इजरायल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी (टीएयू) के वैज्ञानिकों ने बहरेपन के इलाज के लिए एक नई जीन थेरेपी विकसित करने का दावा किया है। हाल में इस थेरेपी को लेकर सामने आने वाले वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने कान के अंदर के हिस्से की कोशिकाओं में जेनेटिक मटीरियल (डीएनए-एमआरएनए) पहुंचाने में कामयाबी हासिल कर बहरेपन के इस नए ट्रीटमेंट को तैयार किया है। उनका कहना है कि जेनेटिक मटीरियल बहरेपन से पीड़ित मरीजों के कान में मौजूद जेनेटिक डिफेक्ट को रिप्लेस करने और संबंधित कोशिकाओं को सामान्य तरीके से काम करते रहने में मदद करने का काम करता है। दावा है कि इस थेरेपी की मदद से शोधकर्ता चूहों में बहरेपन को बढ़ने से रोकने में कामयाब हुए हैं। इस आधार पर उन्होंने उम्मीद जताई है कि नया ट्रीटमेंट उन म्यूटेशन्स का इलाज कर सकता है, जिनके साथ पैदा हुए बच्चों में बहरेपन की समस्या देखने को मिलती है। इस नई थेरेपी से जुड़े अध्ययन को टीएयू के डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमन मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स एंड बायोकेमिस्ट्री के प्रोफेसर कैरन अव्राहम के नेतृत्व में किया गया है। खबर के मुताबिक, इसके परिणामों को मेडिकल पत्रिका ईएमबीओ मॉलिक्यूलर मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है।
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खबर के मुताबिक, परिणामों पर बात करते हुए प्रोफेसर कैरन ने कहा है, 'इस अध्ययन में हमने जेनेटिक बहरेपन पर फोकस किया है, जो एसवाईएनई4 नाम के वंशाणु में म्यूटेशन होने के कारण विकसित होता है। यह बहरेपन का एक दुर्लभ प्रकार है, जिसे हमारी लैब ने कई सालों पहले दो इजरायली परिवारों में खोजा था। बाद में तुर्की और यूनाइटेड किंगडम में भी इस बहरेपन के मामले सामने आए थे।' कैरन ने आगे बताया, 'माता-पिता दोनों से डिफेक्टिव जीन प्राप्त करने वाले बच्चों की सुनने की क्षमता जन्म के समय सामान्य होती है। लेकिन बाद में इसमें तेजी से कमी होने लगती है। म्यूटेशन के कारण कान के अंदरूनी हिस्से में कोक्लिया (कान का एक अंदरूनी हिस्सा) की हियर सेल्स में कोशिका केंद्र का गलत स्थानीकरण (मिसलोकलाइजेशन) हो जाता है। यह साउंडवेव रिसेप्टर की तरह काम करता है और सुनने की क्षमता के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस कंडीशन के पैदा होने पर हियर सेल्स में विकार पैदा हो जाता है और अंततः उनकी मौत हो जाती है।'
वहीं, नई जीन थेरेपी के बारे में जानकारी देते हुए एक अन्य शोधकर्ता शहर तैबर ने कहा, 'हमने हानि नहीं पहुंचाने वाला एक कृत्रिम वायरस तैयार किया और जेनेटिक मटीरियल को (कान में) डिलिवर करने के लिए इसका इस्तेमाल किया। हमने वायरस को चूहे के इनर ईयर में इनजेक्ट किया ताकि वह हियर सेल्स में घुस जाए और अपने जेनेटिक मटीरियल को वहां डिलिवर कर सके। इस प्रकार हमने हियर सेल्स में विकसित हुए डिफेक्ट को रिपेयर किया और उन्हें इतना ठीक कर दिया कि वे सामान्य रूप से काम करने लगे।'
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इस प्रयास में अपनाई गई प्रक्रिया पर बात करते हुए बॉस्टन चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के प्रोफेसर जेफ्री हॉल्ट ने बताया कि चूहों के जन्म के बाद जल्दी ही इस ट्रीटमेंट की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। बाद में उनकी सुनने की क्षमता की मॉनिटरिंग की गई। इसके लिए उनके मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक टेस्ट किए गए थे। परिणामों पर प्रोफेसर जेफ्री ने कहा, 'ये परिणाम (बहरेपन के इलाज के मामले में) सबसे भरोसेमंद हैं। जिन चूहों का इलाज किया गया था, वे सामान्य तरीके से सुनने लगे थे। उनकी सेंसिटिविटी उन चूहों की तरह लगभग पूरी तरह पहचानी जा सकती थी, जो इस प्रकार के म्यूटेशन से ग्रस्त नहीं थे।' यानी जिनके सुनने की क्षमता सामान्य थी।
अध्ययन में शोधकर्ताओं की मिली कामयाबी पर अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर वेड चिएन ने कहा है, 'यह एक महत्वपूर्ण अध्ययन है, जो बताता है कि इनर ईयर जीन थेरेपी को माउस मॉडल के तहत प्रभावी तरीके से अप्लाई किया जा सकता है।' प्रोफेसर चिएन इस अध्ययन का हिस्सा नहीं थे। लेकिन इसके परिणामों से वे काफी ज्यादा प्रभावित हैं। उन्होंने कहा है, 'जिस प्रकार (चूहों में) सुनने की क्षमता रिकवर हुई है, वह प्रभावशाली है। यह अध्ययन उन वैज्ञानिक दस्तावेजों का हिस्सा है, जो बताते हैं कि आनुवंशिक रूप से सुनने की क्षमता नहीं होने पर (इलाज के लिए) जीन थेरेपी को माउस मॉडल के तहत अप्लाई किया जा सकता है।'