आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कान के मैल यानी ईयरवैक्स में स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल होता है जिसकी मदद से मानसिक सेहत से जुड़ी कई समस्याओं को डायग्नोज करने में मदद मिल सकती है। एक नई स्टडी में यह दावा किया गया है कि कान के मैल में मौजूद कोर्टिसोल के लेवल को आसानी से मॉनिटर किया जा सकता है जिसकी मदद से यह पता चल सकता है कि कोई व्यक्ति कितना ज्यादा तनावग्रस्त है या फिर उसे कितना डिप्रेशन है।
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कान के मैल में होता है स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल
ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) और किंग्स कॉलेज लंदन के अनुसंधानकर्ताओं ने इस बात की खोज की कान के मैल में पाया जाने वाला स्ट्रेस हार्मोन अपेक्षाकृत स्थिर था और इसलिए एक्सपर्ट्स ने एक ऐसा उपकरण तैयार किया है जो कान से सैंपल लेकर बेहद जल्दी, कम खर्च में और असरदार तरीके से उस ईयरवैक्स की जांच कर सकता है। इस नए उपकरण को बिना किसी डॉक्टर या क्लिनिकल देखरेख के घर पर ही आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।
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कोर्टिसोल को डिप्रेशन का संभावित बायोमार्कर माना जाता है
इस स्टडी को हेलियॉन नाम के जर्नल में प्रकाशित किया गया है और इस स्टडी के प्रमुख ऑथर डॉ ऐन्ड्रेस हेरेन-वाइव्ज ने बताया कि कर्ण नलिका (ईयर कैनाल) के आसपास जो तैलीय स्त्राव होता है उसमें पर्याप्त मात्रा में स्ट्रेस हार्मोन पाया जाता है जिससे डिप्रेशन और मनोरोग संबंधी कई दूसरी स्थितियों को डायग्नोज करने में मदद मिल सकती है। रिसर्च टीम के मुताबिक, कोर्टिसोल को डिप्रेशन का एक संभावित बायोमार्कर माना जाता है लेकिन इसे पूरी शुद्धता के साथ मापना मुश्किल होता है क्योंकि कोर्टिसोल का लेवल स्थिर नहीं रहता और बदलता रहता है।
अब तक बालों का सैंपल लेकर कोर्टिसोल को मापा जाता था
इस नए उपकरण को विकसित करने वाली टीम की मानें तो, "कोर्टिसोल को मापने की अब तक की सबसे कॉमन तकनीक बालों के सैंपल का इस्तेमाल करना था लेकिन इसमें भी कोर्टिसोल में कुछ समय के लिए अस्थिरता देखने को मिलती है और यह भी जरूरी नहीं है कि सभी लोगों के पास विश्वसनीय नमूने के लिए पर्याप्त बाल मौजूद हों। इतना ही नहीं कान के मैल से तुलना करें तो बालों के नमूनों की जांच करना महंगा भी है और इसमें ज्यादा समय भी लगता है। हालांकि अभी तक कान के मैल के नमूने की जांच करने के लिए कोई गैर-तनावपूर्ण या विश्वसनीय तरीका मौजूद नहीं था।"
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बाल के सैंपल की तुलना में ईयरवैक्स में मिले ज्यादा कोर्टिसोल
इस स्टडी में शामिल यूके, चिली और जर्मनी के अनुसंधानकर्ताओं को 37 लोगों ने अपने कान के मैल का सैंपल दिया। साथ ही में लोगों के बाल और खून का भी सैंपल लिया गया ताकि कोर्टिसोल को प्राप्त करने के अलग-अलग तरीकों के बीच तुलना की जा सके। इस दौरान कान के मैल के सैंपल में बाल के सैंपल की तुलना में अधिक कोर्टिसोल प्राप्त हुआ और यह नई तकनीक बेहद तेज और सस्ती भी थी।
अनुसंधानकर्ताओं ने जिस नए उपकरण का इस्तेमाल किया वह एक तरह का कॉटन स्वैब था जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया था ताकि वह कान में अंदर तक जाकर कान के मैल को इक्ट्ठा कर सके लेकिन कान के पर्दे (ईयरड्रम) को नुकसान पहुंचाए बिना।
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स्ट्रेस हार्मोन बढ़ने पर हो सकती हैं कई और समस्याएं
तनाव-प्रतिक्रिया तंत्र अगर लंबे समय तक सक्रिय रहे और कोर्टिसोल और दूसरे स्ट्रेस हार्मोन्स का ओवरएक्सपोजर हो जाए तो इसकी वजह से शरीर की बाकी प्रक्रियाएं भी गड़बड़ हो जाती हैं। इससे न सिर्फ व्यक्ति को चिंता और डिप्रेशन होने का खतरा बढ़ जाता है बल्कि पाचन से जुड़ी समस्याएं, सिरदर्द, हृदय रोग, नींद से जुड़ी समस्याएं, वजन बढ़ना, याददाश्त और ध्यान में कमी जैसी दिक्कतें भी हो जाती हैं।