जो लोग मोटापे से ग्रस्त होते हैं और जिनमें डायबिटीज की भी समस्या होती है वे लोग अगर वजन कम करने वाली सर्जरी करवा लें तो उन्हें पैनक्रियाटिक यानी अग्नाशय का कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है। 20 साल तक चले एक विश्लेषण में यह बात सामने आयी है। अक्टूबर में हुए यूनाइटेड यूरोपियन गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी (यूईजी) वीक वर्चुअल 2020 में इस स्टडी को पेश किया गया। इस स्टडी के नतीजे खासतौर पर उस समय पर सामने आए हैं जब डायबिटीज, मोटापा और अग्नाशय कैंसर के मामलों की दर में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।
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अग्नाशय कैंसर के कारण 2020 में 46,200 लोगों की मौत का अनुमान
यूरोपियन यूनियन (ईयू) से जुड़े देशों में साल 1990 से 2016 के बीच अग्नाशय कैंसर के मामलों में 5 प्रतिशत की वृद्धि का पता चला, जो यूरोपियन यूनियन के शीर्ष पांच कैंसर के मामलों में हुई सबसे अधिक बढ़ोतरी है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अग्नाशय का कैंसर, कैंसर से होने वाली मौत का दूसरा सबसे प्रमुख कारण बनने वाला है। इसके अलावा, एक अनुमान के मुताबिक साल 2020 में यूरोप में अग्नाशय के कैंसर से 46 हजार 200 लोगों की मौत का अनुमान लगाया जा रहा है तो वहीं साल 2015 में इस कैंसर से 42 हजार 200 लोगों की मौत हुई थी। अग्नाशय कैंसर के मामलों में तेजी से हो रही बढ़ोतरी के लिए मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज के बढ़ते मामलों को जिम्मेदार माना जा रहा है।
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मोटापा और डायबिटीज, अग्नाशय कैंसर के सबसे अहम जोखिम कारक
अमेरिका के पिट्सबर्ग स्थित ऐलेगेनी हेल्थ नेटवर्क में गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी डिविजन के फेलो और इस स्टडी के प्रमुख लेखक असलम सईद ने एक प्रेस रिलीज में बताया, "मोटापा और डायबिटीज, अग्नाशय के कैंसर के लिए जिम्मेदार सबसे अहम जोखिम कारकों में से एक हैं क्योंकि इन दोनों कारकों की वजह से शरीर में लंबे समय तक रहने वाला (क्रॉनिक) इन्फ्लेमेशन, बॉडी फैट के कारण रिलीज होने वाला अतिरिक्त हार्मोन और ग्रोथ फैक्टर्स की समस्या हो जाती है। इससे पहले हुए अध्ययनों में पता चला कि वजन घटाने के लिए की जाने वाली बैरियाट्रिक सर्जरी डायबिटीज के मरीजों में हाई ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मदद करती है। अब हमारी इस रिसर्च से पता चला कि बैरियाट्रिक सर्जरी करवाना एक व्यवहार्य तरीका है, हाई रिस्क ग्रुप वाले डायबिटीज के मरीजों में अग्नाशय के कैंसर के जोखिम को कम करने का।"
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20 साल तक 14 लाख से अधिक मरीजों का किया गया मूल्यांकन
इस नई स्टडी में 20 साल तक 14 लाख 35 हजार 350 ऐसे मरीजों का मूल्यांकन किया गया जिन्हें डायबिटीज और मोटापे की समस्या थी। स्टडी के समय के दौरान कुल मिलाकर 10 हजार 620 मरीजों ने वजन घटाने के लिए की जाने वाली बैरियाट्रिक सर्जरी करवायी। मोटापे से ग्रस्त मरीज जिन्हें डायबिटीज की भी समस्या थी उन्होंने अगर बैरियाट्रिक सर्जरी करवायी तो उनमें अग्नाशय कैंसर विकसित होने का खतरा काफी कम हो गया था। (0.32 प्रतिशत बनाम 0.19 प्रतिशत की व्यापकता) इस स्टडी के तहत बैरियाट्रिक सर्जरी करवाने वाले 73 प्रतिशत मरीज महिलाएं थीं।
अग्नाशय कैंसर के मरीजों के जीवित रहने का औसत समय 4.6 महीना
स्टडी के ऑथर सईद समझाते हुए कहते हैं, "अग्नाशय कैंसर की बीमारी डायग्नोज होने के बाद मरीज के जीवित रहने का औसत समय केवल 4.6 महीना ही होता है और मरीज के स्वस्थ जीवन प्रत्याशा की 98 प्रतिशत हानि हो जाती है। बीमारी से पीड़ित केवल 3 प्रतिशत मरीज ही ऐसे हैं जो 5 साल से अधिक समय तक जीवित रह पाते हैं।" अग्नाशय कैंसर बीमारी को अक्सर साइलेंट किलर कहा जाता है क्योंकि इस बीमारी के लक्षणों की पहचान जल्द नहीं हो पाती और इसलिए इस बीमारी को जल्द से जल्द डायग्नोज करना मुश्किल होता है।
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बैरियाट्रिक सर्जरी अग्नाशय कैंसर के खतरे को कम कर सकती है
स्टडी के ऑथर सईद का सुझाव है कि, "जिन मरीजों में मेटाबॉलिक बीमारी जैसे- डायबिटीज और मोटापे की समस्या हो उन मरीजों को डॉक्टर को बैरियाट्रिक सर्जरी करवाने की सलाह देनी चाहिए ताकि अग्नाशय कैंसर के खतरे और बोझ को कम से कम किया जा सके।"