टांग और पेट के निचले हिस्से के बीच वाले भाग को पेल्विक कहा जाता है। इस हिस्से में कब्ज या मूत्र मार्ग में संक्रमण की वजह से दर्द हो सकता है। ये मूत्राशय के भरे होने या डिस्मेनोरिया (माहवारी में होने वाला दर्द) का भी संकेत हो सकता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को पेल्विक हिस्से में दर्द की शिकायत ज्यादा रहती है।
प्रत्येक 6 में कम से कम एक महिला को इस प्रकार का दर्द महसूस होता है। यह तेज (अचानक से) या जीर्ण (लंबे समय तक खड़े रहने) दर्द हो सकता है। अगर यह दर्द 6 महीने से ज्यादा समय तक लगातार या बीच-बीच में रहता है तो इसे क्रॉनिक पेल्विक पेन कहते हैं जो कि सामान्य दर्द की तुलना में काफी तेज होता है।
पेल्विक पेन या कुक्षी शूल के इलाज के लिए आयुर्वेदिक उपचार में से पंचकर्म थेरेपी के बस्ती (एनिमा) कर्म के साथ स्वेदन (पसीना निकालने की विधि) और प्रभावित हिस्से की मालिश की जाती है। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां जैसे कि निर्गुंडी, आमलकी (आंवला) और अरंडी के साथ औषधियों में दशमूल क्वाथ और अभ्यारिष्ट पेल्विक दर्द का कारण बनने वाली बीमारी के इलाज में मददगार हैं।
- आयुर्वेद के दृष्टिकोण से पेड़ू में दर्द - Ayurveda ke anusar pedu me dard
- पेल्विक पेन का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Pedu me dard ka ayurvedic upchar
- पेड़ू में दर्द की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Pelvic pain ki ayurvedic dawa aur aushadhi
- आयुर्वेद के अनुसार पेड़ू में दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar pedu me dard me kya kare kya na kare
- पेल्विक पेन में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Pelvic pain ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
- पेड़ू में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Pedu me dard ki ayurvedic dawa ke side effects
- पेड़ू में दर्द के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Pedu me dard ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से पेड़ू में दर्द - Ayurveda ke anusar pedu me dard
आयुर्वेद में पेल्विक हिस्से में दर्द को कुक्षी शूल कहा गया है। इसके सामान्य कारणों में डिस्मेनोरिया, पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (स्त्री प्रजनन अंगों में संक्रमण), कब्ज, मूत्र मार्ग में संक्रमण, एंडोमेट्रिओसिस, अंडाशय में गांठ (ओवेरियन सिस्ट), अपेंडिसाइटिस और इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (आंतों से संबंधित रोग) शामिल हैं। प्रोस्टेटाइटिस से ग्रस्त पुरुषों को भी पेल्विक में दर्द महसूस हो सकता है।
खानपान से संबंधित और वात बढ़ाने वाली गलत आदतों को पेल्विक पेन और एंडोमेट्रिओसिस, ओवरी में सिस्ट और डिस्मेनोरिया का प्रमुख कारण माना जाता है। वात में असंतुलन के कारण भी पेल्विक में दर्द हो सकता है। जिन महिलाओं को माहवारी के दौरान पेल्विक हिस्से में दर्द होता है उनमें उदवर्त योनि व्यपद (माहवारी की शुरुआत में तेज दर्द होना), तोड़ के साथ मासिक धर्म (चुभने वाला दर्द), भेद (किसी के काटने जैसा दर्द होना) और स्तंभ (अकड़न) शामिल है।
पेल्विक पेन का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Pedu me dard ka ayurvedic upchar
- बस्ती
- बस्ती कर्म में औषधीय काढ़े, पेस्ट या तेल को एनिमा के तौर पर बड़ी आंत में पहुंचाया जाता है।
- इस थेरेपी का अधिकतर इस्तेमाल शाम को खाली पेट किया जाता है।
- बस्ती में तेल या काढ़े से बने एनिमा का इस्तेमाल किया जाता है।
- बस्ती के बाद मरीज को मीट का सूप, चावल का मांड, गुनगुना पानी और अन्य हल्का भोज्य पदार्थ दिया जाता है।
- बस्ती कर्म डिस्मेनोरिया में उपयोगी है। पॉलीसिस्टिक ओवरी डिजीज में यूटीआई (मूत्र मार्ग में संक्रमण) और ओवरी में सिस्ट बनने की दिक्कत हो जाती है। बस्ती कर्म से पेल्विक हिस्से के कार्यों नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है।
- ओवरी में सिस्ट बनने के इलाज के लिए उत्तरा बस्ती दी जाती है। ये पेल्विक अंगों में नसों के कार्य को नियंत्रित करने में मदद करती है।
- निरुह और अनुवासन बस्ती डिस्मेनोरिया के इलाज में असरकारी है।
- स्वेदन
- इस चिकित्सा में शरीर से अकड़न, भारीपन, ठंडक को दूर करने के लिए पसीना लाया जाता है।
- चूंकि, ये पंचकर्म थेरेपी का ही एक हिस्सा है इसलिए वात प्रधान स्थितियों से निजात दिलाने के लिए प्रमुख उपचार के तौर पर स्वेदन किया जाता है।
- शरीर में विषाक्त पदार्थों को पतला कर जठरांत्र मार्ग में लाने के लिए काढ़ा और तेल दिया जाता है। यहां से अमा यानी विषाक्त पदार्थों को आसानी से बाहर निकाल लिया जाता है।
- स्वेदन कर्म से पहले शरीर को बाहरी और आंतरिक रूप से चिकना किया जाता है।
- स्वेदन डिस्मेनोरिया के इलाज में असरकारी है। इसलिए ये माहवारी के दर्द के कारण हुए पेल्विक हिस्से में दर्द से राहत दे सकती है।
- अभ्यंग (तेल मालिश)
- अभ्यंग चिकित्सा में औषधीय तेलों को प्रभावित हिस्से पर लगाया जाता है और एक विशेष दिशा में मालिश की जाती है।
- ये चिकित्सा खून में एंटीबॉडीज और सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाती है। इस प्रकार शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार लाया जाता है।
- अभ्यंग को ऊर्जादायक, सुरक्षात्मक और रक्षा करने वाली चिकित्सा के रूप में जाना जाता है।
- ये भारीपन और अकड़न को दूर कर पूरे शरीर में हल्केपन का अहसास लाता है।
- अभ्यंग बीमारियों के इलाज में मदद करने के साथ-साथ संपूर्ण सेहत में भी सुधार लाता है।
- स्वेदन में सरसर्प तेल, तिल के तेल या नारायण तेल से 15 मिनट तक पेट के निचले हिस्से की मालिश करने से डिस्मेनोरिया के कारण हुए पेडू में दर्द से राहत मिलती है।
- कब्ज के इलाज में भी अभ्यंग उपयोगी है।
- योनि पिच्छू
- योनि पिच्छू में कॉटन पैड को हर्बल तेल या औषधि में डुबोकर प्रभावित हिस्से पर लगाया जाता है।
- आयुर्वेदिक औषधि में इस्तेमाल होने वाले पिच्छू के प्रकार हैं - कटि पिच्छू (कमर पर पिच्छू लगाना), शिरो पिच्छू (सिर यानी स्कैल्प पर पिच्छू लगाना) और ग्रीवा पिच्छू (गर्दन पर पिच्छू)।
- डिस्मेनोरिया के इलाज के लिए माहवारी से पहले वजाइनल टैंपन या योनि पिच्छू को हिंगवादि तेल या गुनगुने तिल के तेल के साथ दिया जाता है।
- विरेचन
- विरेचन प्रक्रिया में बढ़े हुए वात दोष खासतौर पर पित्त और अमा को गुदा मार्ग के जरिए शरीर से बाहर निकालने के लिए जड़ी बूटियां दी जाती है।
- ये चिकित्सा कई स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि अस्थमा, जठरांत्र मार्ग से संबंधित स्थितियां, त्वचा विकारों, मिर्गी, पीलिया, दस्त और रेक्टल प्रोलैप्स के इलाज में उपयोगी है।
- विरेचन से पहले आंतरिक स्नेहन के साथ आहार में गर्म खाद्य पदार्थ दिए जा सकते हैं।
- कब्ज से राहत दिलाने में विरेचन असरकारी है। इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम का एक लक्षण कब्ज भी है इसलिए विरेचन कर्म इससे भी राहत दिलाने में मदद कर सकता है।
पेड़ू में दर्द की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Pelvic pain ki ayurvedic dawa aur aushadhi
पेडू में दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
- निर्गुंडी
- पेचिश, मूत्राशय में गड़बड़ी, रूमेटिज्म (जोड़ों] हड्डियों और कोमल उत्तकों में दर्द), त्वचा से संबंधित स्थितियां, मल में खून आने, जोड़ों में सूजन, मलेरिया, सिरदर्द और बवासीर के इलाज में निर्गुंडी का इस्तेमाल किया जाता है।
- ये दर्द निवारक, मूत्रवर्द्धक, सुगंधक, परजीवीरोधी और नसों को आराम देने वाले गुणों से युक्त है।
- निर्गुंडी एंडोमेट्रिओसिस को नियंत्रित करने में असरकारी है और इस स्थिति के कारण हुए पेडू में दर्द से राहत दिलाने में निर्गुंडी मददगार है।
- आप निर्गुंडी के पेस्ट को मीठे पानी या शहद के साथ या काढ़े, फलों के पाउडर, पुल्टिस, अपमिश्रण (अल्कोहल में दवा को घोलकर तैयार किया गया), पाउडर के रूप में या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- आमलकी
- आमलकी उत्सर्जन, परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है।
- इसमें कामोत्तेजक, नसों को आराम देने वाले, ऊर्जादायक, रेचक, संकुचक (ऊतकों को एकसाथ रखने वाले) और भूख बढ़ाने वाले गुण मौजूद होते हैं। ये ब्लड शुगर लेवल को कम और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाता है।
- हेपेटाइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस, बवासीर, मानसिक विकारों , प्लीहा की कमजोरी और डायबिटीज जैसी स्थितियों के इलाज में आमलकी उपयोगी है।
- ये यूटीआई के इलाज में मददगार है और मूत्र मार्ग में संक्रमण के कारण हुए पेडू में दर्द से राहत दिलाती है।
- आप आमलकी को मिठाई, पाउडर, काढ़े या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
- अरंडी
- अरंडी में नसों को आराम देने वाले, दर्द दूर करने वाले और रेचक (दस्त लाने वाले) गुण होते हैं। ये तंत्रिका, उत्सर्जन, मूत्र मार्ग और पाचन तंत्र पर कार्य करती है।
- ये लूम्बेगो (कमर या लंबर क्षेत्र में दर्द), लिवर बढ़ने, कब्ज, रूमेटिज्म, साइटिका, तंत्रिका विकारों, बुखार और जोड़ों में दर्द को नियंत्रित करने में असरकारी है।
- वात से संबंधित विकारों, पाचन तंत्र में गंभीर सूजन और इर्रिटेबल स्थितियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख जड़ी बूटियों में से एक अरंडी का तेल है। ये डिस्मेनोरिया से भी राहत प्रदान करता है।
- आप अरंडी को पेस्ट, ठंडे या गर्म अर्क, पाउडर के रूप या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- अतिविषा
- अतिविषा में कामोत्तेजक, पाचक और भूख बढ़ाने वाले गुण होते हैं। ये श्वसन, प्रतिरक्षा और पाचन तंत्र पर कार्य करता है।
- ये जड़ी बूटी एडिमा, बवासीर, अपच, अत्यधिक सूजन, कमजोरी, लिवर से संबंधित स्थितियों, लंबे समय से हो रहे बुखार और दस्त से राहत दिलाती है।
- ये प्रोस्टेटाइटिस के इलाज में भी लाभकारी है।
- आप अतिविषा को पाउडर, अपमिश्रण, काढ़े के रूप में या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
- मुस्ता
- प्रमुख तौर पर मुस्ता का इस्तेमाल कैंडिडा और यीस्ट इंफेक्शन के इलाज में किया जाता है।
- इसमें उत्तेजक, आमवातनाशक (गठिया-रोधी), फंगल-रोधी और भूख बढ़ाने वाले गुण होते हैं।
- पेट में सूजन (गेस्ट्राइटिस), दौरे पड़ने, मल में खून आने, डिस्मेनोरिया, स्तनों में ट्यूमर और हाई ब्लड प्रेशर जैसी स्थितियों से भी इस जड़ी बूटी के नियमित इस्तेमाल से राहत पाई जा सकती है।
- चूंकि, ये आईबीएस के एक लक्षण दस्त के इलाज में उपयोगी है इसलिए इसकी मदद से आईबीएस के कारण हुए पेडू में दर्द से भी राहत पाई जा सकती है।
- आप मुस्ता को पाउडर या काढ़े के रूप में या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
पेडू में दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- शिव गुटिका
- इसे पिप्पली, मारीच (काली मिर्च), तिल के तेल, त्वक (दालचीनी), कुटकी, शिलाजीत, शुंथि (सोंठ) इला (इलायची), नागकेसर, चीनी सहित अन्य सामग्रियों से तैयार किया गया है।
- इसमें ऊर्जादायक, दर्द निवारक और सूजन-रोधी गुण होते हैं।
- ये औषधि प्रमुख तौर पर विभिन्न योनि से संबंधित बीमारियों, प्रदर (योनि से सफेद पानी आना) और अर्बुद (ट्यूमर) के इलाज में असरकारी है।
- शिव गुटिका पेल्विक इंफ्लामेट्री डिजीज के इलाज में भी मददगार है जो कि आमतौर पर पेडू में दर्द से संबंधित है।
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- दशमूल क्वाथ
- अभ्यारिष्ट
- इस मिश्रण को 11 सामग्रियों जैसे कि पिप्पली, गुड़, विडंग, हरीतकी, आमलकी और अन्य जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है।
- ये त्वचा से संबंधित स्थितियों, बवासीर, कृमि संक्रमण, एनीमिया, हृदय रोग, बुखार और एडिमा के इलाज में असरकारी है।
- ये डिस्मेनोरिया और कब्ज के कारण हुए पेडू में दर्द से राहत भी प्रदान कर सकता है।
- चंद्रप्रभा वटी
- चंद्रप्रभा वटी को विडंग, त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण), अतिविषा, त्रिकुट (पिप्पली, शुंथि और मारीच का मिश्रण), भृंगराज और अन्य विभिन्न जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है।
- ये औषधि मुख्यत: मूत्राशय में पथरी, मूत्र असंयमिता (पेशाब न रोक पाना), जननमूत्रीय मार्ग, डायबिटीज, धातु रोग, मूत्र मार्ग में संक्रमण, एल्ब्यूमिनरिआ (पेशाब में एल्ब्यूमिन की अत्यधिक मात्रा) और ल्यूकोरिया के इलाज में असरकारी है।
- ये यूटीआई के इलाज में भी उपयोगी है।
- आप चंद्रप्रभा वटी और शहद, वृहत्यादि कषाय, दूध के साथ या डॉक्टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
व्यक्ति की प्रकृति और प्रभावित दोष जैसे कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
आयुर्वेद के अनुसार पेड़ू में दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar pedu me dard me kya kare kya na kare
क्या करें
- नहाने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल करें।
- दशमूल काढ़े के साथ, हीटिंग पैड या गर्म पानी से सिकाई करें।
- भद्रासन, शलभासन, प्राणायाम और भुजंगासन जैसे योगासन रोज करें।
- मानसिक और शारीरिक रूप से आराम करना जरूरी है।
- घी और चावल से बना सूप एवं छाछ पीएं।
- पपीता, अंगूर, अदरक, दूध, सरसों का तेल, पुदीना, गन्ना, धनिया, सरसों के बीज, मूली, तिल का तेल, हींग, सहजन, मूंगफली का तेल, दालचीनी, चिकन और मीट का सूप, काली मिर्च, जीरा और लौंग को अपने आहार में शामिल करें।
- गर्म चीजें खाएं।
क्या न करें
- ठंडी और गरिष्ठ (भारी) चीजें न खाएं जैसे कि मैदा।
- ऐसी चीजें न खाएं जिनसे कब्ज और पेट फूलने की समस्या हो सकती है जैसे कि बुहत ज्यादा मात्रा में कच्ची सब्जियां, दालें और छोले।
- अत्यधिक ठंडे तापमान से दूर रहें।
- ठंडे पानी से नहाने से बचें। (और पढ़ें - नहाने का सही तरीका)
- बहुत ज्यादा पैदल चलने और व्यायाम करने की गलती न करें।
- प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि अधोवात (पाद) और पुरिष (मल त्याग) एवं पेशाब आदि को रोके नहीं। (और पढ़ें - पेशाब रोकने के नुकसान)
पेल्विक पेन में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Pelvic pain ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
एक चिकित्सकीय अध्ययन में पेल्विक इंफ्लामेट्री डिजीज से ग्रस्त 15 महिलाओं को 60 दिनों तक दिन में दो बार शहद के साथ शिव गुटिका दी गई। उपचार के पूरा होने पर सभी महिलाओं को कमर के निचले हिस्से में दर्द, पीरियड में होने वाले दर्द और पेट दर्द से राहत मिली। इस अध्ययन में बताया गया है कि शिव गुटिका चिकित्सकीय रूप से संक्रमण को नियंत्रित और बीमारी से संबंधित लक्षणों को प्रभावी रूप से कम करता है इसलिए पेल्विक इंफ्लामेट्री डिजीज को नियंत्रित करने के लिए शिव गुटिका की सलाह दी जा सकती है।
पेड़ू में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Pedu me dard ki ayurvedic dawa ke side effects
वैसे तो आयुर्वेदिक औषधियों और उपचार का उपयोग पूरी तरह से सुरक्षित होता है लेकिन व्यक्ति की प्रकृति के आधार पर हर दवा हर इंसान के लिए उपयुक्त नहीं हो पाती है। उदाहरण के तौर पर,
- बस्ती के दौरान अमा को सही तरह से न निकाल पाने की वजह से पेट में दर्द, कान की भीतरी झिल्ली में सूजन, रिवर्स पेरिस्टालसिस (पाचन मार्ग में खाने को विभिन्न प्रोसेसिंग स्टेशनों ले जाने वाली मांसपेशियों के संकुचन में गड़बड़ी), पेट फूलने, गुर्दे के दर्द और प्रभावित हिस्से को दबाने पर दर्द हो सकता है।
- आमलकी के कारण पित्त दोष वाले व्यक्ति को दस्त की शिकायत हो सकती है।
- मुस्ता से वात असंतुलित और कब्ज हो सकती है।
- आंतों में संक्रमण, डिस्युरिया (बार बार पेशाब आना), किडनी और मूत्राशय से संबंधित समस्याएं और पीलिया की स्थिति में अरंडी के तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर एवं थकान से ग्रस्त व्यक्ति को विरेचन नहीं लेना चाहिए। अगर विरेचन ठीक से न हो और दस्त से अमा पूरी तरह से शरीर से बाहर न निकल पाए तो इसकी वजह से पेट फूलने, तेज दर्द और डिस्पनोइया (सांस लेने में दिक्कत) हो सकता है।
इसलिए हमेशा अनुभवी चिकित्सक की देखरेख में ही आयुर्वेदिक औषधियों एवं उपचारों का इस्तेमाल करना चाहिए।
(और पढ़ें - गर्भावस्था में पेल्विक दर्द का इलाज)
पेड़ू में दर्द के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Pedu me dard ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
पेडू में दर्द होना एक असहज स्थिति है जो कि यूटीआई, कब्ज और आईबीएस जैसे विभिन्न अंतर्निहित विकारों के कारण पैदा होता है। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां और औषधियां पेडू में दर्द होने के कारण कारण का इलाज कर इस दर्द को कम करती है और सेहत में सुधार लाती हैं। पंचकर्म में से स्वेदन और अभ्यंग से पेल्विक हिस्से में दर्द को कम एवं रक्त प्रवाह में सुधार लाया जाता है।
अधिकतर आयुर्वेदिक औषधियां और उपचार पूरी तरह से सुरक्षित और साइड इफेक्ट से रहित होती हैं। हालांकि, अपनी मर्जी से किसी भी जड़ी बूटी को इस्तेमाल करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें। इससे आपको जल्दी रिकवरी करने में भी मदद मिलेगी।
(और पढ़ें - पेडू में दर्द के उपाय)
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संदर्भ
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