हमारी सेहत पर पर्यावरण का बड़ा असर पड़ता है। इसी पर्यावरण में कई सूक्ष्मजीव भी पनपते हैं, जो कई बीमारियों का कारण बनते हैं। ऐसी ही एक बीमारी है ट्रॉपिकल स्प्रू, जिसे हिंदी में संग्रहणी कहा जाता है और यह आज हम भारतीयों की जिंदगी का हिस्सा बन गई है। चलिए जानते हैं इसके बारे में -

यह बीमारी न केवल भारत में रहने वालों में हैं, बल्कि जो लोग बाहर से आकर यहां एक महीने रह लेते हैं, उन्हें भी अपनी चपेट में ले लेती है। ऐसे यात्रियों में ‘ट्रेवलर्स डायरिया’ का डर रहता है। शुक्र इस बात का है कि आजकल महामारी से ग्रस्त किसी भी देश का दौरा करने से पहले यात्रियों के लिए विभिन्न तरह की एंटीबायोटिक उपलब्ध हैं। यही कारण है कि यात्रियों में ट्रॉपिकल स्प्रू के मामले तेजी से घटे हैं।

  1. क्या है ट्रॉपिकल स्प्रू
  2. क्यों होता है ट्रॉपिकल स्प्रू
  3. भारतीयों का अध्ययन
  4. तो इलाज क्या है?

ट्रॉपिकल स्प्रू पाचन तंत्र का एक विकार है जो छोटी आंत के माध्यम से शरीर में जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों के पाचन को प्रभावित करता है। जब इन पोषक तत्वों का पाचन नहीं होता है, तब शरीर में कमी का असर दिखने लगता है। ट्रॉपिकल स्प्रू के मरीजों में आमतौर पर फोलेट (एक प्रकार का आयरन) और विटामिन बी12 की कमी हो जाती है। इन दोनों तत्वों की कमी से लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) का निर्माण प्रभावित होता है। इतना ही नहीं, जो लाल रक्त कोशिकाएं बनती हैं, वे भी असामान्य हो जाती हैं, जिससे मेगालोब्लास्टिक एनीमिया की स्थिति बनती है।

(और पढ़ें - विटामिन बी12 की मात्रा ज्यादा लेने के नुकसान)

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Urjas Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को सेक्स समस्याओं के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
Long Time Capsule
₹719  ₹799  10% छूट
खरीदें

शोधकर्ता अब तक इस बीमारी के कारण का पता नहीं लगा सके हैं। अमेरिकी संस्था नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ रेयर डिसऑर्डर्स के अनुसार, ट्रॉपिकल स्प्रू एक तरह का डिसऑर्डर है, जिसका संबंध पर्यावरण के असर या पोषक तत्वों की कमी से हो सकता है। अनुसंधानकर्ता यह भी कहते हैं कि इसके पीछे संक्रमण (बैक्टिरियल या वायरल) कारण भी हो सकता है।

(और पढ़ें - पेट में इन्फेक्शन के लक्षण)

भारतीय अनुसंधानकर्ताओं बीएस रामकृष्णा, एस. वेंकटरमन और ए. मुखोपाध्याय ने भी इस बारे में अध्ययन किया और इनका लिखा पेपर ‘ट्रॉपिकल मालअब्सॉर्पशन’ विख्यात रिव्यू मैग्जीन ‘पोस्टग्रेज्युएट मेडिकल जर्नल’ में प्रकाशित हुआ। इन्होंने कोलीफार्म बैक्टिरिया जैसे क्लेबसिएला, ई.कोलाई और इंटेरोबैक्टर तथा उनके टॉक्सिन्स की ओर संकेत करते हुए लिखा है कि ये छोटी आंत की परत की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे कुछ जरूरी पोषक तत्वों का पाचन प्रभावित होता है और स्थानीय लोग ट्रॉपिकल स्प्रू की चपेट में आ जाते हैं।

तीनों वैज्ञानिकों ने ट्रॉपिकल स्प्रू के मरीज की छोटी आंत में आए कोशिका संबंधी बदलावों का सूक्ष्म अध्ययन किया। दरअसल, छोटी आंत में कई परतें होती हैं जो विली (आंत के अंदरूनी हिस्से में अंगुली के आकार की असंख्य छोटी कोशिकाएं) और क्रिप्ट बनाने के लिए ऊपर और नीचे जाती हैं। विली में भी माइक्रोविली होती हैं, जो पोषक तत्वों का पाचन तय करती हैं। ट्रॉपिकल स्प्रू की स्थिति में विली और माइक्रोविली पर असर पड़ता है। नतीजन पोषक तत्वों का पाचन प्रभावित होता है। यहां दिलचस्प बात यह है कि पोषक तत्वों का पाचन आंत के उस हिस्से पर निर्भर करता है जहां गड़बड़ी हो रही है।

उदाहरण के लिए यदि छोटी आंत का शुरुआती हिस्सा खराब हुआ है, तो मरीज में फोलेट और आयरन की कमी महसूस होगी। यदि आंत का आखिरी हिस्सा प्रभावित है तो विटामिन बी12 की कमी सामने आएगी। इसी तरह यदि बड़ी आंत में कोई खराबी है तो वसा (फैट) और पानी का सही पाचन नहीं होगा और मरीज को डायरिया हो जाएगा, जिससे वसायुक्त मल (भारी, पीला और दुर्गंधयुक्त) निकलेगा।

(और पढ़ें - आंतों में सूजन के लिए होम्योपैथिक दवाएं)

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Kesh Art Hair Oil बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने 1 लाख से अधिक लोगों को बालों से जुड़ी कई समस्याओं (बालों का झड़ना, सफेद बाल और डैंड्रफ) के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
Bhringraj Hair Oil
₹799  ₹850  6% छूट
खरीदें

इस तरह की समस्याओं की लिस्ट बड़ी लंबी है, लेकिन समाधान क्या है? क्योंकि हम जिस देश में रह रहे हैं, वहां ट्रॉपिकल स्प्रू जैसी बीमारी का खतरा बहुत ज्यादा है। कारणों के अभाव में हम निम्न कदम उठाकर इस बीमारी का असर कम कर सकते हैं -

साफ-सफाई का ध्यान रखना पहली और सबसे बड़ी जरूरत है। ऐसा करने से हानिकारक सूक्ष्मजीवों के असर को कम किया जा सकता है। दूसरी अहम बात है जागरुकता। जैसे ही इसका कोई लक्षण नजर आए, उसको पहचानें और तत्काल डॉक्टर से मिलें। इस बीमारी को टेट्रासाइक्लिन या डॉक्सीसाइक्लिन जैसी एंटीबायोटिक से सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि, 20 फीसदी मामलों में बीमारी के दोबारा होने की गुंजाइश होती है।

(और पढ़ें - इलाज के खर्चों पर लगाएं ब्रेक, लें myUpchar बीमा प्लस)

ऐप पर पढ़ें