कोलेस्ट्रॉल एक प्रकार का फैट है जो कि शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। ये कोशिकाओं के उत्पादन में अहम भूमिका निभाता है और कुछ हार्मोन एवं विटामिन डी बनाने में भी मदद करता है।
शरीर में अधिकतर कोलेस्ट्रॉल लिवर में बनता है। ये कुछ प्रकार के प्रोटीन (लिपोप्रोटीन) के साथ मिलकर खून में संचारित होता है। कोलेस्ट्रॉल बहुत ज्यादा होने पर धमनियों की अंदरूनी दीवारों में वसायुक्त जमाव होने लगता है, जिसके कारण धमनियों में संकुचन और ब्लॉकेज हो जाता है। इससे विभिन्न अंगों को खून की आपूर्ति कम होने लगती है। जब शरीर के प्रमुख अंगों जैसे कि हृदय और किडनी को अपर्याप्त खून की आपूर्ति होती है तब इसकी वजह से हार्ट अटैक और क्रोनिक किडनी डिजीज जैसी स्थितियां हो सकती हैं।
रक्त वाहिकाओं में तीन प्रकार का कोलेस्ट्रॉल संचारित होता है जिनका नाम एचडीएल (हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन या गुड कोलेस्ट्रॉल), एलडीएल (लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन या बैड कोलेस्ट्रॉल) और वीएलडीएल (वैरी लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन) है। एचडीएल कोलेस्ट्रॉल का हृदय पर सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है जबकि खून में एलडीएल और वीएलडीएल कोलेस्ट्रॉल का बढ़ता स्तर हृदय से संबंधित समस्याओं के खतरे में इजाफा करता है। हाई कोलेस्ट्रॉल से अन्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और सीने में दर्द का भी खतरा बढ़ जाता है।
शरीर में कोलेस्ट्रॉल कई कारणों से बढ़ सकता है। गतिहीन जीवनशैली, मोटापा, धूम्रपान, शराब का अत्यधिक सेवन, हाई कोलेस्ट्रॉल की फैमिली हिस्ट्री (मरीज और उसके परिवार के सदस्यों में रहे विकारों एवं बीमारियों का रिकॉर्ड) और डायबिटीज जैसे कुछ सामान्य जोखिम कारक हाई कोलेस्ट्रॉल से जुड़े हुए हैं। रजोनिवृत्त महिलाओं (जिनमें पीरियड्स आना बंद हो गया हो) में भी हाई कोलेस्ट्रॉल देखा जाता है। हाई कोलेस्ट्रॉल के इलाज में स्टैटिन और फाइब्रेट्स जैसी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
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हाई कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने के लिए होम्योपैथी दवाओं से विभिन्न शारीरिक प्रणालियों में संतुलन लाया जाता है। हाई कोलेस्ट्रॉल के इलाज में बैराइटा कार्बोनिका, बैराइटा म्यूरिएटिकम, कोलेस्टेरिनम, सिजिगियम जंबोलाना, प्लम्बम मेटैलिकम, ऑरम मेटैलिकम, काली कार्बोनिकम, लैचेसिस और आर्सेनिकम एल्बम का इस्तेमाल किया जाता है।