इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जो आंतों की गतिशीलता को प्रभावित करती है और दस्त एवं कब्ज के रूप में सामने आती है। इस बीमारी को आईबीएस भी कहा जाता है एवं इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को खाना पचाने में दिक्कत होती है जिस वजह से बार-बार मल त्याग करने की जरुरत पड़ती है। इसकी वजह से मल में बदबू आती है और सख्त या मुलायम मल आता है।
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आयुर्वेद में आईबीएस को ग्रहणी रोग कहा गया है। ग्रहणी का मतलब होता है भोजन को ग्रहण करके पाचन प्रक्रिया के सभी चरणों को पूरा करना एवं खाने को नीचे जाने से रोकना।
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ग्रहणी के असंतुलित होने पर जो भोजन पच नहीं पता है उसे थोड़े-थोड़े समय में मल निष्कासन की जरूरत पड़ती है। इसके लक्षणों में दस्त, कब्ज और पेट दर्द शामिल हैं। आईबीएस के मरीज़ों में डिप्रेशन, पेट फूलने, सेक्स में अरुचि, मुंह और गले में सूखापन, कानों में आवाज आने जैसे सामान्य लक्षण देखे जाते हैं।
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कुछ खाद्य पदार्थ, हार्मोंस के स्तर में उतार-चढ़ाव, स्ट्रेस या अन्य किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण ग्रहणी रोग हो सकता है। ग्रहणी रोग में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों जैसे कि शुंथि (सूखी अदरक) और चित्रक का इस्तेमाल किया जाता है। शंख वटी, जातिफलादि चूर्ण और पंचामृत पर्पटी के आयुर्वेदिक मिश्रण ग्रहणी के इलाज में मददगार हैं।
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आईबीएस से ग्रस्त व्यक्ति में दस्त और पेचिश के इलाज में विरेचन कर्म प्रभावकारी है। आईबीएस से ग्रस्त व्यक्ति को पौष्टिक, ताजा और ऑर्गेनिक (कीटनाशकों का प्रयोग किए बिना उगाए गए) खाद्य पदार्थ खाने चाहिए। थोड़े-थोड़े समय पर पर्याप्त मात्रा में खाना खाएं और तनाव से दूर रहें।