लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस (एलएएम) - Lymphangioleiomyomatosis in Hindi

Dr. Nabi Darya Vali (AIIMS)MBBS

December 15, 2020

December 15, 2020

लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस
लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस

लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस या एलएएम (लैम), फेफड़ों की एक दुर्लभ बीमारी है। यह बीमारी अधिकांश उस उम्र की महिलाओं को प्रभावित करती है जो बच्चे को जन्म दे सकती हैं। अमेरिका के नैशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टिट्यूट (एनएचएलबीआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों को एलएएम रोग होता है उनमें कुछ विशेष अंगों या ऊतकों में खासकर फेफड़े, लिम्फ नोड्स (लसीका ग्रंथि) और किडनी में असामान्य मांसपेशी जैसी कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास होने लगता है।

धीरे-धीरे समय के साथ, ये एलएएम कोशिकाएं फेफड़ों के स्वस्थ ऊतकों को नष्ट कर सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप फेफड़ों में सिस्ट यानी गांठ बनने लगती है जिसकी वजह से फेफड़ों में हवा के स्वतंत्र रूप से अंदर आने और बाहर जाने की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है। इस कारण शरीर के बाकी हिस्सों में ऑक्सीजन की आपूर्ति भी बाधित हो सकती है।

(और पढ़ें - फेफड़े खराब होने के लक्षण)

जैसा कि पहले ही बताया गया है कि लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस (एलएएम) रोग विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है। अमेरिका के मेडिकल सेंटर 'क्लीवलैंड क्लीनिक' के मुताबिक आमतौर पर 20 से 40 साल की महिलाओं में यह बीमारी डायग्नोज होती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 30 फीसदी महिलाएं जिन्हें ट्यूबरस स्केलेरोसिस होता है वे एलएएम रोग से भी ग्रसित होती हैं।

लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस के लक्षण - Lymphangioleiomyomatosis Symptoms in Hindi

इस बीमारी के सबसे कॉमन लक्षण और संकेत निम्नलिखित हैं :

  • सीने में दर्द महसूस होना जो सांस लेने पर बढ़ जाता हो
  • थकान महसूस होना
  • लगातार खांसी आना और कफ के साथ खून भी आ सकता है
  • लिम्फ नोड्स (लसीका ग्रंथि) जो आकार में सामान्य से बड़े होते हैं। ये आमतौर पर पेट या छाती में होते हैं।
  • न्यूमोथोरैक्स यानी फेफड़ों का सिकुड़ जाना। यह एक जानलेवा स्थिति है जिसे एलएएम बीमारी के संकेत और जटिलता दोनों के तौर पर देखा जा सकता है। न्यूमोथोरैक्स की समस्या तब होती है जब फेफड़ों से हवा लीक होकर फेफड़े और छाती की दीवार के बीच जो जगह है जिसे प्लूरल स्पेस कहते हैं, वहां पहुंच जाती है। ऐसे में फेफड़ों को दोबारा से फुलाने के लिए प्लूरल स्पेस में जमा हवा को हटाने की जरूरत होती है। 
  • सांस लेने में तकलीफ जो पहली बार तो तब महसूस होती है जब आप बहुत अधिक ऊर्जा वाला कोई काम करते हैं लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ नहाने या कपड़े पहनने जैसी सरल गतिविधियों के बाद भी सांस फूलने लगती है।
  • सांस लेते वक्त घरघराहट या सीटी बजने जैसी आवाज आना
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लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस के कारण - Lymphangioleiomyomatosis Causes in Hindi

लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस (एलएएम) बीमारी दो जीन्स ट्यूबरस स्केलेरोसिस कॉम्पलेक्स यानी टीएससी 1 और टीएससी 2 में होने वाले परिवर्तन के परिणामस्वरुप होती है। इसके साथ ही इस बीमारी का एक आनुवंशिक रूप भी है। यह उन रोगियों को होता जिन्हें ट्यूबरस स्केलेरोसिस की बीमारी होती है। 

एलएएम का एक दूसरा रूप है जो कि ट्यूबरस स्केलेरोसिस से जुड़ा नहीं है, जिसे स्पोरैडिक एलएएम कहा जाता है। जो लोग स्पोरैडिक एलएएम से पीड़ित होते हैं, उनमें जेनेटिक म्यूटेशन्स यानी आनुवांशिक परिवर्तन भी होता है। लेकिन यह जीन म्यूटेशन वंशानुगत नहीं होता और इसलिए यह मां-बाप से बच्चों में नहीं आता है। हाालंकि जीन्स में होने वाले इस परिवर्तन का कारण स्पष्ट नहीं है।

लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस का निदान - Diagnosis of Lymphangioleiomyomatosis in Hindi

एलएएम का निदान आपके मेडिकल इतिहास और डायग्नोस्टिक टेस्ट के नतीजों पर आधारित होता है। इन परीक्षणों में :  

  • वीईजीएफ-डी ब्लड टेस्ट - इस ब्लड टेस्ट में शरीर में वीईजीएफ-डी नाम के हार्मोन के लेवल की जांच की जाती है। अगर फेफड़ों में सिस्ट हो और वीईजीएफ-डी का लेवल बहुत अधिक होता है तो बिना बायोप्सी के भी एलएएम को डायग्नोज किया जा सकता है। 
  • चेस्ट एक्सरे - एलएएम के शुरुआती स्टेज में छाती का एक्स रे सामान्य लग सकता है लेकिन जैसे-जैसी बीमारी बढने लगती है फेफड़ों में मौजूद सिस्ट को देखने के लिए कि समय के साथ उसमें कोई बदलाव हुआ है या नहीं चेस्ट एक्स रे किया जाता है। 
  • सीटी स्कैन - इसमें फेफड़ों में मौजूद सिस्ट को देखा जाता है जो इस बीमारी का मुख्य संकेत है। साथ ही इसके जरिए यह भी पता चल जाता है कि फेफड़ों में किसी तरह का फ्लूइड जमा है या नहीं।
  • लंग फंक्शन टेस्ट - इस टेस्ट में मरीज स्पाइरोमीटर (श्वसनमापी) नाम की एक मशीन में सांस लेता और छोड़ता है यह देखने के लिए आप कितनी हवा सांस के जरिए शरीर के अंदर ले रहे हैं औऱ बाहर छोड़ रहे हैं औऱ इससे फेफड़े सही तरीके से काम कर रहे हैं या नहीं इसका पता चलता है।
  • और आखिर में फेफड़ों की बायोप्सी

अपनी बीमारी और स्थिति के बेहतर डायग्नोसिस के लिए आप पल्मोनोलॉजिस्ट से संपर्क कर सकते हैं। पल्मोनोलॉजिस्ट, फेफड़ों की बीमारी के डॉक्टर होते हैं जिन्हें एलएएम से पीड़ित मरीजों की मदद कैसे करनी है, इसका अनुभव होता है।

लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस का इलाज - Lymphangioleiomyomatosis Treatment in Hindi

क्लीवलैंड क्लीनिक के मुताबिक एलएएम का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन इस बीमारी को स्थिर करने और इसे बढ़ने (खराब होने) से रोकने के लिए प्रभावी उपचार मौजूद है। 'सिरोलिमस' नाम की दवा (जिसे रैपामाइसिन या ब्रांडेड नाम रैपाम्यून के नाम से भी जाना जाता है) उन रोगियों को दी जाती है जिनके फेफड़े एलएएम के परिणामस्वरूप काम करना बंद कर देते हैं।

कुछ स्थितियों में इलाज के दूसरे विकल्पों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे

  • ऑक्सीजन थेरेपी
  • दवा को सांस के जरिए शरीर के अंदर लेना जो फेफड़ों में हवा के फ्लो को बेहतर बनाने में मदद करता है
  • छाती या फेफड़ों में जमा फ्लूइड को निकालने की प्रक्रिया
  • लंग ट्रांसप्लांट

(और पढ़ें - फेफड़ों में पानी भरने का कारण)

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पुरुषों में एलएएम के मामले - Lymphangioleiomyomatosis cases in male in Hindi

एनआईएच की रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य तौर पर लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस रोग केवल महिलाओं में पाया जाता है, लेकिन इससे जुड़े कुछ मामले पुरुषों में देखने को मिले हैं। रिपोर्ट में उदाहरण के तौर पर एक 17 वर्षीय किशोर (पुरुष) का जिक्र किया गया है। इस किशोर में न्यूमोथोरैक्स के लिए की गई सर्जरी के बाद हिस्टोपैथोलॉजिक डायग्नोसिस से लिम्फैंजियोलेओमायोमाटोसिस रोग से ग्रसित होने की पुष्टि हुई थी। यह पुरुषों में सबसे कम उम्र का मामला बताया गया है।