नवजात शिशुओं में पीलिया होने पर उनकी त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला हो जाता है। शिशुओं में पीलिया होना एक सामान्य स्थिति है, जिससे करीब 50 प्रतिशत शिशु प्रभावित होते हैं। समय से पहले पैदा हुए शिशुओं में पीलिया होना आम बात है, यह रोग लड़कियों की तुलना में लड़कों को होने की अधिक संभावनाएं होती है। आमतौर पर पीलिया शिशु के जन्म के पहले सप्ताह में हो सकता है। वैसे तो पीलिया दो से तीन सप्ताह में अपने आप ही ठीक हो जाता है, लेकिन पीलिया ज्यादा दिनों तक रहें तो यह चिंता का विषय हो सकता है।
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आप सभी के लिए इस लेख में नवजात शिशु को पीलिया के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही इसमें आपको नवजात शिशु में पीलिया क्या होता है, नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण, नवजात शिशु में पीलिया का कारण, नवजात शिशु में पीलिया के सामान्य स्तर, नवजात शिशु में पीलिया के लिए उपचार और नवजात शिशु को पीलिया से बचाव आदि के बारे में भी बताया गया है।
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- नवजात शिशु में पीलिया क्या होता है? - Navjat shishu me piliya kya hota hai?
- नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण - Navjat shishu me piliya ke lakshan
- नवजात शिशु में पीलिया के कारण - Navjat shishu me piliya ke karan
- नवजात शिशु में पीलिया के सामान्य स्तर - Navjat shishu me piliya ke samanya level
- शिशु में पीलिया कैसे ठीक करें? - Shishu me piliya ke liye upchar
- नवजात शिशु को पीलिया से कैसे बचाएँ? - Navjat shishu ka piliya se bachav
- सारांश
नवजात शिशु में पीलिया क्या होता है? - Navjat shishu me piliya kya hota hai?
आमतौर पर जन्म के बाद अधिकतर शिशुओं को पीलिया हो जाता है, इस स्थिति में जन्म के कुछ ही दिनों बाद शिशु की त्वचा और आंखों का सफेद हिस्सा पीले रंग का हो जाता है। शिशु में पीलिया होना एक आम स्थिति है और यह बिलीरुबिन के उच्च स्तर के कारण होता है। बिलीरुबिन एक पीले रंग का तरल होता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है। बड़े बच्चों और व्यस्कों में लीवर बिलीरुबिन प्रक्रिया करके इसको आंतों से भेज देता है। नवजात शिशु का लीवर विकसित होने की प्रक्रिया के दौरान बिलीरुबिन को हटा पाने में सक्षम नहीं होता है, जिसके कारण शिशु को पीलिया हो जाता है।
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अधिकतर मामलों में शिशु का पीलिया लीवर विकसित होने और स्तनपान के बाद अपने आप ठीक हो जाता है। इससे बिलीरुबिन शरीर से बाहर होने में मदद मिलती है। जन्म के बाद शुरुआती दिनों आधे शिशुओं में पीलिया का हल्का प्रभाव होता है। समय से पहले पैदा होने वाले शिशुओं में पीलिया जल्द हो जाता है और सामान्य शिशुओं की तुलना में ज्यादा दिनों तक रह सकता है। यदि बिलीरुबिन का स्तर अधिक बढ़ जाए तो इससे शिशु को मस्तिष्क की क्षति, सेरेब्रल पाल्सी और बेहरेपन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
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नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण - Navjat shishu me piliya ke lakshan
नवजात शिशु में पीलिया के मुख्य लक्षण में उसकी त्वचा व आंखों का रंग पीला हो जाता है। यह लक्षण आमतौर पर जन्म के दूसरे से चौथे दिन में दिखाई देते हैं। शिशु में पीलिया की जांच करने के लिए, आप अपने शिशु के माथे या नाक को धीरे-धीरे दबाएं। यदि दबाए गए स्थान पर त्वचा पीले रंग की हो जाए, तो संभवतः यह शिशु में हल्के पीलिया का संकेत हो सकता है। अगर शिशु को पीलिया नहीं है, तो दबाए गए स्थान से उसकी त्वचा रंग, सामान्य रंग की तुलना से थोड़ा हल्का हो जाता है।
पीलिया के कुछ अन्य लक्षणों को नीचे विस्तार से बताया गया है।
- सुस्ती आना। (और पढ़ें - बच्चों की इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं)
- मां का दूध ना पीना।
- पीली रंग की पेशाब आना। (और पढ़ें - यूरीन इन्फेक्शन का उपाय)
- पीले रंग का मल आना। स्तनपान करने वाले शिशुओं का मल पीले और हरे रंग का होता है, जबकि बोतल का दूध पीने वाले शिशुओं के मल का रंग सरसों व हरे रंग का होता है।
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शिशु में पीलिया के गंभीर लक्षण
- चिड़चिड़ापन।
- वजन न बढ़ना। (और पढ़ें - वजन बढ़ाने के उपाय)
- पेट और अन्य अंगों का पीला होना।
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- आपके शिशु की त्वचा पेट, बाहों या पैरों पर पीलापन दिखाई देने लगे।
- शिशु की आंखों का सफेद हिस्सा पीला हो जाए। (और पढ़ें - बच्चे की उम्र के अनुसार वजन का चार्ट)
- आपका शिशु बीमार लगने लगे और उसको नींद से जागने में मुश्किल हो रही हो।
- शिशु का वजन नहीं बढ़ा रहा हो या वह सही तरह से भोजन न कर रहा हो।
- आपका शिशु सामान्य दिनों से ज्यादा रोने लगे। (और पढ़ें - नवजात शिशु को खांसी होने पर क्या करें)
- यदि पीलिया तीन सप्ताह से अधिक समय तक ठीक न हो पाए।
- शिशु को 100 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा बुखार हो।
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नवजात शिशु में पीलिया के कारण - Navjat shishu me piliya ke karan
बिलीरुबिन के अधिकता (Hyperbilirubinemia/ हाइपरबिलीरुबिनीमिया) शिशु में पीलिया होने का मुख्य कारण होती है। पीलिया में बिलीरुबिन की वजह से ही शिशु की त्वचा पीले रंग की होती है। बिलीरुबिन एक सामान्य तरल होता है जो लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है।
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सामान्यतः लीवर रक्त से बिलीरुबिन को फिल्टर करता है और इसको आंतों में भेज देता है। शिशु का अविकसित लीवर बिलीरुबिन को फिल्टर नहीं कर पाता है, जिसकी वजह से शिशु के शरीर में इसका स्तर बढ़ जाता है। जन्म के समय शिशु को पीलिया होना, एक सामान्य स्थिति होती है और इसको फिजीयोलॉजिक पीलिया (physiologic jaundice) भी कहा जाता है। शिशु को पीलिया जन्म के दूसरे या तीसरे दिन में हो सकता है।
स्तनपान के साथ भी शिशु को पीलिया होना सामान्य बात है। स्तनपान करने वाले शिशुओं में यह दो तरह से हो सकता हैं।
- स्तनपान के साथ पीलिया – जन्म के शुरुआती सप्ताह में मां का दूध सही तरह से न पीना या मां के स्तनों से दूध कम आना के कारण भी शिशु को पीलिया हो जाता है। (और पढ़ें - नवजात शिशु को उल्टी)
- मां के दूध से पीलिया – यदि मां के दूध में बिलीरुबिन को कम करने की प्रक्रिया को बाधित करने वाले तत्व मौजूद हो तो इससे भी शिशु को पीलिया हो सकता है। यह पीलिया जन्म के एक सप्ताह बाद शुरु होता है और दो से तीन सप्ताह तक अपनी चरम अवस्था पर पहुंच जाता है।
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शिशु में पीलिया होने के अन्य कारण
शिशु को विकारों के कारण भी पीलिया हो सकता है। इस तरह के मामलों में पीलिया जल्द ही शुरू हो जाता है और फिजीयोलोजिक पीलिया के मुकाबले ज्यादा दिनों तक रहता है। निम्न तरह के रोग और स्थितियो के चलते भी शिशु को पीलिया हो सकता है।
- लीवर का सही तरह से कार्य न करना।
- आंतरिक रक्तस्त्राव।
- अन्य बैक्टीरियल और वायरल संक्रमण।
- शिशु को ब्लड इन्फेक्शन होना।
- एंजाइम्स से कमी होना। (और पढ़े - बच्चे को मिट्टी खाने की आदत)
- मां का खून, शिशु के खून के अनुकूल न होना।
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नवजात शिशु में पीलिया के सामान्य स्तर - Navjat shishu me piliya ke samanya level
नवजात शिशु में पीलिया बिलीरुबिन के बढ़े स्तर की वजह से ही होता है। जन्म के समय होने वाले तनाव के कारण शिशु में बिलीरुबिन का स्तर अधिक होना सामान्य है। सामान्य रूप से जन्म के 24 घंटों के दौरान शिशु में बिलीरुबिन का स्तर 5.2 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर रहता है। लेकिन कई शिशुओं में जन्म के कुछ दिनों में बिलीरुबिन का स्तर 5 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर होने से पीलिया हो जाता है।
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शिशु में पीलिया कैसे ठीक करें? - Shishu me piliya ke liye upchar
शिशु में पीलिया के हल्के प्रभाव को ठीक करने के लिए आपको किसी भी प्रकार के इलाज की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि शिशु के दो सप्ताह का होने तक यह रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है। पीलिया की गंभीर स्थिति में आपको शिशु को अस्पताल में एडमिट कराना पड़ सकता है। लेकिन पीलिया के हल्के प्रभावों को घर पर ही ठीक किया जा सकता है।
शिशु में पीलिया का इलाज निम्नतः विस्तार से बताया जा रहा है।
- फोटोथेरेपी (लाइट थेरेपी) – इसम थेरेपी में किरणों के द्वारा इलाज किया जाता है, जिसमें शिशु को एक विशेष तरह की लाइट में रखा जाता है। इस थेरेपी में शिशु को पराबैंगनी किरणों हानि न हो इसीलिए उसको विशेष तरह की पॉलीथीन के अंदर लेटाया जाता है। इस प्रक्रिया में प्रकाश से शिशु के बिलीरुबीन की संरचना में बदलाव किया जाता है।
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- नसों द्वारा इम्युनोग्लोबुलिन चढ़ाना (IVIg) – कई बार पीलिया मां और शिशु के रक्त का प्रकार अलग-अलग होने के कारण भी हो सकता है। इस स्थिति के परिणामस्वरूप शिशु मां से एंटीबॉडीज को ग्रहण करता है, जो रक्त कोशिकाओं को तोड़ने का काम करते हैं। नसों के द्वारा इम्युनोग्लोबुलिन चढ़ाने से पीलिया कम हो जाता है और शिशु के रक्त को बदलने की जरूरत नहीं पड़ती है।
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- रक्त बदलना – इस प्रक्रिया में शिशु के रक्त को बार-बार डोनर के साथ बदला जाता है। फोटोथेरेपी से इलाज न होने के बाद इस प्रक्रिया को अपनाया जाता है, क्योंकि इस दौरान शिशु को आईसीयू में एडमिट किया जाता सकता है।
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नवजात शिशु को पीलिया से कैसे बचाएँ? - Navjat shishu ka piliya se bachav
नवजात शिशु का पीलिया से बचाव गर्भावस्था के समय से ही शुरू करना होता है। गर्भावस्था में समय आपको अपने रक्त से संबंधी कुछ टेस्ट करने होते हैं। साथ ही शिशु के जन्म के बाद भी आपको खून की जांच करवानी चाहिए, इससे मां और शिशु के रक्त की अनुकूलता का पता चलता है, जो पीलिया का एक मुख्य कारण होता है। अगर आपके शिशु को पीलिया है तो आपको निम्न तरह के उपाय से उसको गंभीर होने से रोकना चाहिए।
- अपने शिशु को स्तनपान के जरिए सभी पोषक तत्व प्रदान करने की कोशिश करें। जन्म के शुरूआती दिनों में शिशु में पानी की कमी न हो इसीलिए उसको 8 से 12 बार स्तनपान कराएं, इससे बिलीरुबिन शिशु के शरीर से बाहर आने में भी मदद मिलती है। (और पढ़ें - बच्चों में भूख ना लगने के का आयुर्वेदिक समाधान)
- अगर आपके शिशु को मां का दूध पीने से किसी प्रकार की समस्या हो रही हो, वजन कम रहा हो या पानी की कमी हो, तो ऐसे में डॉक्टर की सलाह पर शिशु को मां के दूध का सप्लीमेंट भी दिया जा सकता है। कुछ मामलों में डॉक्टर मां के दूध के स्थान पर डिब्बे वाला दूध देने का परार्मश दे सकते हैं।
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शिशु के जन्म के बाद पांच दिनों तक पीलिया के लक्षणों पर गौर करें। अगर आपको पीलिया से संबंधी कोई लक्षण दिखाई दें तो तुरंत अपने डॉक्टर से मिल कर सही इलाज को शुरु करें।
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सारांश
नवजात शिशु में पीलिया तब होता है जब उसके शरीर में बिलीरुबिन बढ़ जाता है। जब शरीर में रेड ब्लड सेल्स टूटने लगते हैं तो नॉर्मली ये लिवर के द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं। लेकिन नवजात शिशुओं का लिवर पूरी तरह विकसित नहीं होता, जिससे बिलीरुबिन लिवर से बाहर नहीं निकल पाता । इसके परिणामस्वरूप शिशु की त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला दिखाई देने लगता है।
नवजात शिशु को पीलिया क्यूँ होता है? के डॉक्टर

Dr. Anil Pathak
पीडियाट्रिक
42 वर्षों का अनुभव

Dr. Pritesh Mogal
पीडियाट्रिक
8 वर्षों का अनुभव
Dr Shivraj Singh
पीडियाट्रिक
13 वर्षों का अनुभव
