विटामिन डी हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। कुछ मात्रा में विटामिन डी हमारे भोजन से मिलता है, लेकिन इसका मुख्य स्रोत सूर्य की किरणें हैं। शरीर में विटामिन डी अगर बेहद कम हो तो इसे विटामिन डी की कमी कहा जाता है जो कि एक उम्र में आकर मृत्यु का कारण भी बन सकती है। खासकर के बुजुर्ग अवस्था में। आंकड़ों के आधार पर देखा जाए तो पता चलता है कि विटामिन डी की कमी का होना एक बड़ी वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है। अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में लगभग एक बिलियन यानी 100 करोड़ लोग (हर वर्ग) विटामिन डी की कमी से ग्रसित हैं।

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बेल्जियम में यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स ल्यूवेन की डॉक्टर लिन एंटोनियो ने अपनी एक रिसर्च के जरिए विटामिन डी की कमी के बारे में बताया है। साथ ही वृद्धावस्था में इससे होने वाली मृत्यु के जोखिम का जिक्र किया है। यूरोपियन रिसर्च टीम के सदस्य के तौर पर डॉ. लिन एंटोनियो ने सिंतबर महीने में आयोजित 22वीं यूरोपियन कांग्रेस ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी (e-ECE 2020) कॉन्फ्रेंस में अपनी रिसर्च से जुड़े कुछ तथ्य पेश किए।

विटामिन डी की कमी से स्वास्थ्य जोखिम
विटामिन डी की कमी विशेष रूप से वृद्ध लोगों में आम है। अध्ययन में पता चला है कि शरीर में विटामिन डी की मात्रा पूरी होने से बुजुर्ग अवस्था में होने वाली अन्य प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है। शोधकर्ताओं ने अपनी इस रिसर्च के जरिए उम्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के साथ विटामिन डी के कम स्तर को कुछ बीमारियों के साथ जोड़ा है जो कि इस प्रकार हैं :

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विटामिन डी की कमी के लक्षण
केवल स्वस्थ और संतुलित आहार लेने से हमेशा ही शरीर में विटामिन डी के स्तर को संतुलित नहीं रखा जा सकता। ध्यान दें कि शरीर को केवल दस फीसदी विटामिन डी ही भोजन से मिलता है जबकि बाकी 90 प्रतिशत सीधे सूर्य की रोशनी से मिलता है। अगर आप विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थ खाते हैं तब भी आपको विटामिन डी की कमी का खतरा बना रहता है। इसके लक्षण कुछ इस प्रकार हो सकते हैं -

विटामिन डी के रूप
शरीर में विटामिन डी के कई रूप (फॉर्म्स) या मेटाबोलाइट होते हैं। हालांकि, चिकित्सा समुदाय से जुड़े लोग आमतौर पर लोगों में विटामिन डी की स्थिति को निर्धारित करने के लिए इन मेटाबोलाइट्स (चयापचयों) की कुल मात्रा का उपयोग करते हैं। देखा जाए तो शरीर प्रोहॉर्मोन फॉर्म्स,  25-डिहाइड्रॉक्सी विटामिन डी को 1, 25-डिहाइड्रॉक्सी विटामिन डी में परिवर्तित करता है। इसे वैज्ञानिक शरीर में विटामिन डी की एक्टिव फॉर्म मानते हैं। हालांकि, खून में विटामिन डी के मेटाबोलाइट का 99% से अधिक हिस्सा प्रोटीन पर निर्भर करता है। इसलिए इसका केवल एक छोटा हिस्सा जैविक रूप से सक्रिय या एक्टिव हो सकता है। यह बताता है कि क्यों विटामिन की फ्री और एक्टिव फॉर्म, कुल स्तर की तुलना में वर्तमान और भविष्य के स्वास्थ्य को बेहतर बना सकती है।

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फ्री 25-हाइड्रोक्सी विटामिन डी का स्तर
इस अध्ययन के दौरान डॉक्टर लिन एंटोनियो और उनकी रिसर्च टीम ने यूरोपियन मेल एजिंग स्टडी के डेटा का इस्तेमाल किया। यह डेटा साल 2003 से 2005 के बीच 40 वर्ष से लेकर 79 साल की उम्र के 1,970 पुरुषों पर आधारित था। आंकड़ों के जरिए शोधकर्ताओं ने यह जानने की कोशिश की कि क्या विटामिन डी के फ्री मेटाबोलाइट्स से स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है।

वैज्ञानिकों ने पुरुषों के शरीर में उनकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति का पता लगाने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने पुरुषों की उम्र, बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) और जीवनशैली को देखते हुए फ्री और टोटल विटामिन डी के स्तर की तुलना की। इस शोध से पता चला कि फ्री और सीमित विटामिन डी मेटाबोलाइट्स दोनों ही मृत्यु के एक उच्च जोखिम से जुड़े थे। इन आंकड़ों के आधार पर डॉक्टर लिन एंटोनियो कहती हैं, “ यह डेटा साबित करता है कि विटामिन डी की कमी कैसे सामान्य स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। इससे मृत्यु का खतरा भी अधिक हो सकता है।”

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वैसे यह एक ऑर्ब्जवेशनल यानी अवलोकन आधारित शोध था। इसलिए आंकड़ों को आधार बनाकर तय नहीं किया जा सकता है कि यह ही निश्चित है। इसका एक कारण डेटा में मौजूद प्रतिभागियों की मृत्यु के कारणों की विशेष जानकारी का ना होना है। हालांकि, शोध का निष्कर्ष आशाजनक जरूर है। डॉ. लिन कहती हैं "हमारा डेटा अब बताता है कि टोटल और फ्री 25-हाइड्रोक्सीविटामिन डी का स्तर पुरुषों में भविष्य के स्वास्थ्य जोखिम को बेहतर तरीके से माप सकता है”।

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