त्वचा हमारे शरीर का एक अभिन्न अंग है, जो हमें हवा और स्पर्श को महसूस करने में भी मदद करती है। आयुर्वेद के अनुसार त्वचा रक्त धातु से बनती है एवं त्वचा विकारों को कुष्ठ रोग कहा गया है। त्रिदोष या धातु के खराब होने, दो अनुचित खाद्य या पेय पदार्थों को एक साथ खाने, बुखार, सूजन या अन्य किसी त्वचा रोग से ग्रस्त व्यक्ति के साथ बैठने, लेटने या किसी भी तरह से उसके शारीरिक संपर्क में आने के कारण त्वचा रोग जैसे कि सोरायसिस हो सकता है।
आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस को क्षुद्र कुष्ठ (लघु त्वचा रोग) में वर्गीकृत किया गया है जिसमें तीनों दोष शामिल होते हैं। और आयुर्वेद में सोरयासिस के दो प्रकार बताये गए हैं - किटिभ और एककुष्ठ।
सोरायसिस के दोनों प्रकार को ठीक करने में गुडूची (गिलोय) असरकारी है। आयुर्वेद में सोरायसिस के इलाज के लिए दो औषधियां आरोग्यवर्धिनी वटी और खदिरारिष्ट लाभकारी होती हैं। सोरायसिस को जल्दी ठीक करने के लिए जीवनशैली से संबंधित कुछ बदलाव करने होते हैं जिसमें दोष को संतुलित करने के लिए आहार में उचित बदलाव, अनुचित खाद्य पदार्थों को एक साथ न खाना (जैसे मछली के साथ दूध), प्राकृतिक इच्छाओं को दबाना और बहुत ज्यादा व्यायाम न करना एवं तनाव से दूर रहना शामिल है।
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