लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस या एलएएम (लैम), फेफड़ों की एक दुर्लभ बीमारी है। यह बीमारी अधिकांश उस उम्र की महिलाओं को प्रभावित करती है जो बच्चे को जन्म दे सकती हैं। अमेरिका के नैशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टिट्यूट (एनएचएलबीआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों को एलएएम रोग होता है उनमें कुछ विशेष अंगों या ऊतकों में खासकर फेफड़े, लिम्फ नोड्स (लसीका ग्रंथि) और किडनी में असामान्य मांसपेशी जैसी कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास होने लगता है।
धीरे-धीरे समय के साथ, ये एलएएम कोशिकाएं फेफड़ों के स्वस्थ ऊतकों को नष्ट कर सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप फेफड़ों में सिस्ट यानी गांठ बनने लगती है जिसकी वजह से फेफड़ों में हवा के स्वतंत्र रूप से अंदर आने और बाहर जाने की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है। इस कारण शरीर के बाकी हिस्सों में ऑक्सीजन की आपूर्ति भी बाधित हो सकती है।
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जैसा कि पहले ही बताया गया है कि लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस (एलएएम) रोग विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है। अमेरिका के मेडिकल सेंटर 'क्लीवलैंड क्लीनिक' के मुताबिक आमतौर पर 20 से 40 साल की महिलाओं में यह बीमारी डायग्नोज होती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 30 फीसदी महिलाएं जिन्हें ट्यूबरस स्केलेरोसिस होता है वे एलएएम रोग से भी ग्रसित होती हैं।