आयुर्वेद में खांसी को कास कहा गया है। खांसी अपने आप में एक विकार या किसी बीमारी जैसे कि ब्रोंकाइल अस्थमा, टीबी आदि के लक्षण के रूप में हो सकती है। श्वसन मार्ग में लगातार हो रही किसी परेशानी की वजह से बार-बार खांसी आती है।
आयुर्वेद में खांसी के लिए सामान्य तौर पर स्नेहन (तेल लगाने की विधि), वमन कर्म (औषधियों से उल्टी) और विरेचन कर्म (दस्त लाने की विधि) की सलाह दी जाती है। विभिन्न प्रकार की खांसी को नियंत्रित करने के लिए जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें पिप्पली, अदरक, यष्टिमधु (मुलेठी), कंटकारी (छोटी कटेरी), तुलसी, आमलकी, विभीतकी, वासा (अडूसा), हरीद्रा (हल्दी), सितोपलादि चूर्ण, कंटकारी घृत, कफकेतु रस, एलादि वटी, पिप्पल्यादि वटी और शहद के साथ त्रिकटु चूर्ण शामिल हैं।
- आयुर्वेद के दृष्टिकोण से खांसी - Ayurveda ke anusar Khansi
- खांसी का आयुर्वेदिक इलाज - Khansi ka ayurvedic ilaj
- खांसी की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Cough ki ayurvedic dawa aur aushadhi
- आयुर्वेद के अनुसार खांसी होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Khansi me kya kare kya na kare
- खांसी के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Cough ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
- खांसी की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Khansi ki ayurvedic dawa ke side effects
- खांसी की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Khansi ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से खांसी - Ayurveda ke anusar Khansi
आयुर्वेद के अनुसार कास की उत्पत्ति पेट से होती है। इसमें खराब दोष को रोग पैदा करने वाली जगह पर लाया जाता है जैसे कि नाडियों द्वारा फेफड़ों या गले में। खांसी के रोगजनक में कफ दोष शामिल है।
दोष के आधार पर खांसी को पांच प्रकारों में विभाजित किया गया है जैसे कि वात, पित्त या कफ दोष और सतज (चोट के कारण हुई) और क्षयज (दस्त या कमजोरी की वजह से वजन कम होना) के कारण खांसी होना। सतज और क्षयज कास में तीनों दोषों का खराब होना शामिल है।
धूम्रपान, धूल, अत्यधिक व्यायाम, बासी भोजन और प्राकृतिक इच्छाओं को दबाने की वजह से खांसी हो सकती है। व्रत और गर्म जौ या ओटमील आदि खाने से खांसी को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि, सतज और क्षयज खांसी में व्रत नहीं रखना चाहिए। इन प्रकार की खांसी में हल्के खाद्य पदार्थ जैसे कि सूप पीने से खांसी को नियंत्रित किया जा सकता है।
(और पढ़ें - सूप पीने के फायदे)
खांसी का आयुर्वेदिक इलाज - Khansi ka ayurvedic ilaj
- स्नेहन
- स्नेहन में गर्म हर्बल तेल को पूरे शरीर पर लगाया जाता है। स्नेहन के लिए तेल का चयन रोग का कारण बने दोष के आधार पर किया जाता है।
- तेल अमा (विषाक्त पदार्थ) को ढ़ीला और उसे तरल में बदलकर जठरांत्र मार्ग में भेज देता है जहां से उसे मल के द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
- इस 3 से 7 दिन की चिकित्सा में औषधीय तेलों का इस्तेमाल किया जाता है।
- बच्चों से लेकर वृद्धों तक में खांसी के इलाज के लिए स्नेहन का प्रयोग किया जाता है। तीनों दोषों के कारण हुए रोगों को नियंत्रित करने में स्नेहन मदद करता है।
- बहुत ज्यादा दुर्बल या मजबूत पाचन शक्ति और मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को स्नेहन की सलाह नहीं दी जाती है। (और पढ़ें - कमजोरी कैसे दूर करें)
- वमन कर्म
- वमन कर्म में पेट की सफाई और नाडियों से अमा (विषाक्त पदार्थ) को बाहर निकाला जाता है। (और पढ़ें - पेट साफ करने के तरीके)
- खांसी के अलावा वमन का इस्तेमाल बुखार, दस्त, सिर और साइनस, पल्मोनरी टीबी और त्वचा रोगों के इलाज में भी किया जाता है। (और पढ़ें - साइनस का आयुर्वेदिक इलाज)
- इसमें व्यक्ति को उल्टी लाने के लिए दो प्रकार की जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। पहले उल्टी लाने वाली जड़ी बूटियां दी जाती हैं और उसके बाद उल्टी के लिए दी गई जडी़ बूटियों के असर को बढ़ाने वाली जड़ी बूटियां दी जाती हैं।
- जैसा कि हमने बताया कि खांसी की शुरुआत पेट से होती है और पेट से दोष को खत्म करने में वमन का प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि, सतज (चोट के कारण हुई खांसी) को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। क्षयज कास में भी इससे बचना चाहिए।
- गर्भवती महिलाओं, बच्चों और वृद्धों को भी इसकी सलाह नहीं दी जाती है। ज्यादा कमजोर, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर, आंतों में कीड़े, यूरिनरी रिटेंशन (मूत्राशय का पूरी तरह से खाली न हो पाना) और पेट का फूलना या प्लीहा के मरीज़ को वमन कर्म से बचना चाहिए।
- विरेचन कर्म
- ये पंचकर्म थेरेपी में से एक है जिसमें रेचक (जुलाब वाली औषधियां या जड़ी बूटियां) जैसे कि सेन्ना और रूबर्ब का इस्तेमाल किया जाता है एवं पित्ताशय, लिवर और छोटी आंत से अतिरिक्त पित्त को हटाया जाता है। इन रोगों में अतिरिक्त बलगम, वसा और पित्तरस होता है इसलिए विरेचन कर्म कफ रोगों को नियंत्रित करने में भी उपयोगी है। (और पढ़ें - बलगम साफ करने के नुस्खे)
- खांसी के अलावा इससे कई रोगों जैसे कि जीर्ण (पुराना) बुखार, पेट में ट्यूमर और पेट के फूलने की समस्या को भी नियंत्रित किया जा सकता है। (और पढ़ें - पेट फूल जाए तो क्या करें)
खांसी की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Cough ki ayurvedic dawa aur aushadhi
खांसी के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
- पिप्पली
- पिप्पली पाचन, प्रजनन और श्वसन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, कफ निस्सारक (बलगम साफ करने वाले), वायुनाशक और कृमिनाशक गुण मौजूद हैं।
- वात प्रकृति वाले व्यक्ति पर पिप्पली को उपयोगी पाया गया है। कई रोगों जैसे कि खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, जुकाम, मिर्गी, पेट फूलना, गठिया और साइटिका के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जाता है। पिप्पली शरीर से अमा को हटाने में उपयोगी है।
- पिप्पली के कारण शरीर में पित्त बढ़ सकता है इसलिए इसका इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
- अदरक
- अदरक पाचन और श्वसन प्रणाली पर कार्य करती है। ये उल्टी, गले में खराश, गला बैठने और दर्द को नियंत्रित करने में मदद करती है। ये पाचक, वायुनाशक और कफ निस्सारक भी है। वात प्रकार की खांसी को ठीक करने के लिए इसका इस्तेमाल घी के साथ करना चाहिए।
- तीनों दोषों को संतुलित करने के लिए विभिन्न अन्य जड़ी बूटियों के साथ इस चमत्कारिक औषधि का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- बुखार, ब्लीडिंग विकार और अल्सर से ग्रस्त व्यक्ति में अदरक का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए क्योंकि इससे पित्त बढ़ सकता है। (और पढ़ें - ब्लीडिंग रोकने का तरीका)
- यष्टिमधु
- दूध या किसी अन्य जड़ी बूटी के साथ यष्टिमधु लेने पर खांसी को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
- एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-एजिंग जड़ी बूटी होने के कारण यष्टिमधु का इस्तेमाल खांसी के अलावा त्वचा की रंगत निखारने, एक्ने कम करने के लिए भी किया जा सकता है। (और पढ़ें - त्वचा की रंगत निखारने के उपाय)
- मुलेठी का इस्तेमाल 6 सप्ताह से ज्यादा नहीं करना चाहिए वरना इसके हानिकारक प्रभाव जैसे कि हाइपरटेंशन, सोडियम और वॉटर रिटेंशन (सोडियम या पानी का स्तर बढ़ना) हो सकते हैं।
- कंटकारी
- ये श्वसन और प्रजनन संबंधित विकारों को नियंत्रित करने में उपयोगी है। ये पाचक के रूप में कार्य करती है और पेट फूलने की समस्या से राहत दिलाती है। कफ निस्सारक गुणों के कारण कंटकारी खांसी को नियंत्रित करने की उत्तम औषधि है।
- कई रोगों के इलाज में कंटकारी का अकेले या अन्य जड़ी बूटियों के साथ इस्तेमाल किया जाता है। बच्चों में पुरानी खांसी को ठीक करने के लिए इसे शहद के साथ ले सकते हैं या गले की खराश के लिए बेर के रस के साथ लें।
- इस जड़ी बूटी का काढ़ा गुडुची के साथ खांसी और बुखार से राहत पाने के लिए किया जा सकता है।
- तुलसी
- तुलसी तंत्रिका, श्वसन और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। ये जीवाणुरोधक, रोगाणुरोधक और दर्द निवारक प्रभाव देती है।
- ये विभन्न प्रकार की खांसी, टीबी, अस्थमा, एलर्जिक ब्रोंकाइटिस और साइनस के कारण हुई खांसी को नियंत्रित करने में उपयोगी है। इसके अलावा ये याददाश्त और प्रतिरक्षा तंत्र के कार्य में सुधार लाती है और पहले चरण के कैंसर के लक्षणों को नियंत्रित करने में मददगार है। (और पढ़ें - याददाश्त बढ़ाने के घरेलू उपाय)
- अतिरिक्त पित्त वाले व्यक्ति को तुलसी का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
- आमलकी
- आमलकी ऊर्जादायक है और तीनों प्रकार के दोषों के कारण हुए रोगों के इलाज में उपयोगी है। ये विटामिन सी का उत्तम स्रोत है एवं इसमें जीवाणुरोधी और सूजनरोधी गुण पाए जाते हैं। आमलकी पेट और आंतों में सूजन को रोकती है। ये न सिर्फ खांसी से राहत दिलाती है बल्कि संपूर्ण सेहत को भी दुरुस्त और जल्दी ठीक होने में मदद करती है।
- खांसी के अलावा से कई प्रकार के रोगों जैसे कि आंखों और फेफड़ों में संक्रमण के इलाज में उपयोगी है।
- विभीतकी
- विभीतकी ऊर्जादायक होती है जोकि कफ और पित्त को कम और वात को बढ़ाती है। इसका प्रमुख तौर पर इस्तेमाल कफ विकारों जैसे कि खांसी और ब्रोंकाइटिस को नियंत्रित करने में किया जाता है।
- खांसी के अलावा पूरे शरीर विशेषत: लिवर और ह्रदय में लिपिड के स्तर को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। ये आंखों, आवाज और बालों को मजबूती देती है।
- वासा
- वैसे तो वासा शरीर की अनेक प्रणालियों पर कार्य करती है लेकिन ये श्वसन विकारों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख जड़ी बूटियों में से एक है।
- वासा खांसी, टीबी, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस को नियंत्रित करने में उपयोगी है। ये मूत्र विकारों, फ्लू और सभी कफ विकारों के इलाज में इस्तेमाल की जाती है।
- हरीद्रा
- ये पाचन, परिसंचरण, श्वसन और मूत्र प्रणाली से संबंधित विकारों को ठीक करने में उपयोगी है।
- खांसी को नियंत्रित करने के अलावा हरीद्रा रक्त शोधक (खून साफ करने वाली) और रक्त ऊतकों के निर्माण का भी कार्य करती है। ये अतिरिक्त बलगम बनने से रोकती है और त्वचा विकारों, अपच एवं मूत्र मार्ग में रोगों को ठीक करने में मदद करती है। (और पढ़ें - खून को साफ करने वाले आहार)
- तीव्र पीलिया और हेपेटाइटिस में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अतिरिक्त पित्त में भी इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए।
खांसी के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- सितोपलादि चूर्ण
- इसे मिश्री, वंशलोचन, छोटी पिप्पली, छोटी इलायची और दालचीनी की विभिन्न मात्रा से तैयार किया गया है।
- फ्लू के कारण हुए बुखार और श्वसन विकारों जैसे कि खांसी को नियंत्रित करने में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। फ्लू के लक्षणों से शुरुआती 3 से 4 दिनों में ही राहत मिल जाती है और फ्लू को पूरी तरह से ठीक होने में 8 सप्ताह का समय लगता है। (और पढ़ें - फ्लू का घरेलू उपचार)
- अतिरिक्त कफ के सिर तक पहुंचने पर सिरदर्द के साथ जुकाम भी हो सकता है। जुकाम और खांसी के कारण हुए सिरदर्द के इलाज में सितोपलादि चूर्ण उपयोगी है।
- कंटकारी घृत
- इसे कंटकारी और गुडुची से बनाया गया है। ये जड़ी बूटियां खांसी को नियंत्रित करने में लाभकारी हैं।
- बच्चों में जीर्ण खांसी के इलाज में इस घृत का इस्तेमाल किया जाता है। कफ रोगों में कंटकारी उपयोगी है और गुडुची पित्त रोगों को ठीक करने में मदद करती है। हालांकि, रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने वाले प्रभाव के कारण गुडुची त्रिदोष को साफ करती है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए क्या करें)
- कफकेतु रस एक ऑर्गेनोमिनरल (कार्बनिक पदार्थ और मिनरल से बना) मिश्रण है जिसका इस्तेमाल अस्थमा, साइनस, ब्रोंकाइटिस, खांसी और अन्य श्वसन विकारों को नियंत्रित करने में किया जाता है।
- कफकेतु रस में शोधिता (शुद्ध) वत्सनाभ, शोधिता टंकण, पिप्पली, शंख भस्म (शंख को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) और अदरक स्वरस (अदरक का रस) मौजूद है।
- कफकेतु रस एंटीहिस्टामिनिक (एलर्जी पैदा करने वाला रसायन हिस्माइन) के रूप में कार्य करता है और सूजन संबंधी कफ विकारों जैसे कि खांसी, ब्रोंकाइल अस्थमा और साइनस को नियंत्रित करने में मदद करता है। (और पढ़ें - साइनस में क्या खाएं)
- एलादि वटी
- एलादि वटी कई पाचन रोगों और श्वसन विकारों जैसे कि खांसी, ब्रोंकाइटिस, गले में सूजन की समस्या को नियंत्रित करने में उपयोगी है। ये वायुनाशक और सूजनरोधक के रूप में कार्य करती है।
- खांसी और ब्रोंकाइटिस के इलाज में इसे वासारिष्ट के साथ ले सकते हैं।
- पिप्पल्यादि वटी
- त्रिकटु चूर्ण
- शहद के साथ लेने पर ये खांसी और ब्रोंकाइटिस को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके अलावा वायुनाशक के रूप में कार्य करने के कारण पेट फूलने जैसे पाचन विकारों से राहत दिलाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
- कोमा और उनींदापन की स्थिति में थोड़े-से पानी में इस चूर्ण को मिलाकर नाक में डालें।
व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
आयुर्वेद के अनुसार खांसी होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Khansi me kya kare kya na kare
क्या करें
- गेहूं, मूंग दाल और पुराने चावल खाएं।
- लहसुन, हल्दी, अदरक और मिर्च को अपने आहार में शामिल करें।
- बकरी का दूध, शहद और गुनगुना पानी पीएं।
- रोज़ आमलकी और द्राक्ष खाएं।
- नियमित शारीरिक और श्वसन (सांस) से संबंधित व्यायाम जैसे कि योग एवं प्राणायाम करें।
क्या न करें
- मीठे और ठंडे खाद्य पदार्थों को न खाएं।
- अपने आहार में दही और सरसों के पत्ते शामिल न करें। (और पढ़ें - संतुलित आहार चार्ट)
- बासी भोजन और अनुचित खाद्य पदार्थ जैसे कि मछली के साथ दूध या दूध से बना कोई अन्य खाद्य पदार्थ खाने से बचें।
- ठंडे और उमस भरे मौसम से दूर रहें। धूम्रपान, धूल-मिट्टी और धूल से भरे प्रदूषित वातावरण में भी न जाएं।
खांसी के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Cough ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
एक अध्ययन में ब्रोंकाइल अस्थमा से ग्रस्त 15 प्रतिभागियों के इलाज में वमन कर्म का प्रयोग किया था। इस बीमारी से ग्रस्त मरीज़ों में खांसी, सांस फूलने और श्वास नलियों सूजन जैसे लक्षण पाए गए। वमन कर्म के लिए इक्ष्वाकु क्षीर योग का इस्तेमाल किया गया था और इसके इस्तेमाल से तीनों लक्षणों में सुधार पाया गया। वमन कर्म से शरीर में खराब हुए कफ को हटा दिया गया और वात में आ रही रुकावट को साफ कर दिया गया। इस प्रकार प्रतिभागियों को ब्रोंकाइल अस्थमा के लक्षणों से राहत मिली और उनकी स्थिति में सुधार आया।
(और पढ़ें - काली खांसी के लक्षण)
एक अन्य चिकित्सकीय अध्ययन में वातज कास से ग्रस्त 30 प्रतिभागियों को 14 दिनों तक पिप्पल्यादि वटी दी गई। इस बीमारी में गले बैठना, छाती में दर्द, सूखी खांसी, सिरदर्द और छाती के आसपास वाले हिस्सों में दर्द जैसे लक्षण देखे गए। पिप्पल्यादि वटी से 70 प्रतिशत प्रतिभागियों की स्थिति में सुधार पाया गया।
खांसी की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Khansi ki ayurvedic dawa ke side effects
प्राचीन समय से ही खांसी को नियंत्रित करने के लिए उपरोक्त जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। ये सभी जड़ी बूटियां और औषधियां प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त हैं और खांसी को नियंत्रित करने में असरकारी हैं। इन्हें खांसी के रोग और किसी अन्य रोग के लक्षण के रूप में हुई खांसी के इलाज में प्रभावकारी पाया गया है। इन औषधियों के अनुचित इस्तेमाल के कारण हानिकारक प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं।
(और पढ़ें - बच्चों में खांसी का इलाज)
आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर ही आयुर्वेदिक उपचार, औषधियों के मिश्रण और जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करना चाहिए। चिकित्सक खांसी का कारण बने प्रधान दोष की जांच करने के बाद व्यक्ति को उचित औषधि की सलाह देते हैं। उदाहरण के तौर पर, पित्त प्रधान वाले व्यक्ति को पिप्पली और तुलसी का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए। ब्लीडिंग संबंधित विकार और अल्सर से ग्रस्त व्यक्ति को अदरक के इस्तेमाल में सावधानी बरतनी चाहिए।
(और पढ़ें - खांसी में क्या खाएं)
खांसी की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Khansi ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
खांसी कई रोगों का लक्षण है जिसमें टीबी, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी आदि शामिल हैं। कभी-कभी खांसी अपने आप में भी एक रोग के रूप में हो सकती है। जीवन की अच्छी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए खांसी को उचित तरीके से नियंत्रित करना आवश्यक है।
(और पढ़ें - सूखी खांसी या ज्यादा खांसी होने पर क्या करे)
जिस दोष के कारण खांसी होती है एवं रोग की स्थिति के आधार पर ही आयुर्वेदिक चिकित्सक इलाज निर्धारित करते हैं। वैदिक काल से ही उपचार, जड़ी बूटियों और औषधियों के इस्तेमाल की सलाह दी जा रही है एवं खांसी के इलाज में इन्हें असरकारी पाया गया है। ये खांसी को जड़ से खत्म करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करते हैं।
(और पढ़ें - खांसी के लिए घरेलू उपाय)
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संदर्भ
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