये सभी विकार एक साथ भी हो सकते हैं। भ्रूण के विकास की गति को जांचने के लिए डॉक्टर आनुवंशिक परीक्षण (जेनेटिक टेस्ट) करवाने की सलाह दे सकते हैं।
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बच्चे के हृदय के विकास में आने वाली असामान्यताओं के कारण ज्यादातर जन्मजात हृदय रोग होते हैं। हालांकि, अनुवांशिक व पर्यावरण संबंधी जोखिम कारक भी जन्मजात हृदय रोग का कारण बन सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से रूबेला (जर्मन मीजल्स), डायबिटीज, गर्भावस्था में ली जाने वाली दवाएं या अन्य किसी बीमारी की दवाएं, अनुवांशिक कारक, गर्भावस्था में शराब या धूम्रपान करना शामिल हैं।
जन्मजात हृदय रोगों से बचाव के उपाय
इसलिए बच्चे में जन्मजात हृदय रोग के विकसित होने के खतरे को कम करने के लिए बचाव के कुछ उपाय करना जरूरी है।
गर्भधारण करने से पहले डॉक्टर से रूबेला टीकाकरण के बारे में बात करें। यदि आपको डायबिटीज या मिर्गी संबंधी कोई अन्य बीमारी है तो आपको अपने डॉक्टर से इन दवाओं से जुड़े जोखिमों के बारे में बात करनी चाहिए, ताकि शिशु में हृदय दोष के खतरे को कम किया जा सके। हानिकारक केमिकलों खासतौर पर पेंट और साफ-सफाई करने वाले प्रोडक्ट में पाए जाने वाले केमिकल्स को सूंघने से बचें।। साथ ही गर्भावस्था के दौरान शराब व धूम्रपान से भी दूर रहें।
गर्भावस्था में डॉक्टर की सलाह पर रोजाना 400 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड लेने से बच्चे में जन्मजात हृदय रोग का खतरा कम किया जा सकता है। जन्मजात हृदय रोग से ग्रस्त बच्चे के माता पिता को इस बीमारी से जुड़े कारणों और खतरों के बारे में जानकारी रखनी चाहिए। आज मेडिकल के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास होने की वजह से परीक्षण व इलाज बहुत बेहतर हो चुका है। इसकी मदद से जन्मजात ह्रदय रोग से ग्रस्त बच्चा सामान्य जीवन जी सकता है।
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