आयुर्वेद में सर्वाइकल दर्द को मन्‍या शूल कहा जाता है। इसमें गर्दन और पीठ के सर्वाइकल वाले हिस्‍से में दर्द और अकड़न रहती है। आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस, सर्वाइकल स्‍पॉन्डिलोसिस, रूमेटाइड अर्थराइटिस और स्लिप डिस्‍क की वजह से सर्वाइकल दर्द हो सकता है।

(और पढ़ें - स्पॉन्डिलाइटिस क्या होता है)

सर्वाइकल दर्द को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेद में अनेक उपचारों का उल्‍लेख किया गया है। इसमें अभ्‍यंग (तेल मालिश), रुक्ष स्‍वेदन (शुष्‍क प्रस्‍वेदन या पसीना निकालने की विधि), मान्‍य बस्‍ती (गर्दन पर औषधीय तेल लगाना), नास्‍य (नाक से औषधि डालने की विधि) और लेप (प्रभावित हिस्‍से पर औषधि लगाना) शामिल हैं।

सर्वाइकल दर्द को नियंत्रित करने के लिए रसोनम (लहसुन) और गोक्षुरा (गोखरू) जैसी जड़ी-बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है। सर्वाइकल दर्द के इलाज में दशमूल क्‍वाथ, प्रसारिणि तेल, योगराज गुग्‍गुल और लाक्षादि गुग्‍गुल जैसी कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग किया जाता है।

(और पढ़ें - लहसुन के तेल के फायदे)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से सर्वाइकल दर्द - Ayurveda ke anusar Cervical Pain
  2. सर्वाइकल पेन का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Cervical dard ka ayurvedic ilaj
  3. सर्वाइकल दर्द की आयुर्वेदिक दवा और जड़ी बूटी - Cervical pain ki ayurvedic dawa aur medicine
  4. आयुर्वेद के अनुसार सर्वाइकल दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Cervical dard hone par kya karna chahiye kya nahi karna chahiye
  5. सर्वाइकल पेन में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Cervical dard ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. सर्वाइकल पेन की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Cervical Pain ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. सर्वाइकल दर्द की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Cervical Pain ki ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
सर्वाइकल दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद में ऐसी विभिन्‍न स्थितियों का उल्‍लेख किया गया है जो दोष में असंतुलन उत्‍पन्‍न कर सर्वाइकल हिस्‍से में दर्द का कारण बन सकती हैं। ये स्थितियां इस प्रकार हैं:

  • मन्‍या स्‍तंभ (सर्वाइकल स्‍पॉन्डिलोसिस):
    ये सर्वाइकल दर्द होने का सबसे प्रमुख कारण है। इसमें वात दोष के असंतुलित होने के कारण गर्दन की मांसपेशियों में अकड़न रहती है और इस वजह से सर्वाइकल हिस्‍से में दर्द महसूस होता है। (और पढ़ें - ​गर्दन में अकड़न से छुटकारा पाने का उपाय)
     
  • आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस: 
    यह रीढ़ को प्रभावित करने वाली एक प्रणालीगत (तंत्र से संबंधित) एवं गंभीर सूजन पैदा करने वाली स्थिति है। वात दोष में असंतुलन के कारण ये समस्‍या होती है और इसका प्रभाव हड्डियों और अस्थि मज्‍जा पर पड़ता है। (और पढ़ें - सूजन कम करने का तरीका)
     
  • स्लिप डिस्‍क: 
    रीढ़ की हड्डी की कशेरुकाओं के बीच स्थित कार्टिलेजिनस डिस्‍क आघात अवशोषक (शॉक एब्‍सॉर्बर) के रूप में कार्य करती है। इसके अपनी जगह से खिसकने पर स्‍लिप डिस्‍क की समस्‍या होती है। किसी चोट, भारी वजन आदि उठाने की वजह से ऐसा हो सकता है। इससे आसपास की नसों में दर्द और चुभन हो सकती है। ये समस्‍या कमर के निचले हिस्‍से में सबसे ज्‍यादा देखी जाती है लेकिन ये सर्वाइकल हिस्‍से को भी प्रभावित कर सकती है। (और पढ़ें - रीढ़ की हड्डी टूटने का इलाज)
     
  • रूमेटाइड अर्थराइटिस:
    ये एक ऑटोइम्‍यून रोग है (इस स्थिति में प्रतिरक्षा तंत्र गलती से शरीर पर ही हमला करने लगता है) जिसके कारण प्रभावित जोड़ों में गंभीर सूजन और दर्द होता है। इस बीमारी के कारण जोड़ों में वात दोष में असंतुलन और अमा (विषाक्‍त पदार्थ) का जमाव होने लगता है। रूमेटाइड अर्थराइटिस के सर्वाइकल हिस्‍से को प्रभावित करने पर सर्वाइकल दर्द होता है। (और पढ़ें - अर्थराइटिस में आहार)
     
  • अस्थिसंधिशोथ (ऑस्टियोअर्थराइटिस):
    वात दोष के बढ़ने के कारण जोड़ों में दर्द, सूजन और अकड़न रहती है। ऑस्टियोअर्थराइटिस में असंतुलित वात दोष सर्वाइकल हिस्‍से को प्रभावित कर सर्वाइकल दर्द पैदा करता है।

(और पढ़ें - वात पित्त कफ का इलाज)

  • अभ्‍यंग:
    • ये एक मालिश विधि है जिसमें शरीर की विशेष बिंदुओं पर दबाव बनाया जाता है। इससे दर्द और समस्‍या से संबंधित लक्षणों से राहत पाने में मदद मिलती है। (और पढ़ें - मालिश करने की विधि)
    • ये मालिश शरीर की कोशिकाओं में पोषक तत्‍वों को प्रवाहित और विषाक्‍त पदार्थों को निकालकर रोग का निदान करने में मदद करती है। ये चिकित्‍सा विधि थकान और तनाव को दूर करने, आंखों की रोशनी बढ़ाने, तंत्रिका तंत्र को मजबूत एवं आरोग्‍य बनाने में प्रभावी है। (और पढ़ें - आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए क्या खाएं)
    • अभ्‍यंग शरीर पर आक्रमण करने वाले विभिन्न रोगजनक सूक्ष्मजीवों के खिलाफ लड़ने वाले एंटीबॉडी (ऐसे प्रोटीन यौगिक जो शरीर को सुरक्षा देते हैं) के उत्‍पादन को भी बढाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। इस तरह ये उपचार सर्वाइकल दर्द और अन्‍य प्रकार के दर्द को दूर करने में प्रभावी है।
    • सर्वाइकल दर्द की स्थिति में मुर्गी के अंडे को काले नमक और घी (क्‍लैरिफाइड बटर: वसायुक्त मक्खन से दूध के ठोस पदार्थ और पानी को निकालने के लिए दूध के वसा को हटाना) में मिलाकर अभ्‍यंग में प्रयोग किया जाता है। सर्विकल स्पोंडिलोसिस में दर्द से राहत दिलाने के लिए अर्क (आक का फूल) के पत्ते में घी लपेटकर भी प्रयोग किया जाता है।
  • रुक्ष स्‍वेदन:
    • इसमें शुष्‍क वस्‍तुओं जैसे गर्म धातु, गर्म कपड़े या गर्म हाथों का प्रयोग कर शरीर के प्रभावित हिस्‍से की सिकाई की जाती है।
    • रुक्ष स्‍वेदन में शरीर के विषाक्‍त पदार्थों को एक जगह से हटाकर और तरल में बदलकर पसीने के रूप में बाहर निकाला जाता है। ये नाडियों को चौड़ा करती है और विषाक्‍त पदार्थों को विभिन्‍न ऊतकों से जठारांत्र मार्ग में आने के कार्य को बढ़ावा देती है। इसके बाद जठरांत्र मार्ग से इन विषाक्‍त पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
    • इस प्रक्रिया में शरीर के ऊतकों की सफाई और मांसपेशियों में खिंचाव से राहत दिलाई जाती है जिससे दर्द में कमी आती है।
  • मान्‍य बस्‍ती:
    • इस प्रक्रिया में आटे के पेस्‍ट से बने एक ढांचे (फ्रेम) को सर्वाइकल हिस्‍से पर रखा जाता है। इस फ्रेम को गर्म औषधीय तेल से भरा जाता है। दर्द को दूर करने के लिए इसे कुछ समय तक सर्वाइकल हिस्‍से पर ही रखा जाता है।
    • सर्विकल स्पोंडिलोसिस, स्‍पॉन्डिलिसथीसिस, आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस, रूमेटाइड अर्थराइटिस और स्लिप डिस्‍क के कारण हुए सर्वाइकल दर्द में इस चिकित्‍सा विधि का प्रयोग किया जाता है।
  • नास्‍य:
    • नास्‍य कर्म में नासिका गुहा में जड़ी-बूटियों को डाला जाता है। चूंकि, नाक को सिर का द्वार बताया गया है इसलिए सिर, गले, गर्दन और इंद्रियों (सूंघने, स्‍वाद, सुनने और दृष्टि आदि) से संबंधित रोगों को नियंत्रित करने के लिए औषधियों को नासिका में डाला जाता है।
    • सिर और गर्दन को मजबूत करने के लिए भी नास्‍य का प्रयोग किया जाता है। ये विभिन्‍न वात रोगों जैसे कंधे, गर्दन, कान, नाक, सिर और खोपड़ी से संबंधित विकार के इलाज में भी प्रभावी है। अकड़न, सुन्‍नपन और भारीपन जैसे कफ रोगों के इलाज में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
    • नास्‍य कर्म में प्रमुख तौर पर मुस्‍ता (नागरमोथा), विडंग (फॉल्‍स काली‍ मिर्च), बिल्‍व (बेल) और बला (खिरैटी) जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इन जड़ी बूटियों को तेल के काढ़े में विभिन्न अन्य सामग्रियों के साथ बनाया जाता है। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने का तरीका)
    • सर्वाइकल दर्द के लिए निर्धारित नास्‍य कर्म में आमतौर पर पंचमूल (पांच जड़ें) या दशमूल (दस जड़ें) जड़ी बूटी प्रयोग की जाती है।
  • लेप:
    • लेप विधि में जड़ी-बूटियों में घी को मिलाकर एक गाढ़ा पेस्‍ट तैयार किया जाता है एवं इसे प्रभावित हिस्‍से पर लगाया जाता है। प्रभावित हिस्‍से पर बालों की उल्‍टी दिशा में लेप लगाया जाता है।
    • व्‍यक्‍ति की स्थिति के आधार पर जड़ी-बूटियों का चयन किया जाता है। उदाहरणार्थ: दशमूल और दूध के मिश्रण का प्रयोग तेज दर्द से राहत पाने के लिए किया जाता है। वहीं वात दोष के असंतुलन के कारण हुए रूमेटिक दर्द के लिए लेप में घी मिलाया जाता है।
    • चोट के कारण हुई सूजन और कई प्रकार के दर्द से राहत दिलाने में भी लेप असरकारी होता 

(और पढ़ें - गर्दन में अकड़न के कारण)

सर्वाइकल दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • रसोनम
    • रसोनम तंत्रिका, परिसंचरण, पाचन, श्‍वसन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें एंटीस्‍पैस्‍मोडिक (ऐंठन से राहत दिलाने वाले), वायुनाशी (पेट फूलने की समस्‍या से राहत दिलाने वाले), उत्तेजक, कृमिनाशक, कफ निस्‍सारक (बलगम निकालने वाले) और ऊर्जादायक गुण मौजूद होते हैं।
    • ये हड्डियों और नसों के ऊतकों को ऊर्जा देती है, विषाक्‍त पदार्थों को साफ करती है, ऐंठन, दर्द और सूजन से राहत दिलाती है। इसके अलावा रसोनम अर्थराइटिस में होने वाली सूजन को भी दूर करने में मदद करती है। इसलिए सर्वाइकल दर्द को नियंत्रित करने में रसोनम सहायक है।
    • इसे अर्क, पाउडर, औषधीय तेल और रस के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।
  • गोक्षुरा
    • गोक्षुरा तंत्रिका, प्रजनन, मूत्र और श्‍वसन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, ऊर्जादायक, मूत्रवर्धक, कामोत्तेजक (लिबिडो बढ़ाने वाले) और टॉनिक के गुण मौजूद होते हैं।
    • ये शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालने वाली सबसे उत्तम जड़ी बूटियों में से एक है। दर्द निवारक प्रभाव के कारण सवाईकल दर्द पैदा करने वाले कई कारकों को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • इसके अलावा वात के कारण हुई सूजन (एडिमा), नपुंसकता, किडनी रोगों, नसों में दर्द, रूमेटिक, साइटिका और यौन रोगों को नियंत्रित करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।
    • काढ़े या पाउडर के रूप में गोक्षुरा ले सकते हैं।

सर्वाइकल दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधि

  • दशमूल क्‍वाथ
    • दशमूल क्‍वाथ 10 जड़ी-बूटियों से बना एक काढ़ा है जिसमें कंटकारी (छोटी कटेरी), बिल्‍व (बेल), अग्निमंथ, गंभारी, श्‍योनाक, पृश्निपर्णी (पिठवन), बृहती (बड़ी कटेरी) और गोक्षुरा है।  
    • वात दोष के असंतुलन के कारण हुए रोगों को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जाता है जिसमें सवाईकल दर्द भी शामिल है।
    • इसके अलावा वात के कारण हुए अस्‍थमा, भगंदर और खांसी के उपचार में भी दशमूल क्‍वाथ का प्रयोग किया जाता है।
  • प्रसारिणि तेल
    • तेल में जड़ी बूटियों को डालकर इस काढ़े को तैयार किया जाता है। इसमें प्रमुख सामग्री के रूप में प्रसारिणि है जिसमें ग्‍लाइकोसाइड, एमीनो एसिड, विटामिन सी और क्‍यूनोंस जैसे फाइटोकॉन्सटिट्यूट (पौधों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रसायनिक यौगिक) मौजूद होते हैं। इसके अलावा प्रसारिणि तेल में जटामांसी, रसना, पिप्‍पली, तिल का तेल और चित्रक जैसी अन्‍य जड़ी-बूटियां भी हैं।
    • प्रसारिणि तेल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और दर्द का उपचार करता है। ये रूमेटाइड अर्थराइटिस और ऑस्टियोअर्थराइटिस के कारण हुए सर्वाइकल दर्द को नियंत्रित करने में उपयोगी है। लकवा को नियंत्रित करने में भी प्रसारिणि तेल प्रभावी होता है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय)
  • लाक्षा गुग्‍गुल
    • इसमें लाक्षा, अस्थिसंहार, अर्जुन, अश्‍वगंधा (भारतीय जिनसेंग), नागबला और गुग्‍गुल मौजूद है।
    • ऑस्टियोअर्थराइटिस के कारण हुए जोड़ों में दर्द को दूर करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • लक्षणों में सुधार और बेहतर परिणाम के लिए इस औषधि को अभ्‍यंग और स्‍वेदन के साथ लेने की सलाह दी जाती है।
  • योगराज गुग्‍गुल
    • योगराज गुग्‍गुल को हींग, जीरा, कलौंजी, सरसों के बीज, आमलकी (आंवला), शुद्ध भारतीय गुग्‍गुल, घी, त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण), कटुकी और चांदी, लोहा, सीसा, अभ्रक और टिन के मिश्रण (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुआ) से बनाया गया है।
    • इसका उपयोग गंभीर संक्रमण, गठिया, रुमेटिक (जोड़ों के टेंडन, स्नायुबंधन, हड्डियों, और मांसपेशियों को प्रभावित करने वाला रोग), तंत्रिका संबंधी विकार, भगंदर और गंडमाला रोग (लसीका ग्रंथियों विशेषत: ग्रीवा की लसीका ग्रंथियों में दोष) को नियंत्रित करने में किया जाता है।
    • योगराज गुग्‍गुल दर्द और सूजन जैसे लक्षणों से राहत दिलाती है और इस तरह सर्वाइकल दर्द को कम करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • आमतौर पर इसे सारिवाद्यासव के साथ दिया जाता है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें। 

क्‍या करें

क्‍या न करें

आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस, सर्वाइकल स्‍पॉन्डिलोसिस, रूमेटाइड अर्थराइटिस और स्लिप डिस्‍क की वजह से हुए सर्वाइकल दर्द में मान्‍य बस्‍ती के प्रभाव की जांच के लिए 30 प्रतिभागियों पर एक अध्‍ययन किया गया था।

मान्‍य बस्‍ती में काले चने के पेस्‍ट से बने फ्रेम को गर्दन पर रखा गया। इसके त्‍वचा से चिपकने के बाद एक चिपचिपे पदार्थ का इस्‍तेमाल कर फ्रेम में गर्म नारायण तेल डाला गया। फ्रेम की मदद से तेल बाहर नहीं गिरता है और गर्म तेल को लंबे समय तक प्रभावित हिस्‍से पर रहने में मदद मिलती है। 30 प्रतिभागियों में से कुल 27 लोगों ने दर्द से राहत महसूस की। 

(और पढ़ें - गर्दन में दर्द क्यों होता है)

सर्वाइकल दर्द के प्रभावकारी इलाज के लिए विभिन्‍न आयुर्वेदिक उपचारों के हानिकारक प्रभावों की जानकारी होना आवश्‍यक है। आयुर्वेदिक चिकित्सा दर्द के कारण को भी नियंत्रित करने में मदद करती है।

आयुर्वेदिक चिकित्सकों का मानना है कि कुछ व्यक्तियों में आयुर्वेदिक उपचार के दौरान सावधानी बरतने की जरूरत होती है। उदाहरणार्थ: हाइपर एसिडिटी एवं अत्यधिक पित्त की समस्या से ग्रस्त व्‍यक्‍ति में लहसुन का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए और पानी की कमी से जुड़ी समस्याओं में गोक्षुरा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

(और पढ़ें - पानी की कमी होने के लक्षण)

अनेक रोगों का सबसे सामान्‍य लक्षण दर्द ही होता है। आमतौर पर लोग दर्द को असहनीय होने तक नजरअंदाज करते रहते हैं। आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस, सर्वाइकल स्‍पॉन्डिलोसिस, रूमेटाइड अर्थराइटिस और स्लिप डिस्‍क जैसी अनेक स्थितियों के कारण सर्वाइकल दर्द हो सकता है।

रोग के शुरु होने पर ही चिकत्‍सक से परामर्श कर लेना चाहिए ताकि दर्द को गंभीर रूप लेने से पहले ही उसका सही समय पर इलाज हो सके। सर्वाइकल दर्द के कारण का पता लगाने में आयुर्वेदिक चिकत्‍सक आपकी मदद कर सकते हैं। चिकित्‍सक आपको बता सकते हैं कि किस दोष (वात,पित्त और कफ) में असंतुलन के कारण आपको सर्वाइकल दर्द हो रहा है।

(और पढ़ें - दोष में असंतुलन के लक्षण)

उस दोष को फिर से संतुलित करने और शरीर से अमा को बाहर निकालने में चिकित्‍सक आपकी मदद करेंगे। इससे न केवल रोग का इलाज होगा और दर्द से राहत मिलेगी बल्कि आप मानसिक और शारीरिक रूप से भी स्‍वस्‍थ हो पाएंगे। 

Dr. Harshaprabha Katole

Dr. Harshaprabha Katole

आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

Dr. Dhruviben C.Patel

आयुर्वेद
4 वर्षों का अनुभव

Dr Prashant Kumar

Dr Prashant Kumar

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr Rudra Gosai

Dr Rudra Gosai

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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  2. Dr.Parulkar Geeta D. MANYABASTI: A SHORT COMMUNICATION. International Journal of Ayurvedic & Herbal Medicine 7(3) May.-June.2017 (2580-2581)
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  4. National Institute of Indian Medical Heritage (NIIMH). Diseases. Central Council for Research in Ayurvedic Sciences (CCRAS); Hyderabad
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  8. Kshipra Rajoria et al. Clinical study on Laksha Guggulu, Snehana, Swedana & Traction in Osteoarthritis (Knee joint). Ayu. 2010 Jan-Mar; 31(1): 80–87. PMID: 22131690
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