डिमेंशिया एक मानसिक विकार है जो कि सोचने और याद रखने की क्षमता को प्रभावित करता है। इस बीमारी से ग्रस्त होने पर व्यक्ति को रोजमर्रा के काम भी याद नहीं रह पाते हैं और उसकी मानसिक क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है एवं व्यक्ति अपनी भावनाओं को भी नियंत्रित नहीं कर पाता है। ये विकार ज्यादातर बुजुर्ग लोगों में देखा जाता है, खासतौर पर 85 वर्ष की उम्र के बाद। डिमेंशिया को एजिंग यानी उम्र बढ़ने का एक हिस्सा मान लिया जाता है जो कि सही नहीं है।
ऐसा न्यूरॉन यानी मस्तिष्क की कोशिकाओं में गड़बड़ी के कारण होता है। जब मस्तिष्क की स्वस्थ तंत्रिका कोशिकाएं मस्तिष्क की अन्य कोशिकाओं से संपर्क खो देती हैं या उनके साथ काम करना बंद कर देती हैं तब डिमेंशिया की स्थिति उत्पन्न होती है।
मस्तिष्क में किस तरह का बदलाव हो रहा है, इसी पर डिमेंशिया के कारण निर्भर करते हैं। डिमेंशिया के शिकार हुए अधिकतर वृद्धों में अल्जाइमर रोग देखा गया। अल्जाइमर को डिमेंशिया का सबसे सामान्य कारण माना जाता है।
लेवी बॉडीज डिमेंशिया, वैस्कुलर डिमेंशिया, पार्किंसंस रोग, फ्रंटोटेमपोरल डिमेंशिया और मिश्रित डिमेंशिया इसके कुछ प्रकार हैं। किसी व्यक्ति में एक ही प्रकार का डिमेंशिया होता है तो कुछ लोगों में दो या इससे ज्यादा प्रकार का डिमेंशिया होता है। इस स्थिति को मिश्रित डिमेंशिया कहा जाता है।
डिमेंशिया की समस्या पैदा करने वाले सभी कारणों को ठीक नहीं किया जा सकता है। हालांकि, होम्योपैथिक थेरेपी से इस बीमारी के बढ़ने की गति को धीमा करने में मदद मिल सकती है। लक्षणों के आधार पर ही मनोभ्रंश की दवाइयां लिखी जाती हैं।
डिमेंशिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली सबसे सामान्य होम्योपैथी दवाओं में ऐगारिकस मस्केरियस, बेलाडोना, कैलकेरिया फॉसफोरस, हायासाइमस नाइजर, मरक्यूरियस सॉल्युबिलिस, लिलिअम टिग्रिनम, ओपिअम और एनाकार्डियम ओरियन्टेल का नाम शामिल है।