ट्राइग्लिसराइड रक्त में पाया जाना वाला फैट यानी लिपिड है. यह फैट खाने में मौजूद कैलोरी से बनता है, जो ऊर्जा बनाने का काम करता है. ट्राइग्लिसराइड संतुलित रहने पर शरीर अच्छी तरह से काम करता है, लेकिन इसका लेवल बढ़ने पर हृदय रोग की समस्या उत्पन्न हो सकती है. ऐसे में हाई ट्राइग्लिसराइड को नियंत्रण में करने के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां व इलाज फायदेमंद साबित हो सकता है.
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आज इस लेख में आप ट्राइग्लिसराइड की आयुर्वेदिक दवाइयों व इलाज के बारे में विस्तार से जानेंगे -
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ट्राइग्लिसराइड में लाभकारी आयुर्वेदिक दवाइयां
अगर किसी का ट्राइग्लिसराइड का लेवल बढ़ गया है, तो वे इसका स्तर संतुलन में लाने के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां ले सकता है. इन दवाइयों के बारे में नीचे बताया गया है -
हृदयास
हाई ट्राइग्लिसराइड के चलते हृदय रोग होने की आशंका रहती है. इसलिए, हृदय को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेदिक दवाई में सबसे पहला नाम हृदयास का आता है. इसमें प्रमुख रूप से अर्जुना, अश्वगंधा व शंखपुष्पी जैसी जड़ी-बूटियां शामिल होती हैं. इस दवा को खाने से हाई कोलेस्ट्रॉल और हाई बीपी जैसी समस्याओं को कम किया जा सकता है, जिससे ट्राइग्लिसराइड का लेवल भी सामान्य होता है. इससे हृदय रोग को पनपने से रोका जा सकता है.
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प्रभाकर वटी
हाई ट्राइग्लिसराइड की समस्या को ठीक करने के लिए प्रभाकर वटी का उपयोग कर सकते हैं. इसे अर्जुन की छाल, शिलाजीत, अभ्रक भस्म व तुगाक्षीरी जैसी आयुर्वेदिक सामग्रियों के मिश्रण से बनाया जाता है. इन प्राकृतिक सामग्रियों के कारण यह कई औषधीय गुणों से समृद्ध होती है. यह दवा हृदय की मांसपेशियों की कार्यप्रणाली में सुधार कर हृदय रोगों से बचाने का काम करती है. साथ ही यह शरीर में वात दोष को भी संतुलित करती है. इस प्रकार से यह ट्राइग्लिसराइड को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है.
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त्रिफला चूर्ण
हाई ट्राइग्लिसराइड की आयुर्वेदिक दवाई के तौर पर त्रिफला चूर्ण का भी सेवन कर सकते हैं. इसे मेटाबॉलिज्म को सुधारने में सहायक माना जाता है, जिससे शरीर में फैट जमा नहीं होता. साथ ही यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी संतुलित करती है. शरीर में फैट के जमा न होने व हाई कोलेस्ट्रॉल के कम होने से ट्राइग्लिसराइड के स्तर में सुधार हो सकता है.
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अर्जुनारिष्ट
ट्राइग्लिसराइड लेवल को कम करने के लिए अर्जुनारिष्ट का सेवन कर सकते हैं. इस दवा को अर्जुन की छाल से तैयार किया जाता है. एक रिसर्च में दिया है कि इस दवा में हाइपोलिपिडेमिक गुण पाया जाता है. यह गुण लिपिड के स्तर, टोटल कोलेस्ट्रॉल, एडीएल यानी खराब कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकता है, जिससे ट्राइग्लिसराइड को संतुलित रखा जा सकता है.
दिव्य हृदयामृत वटी
दिव्य हृदयामृत वटी को बनाने के लिए अर्जुन, पुनर्नवा, प्रवाल, जहर मोहरा भस्म और कई अन्य सामग्रियों को मिलाकर बनाया जाता है. इन सभी सामग्री में औषधीय गुण होते हैं, जो रक्त में फैट को कम कर सकते हैं. इससे ट्राइग्लिसराइड का लेवल सामान्य हो सकता है. इसके अलावा, यह दवा हृदय की आर्टरी में प्लाक को जमने से रोकने में मदद करती है.
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ट्राइग्लिसराइड का आयुर्वेदिक इलाज
हाई ट्राइग्लिसराइड स्तर को कम करने के लिए आयुर्वेदिक दवाई के अलावा आयुर्वेदिक इलाज की भी मदद ली जा सकती है. इसके आयुर्वेदिक इलाज में बस्ती कर्म और विरेचन कर्म शामिल है. आइए, विस्तार से जानें ट्राइग्लिसराइड के आयुर्वेदिक इलाज के बारे में -
विरेचन कर्म
इस आयुर्वेदिक थेरेपी को करने की प्रक्रिया नीचे बताई गई है -
- इसके लिए पहले 6 दिन तक रोजाना सुबह खाली पेट गुनगुने पानी में घी मिलाकर पीना होता है.
- इसके बाद 7वें दिन सुबह खाली पेट विरेचन द्रव्य दिया जाता है. इस द्रव्य में अभयादि मोदक, इच्छाभेदी रस और कुछ अन्य औषधियों को मिलाया जाता है. इसे लेने के 2-3 घंटे बाद दस्त होते हैं.
- दस्त के दौरान हर बार मल त्यागने के बाद रोगी को नींबू पानी या सामान्य पानी पिलाते रहना चाहिए.
- दस्त बंद होने के बाद कुछ घंटे मरीज को आराम करना चाहिए. इससे पेट अच्छी तरह साफ हो जाता है और ट्राइग्लिसराइड लेवल संतुलन में आ सकता है.
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बस्ती कर्म
यहां हम बता रहे हैं ट्राइग्लिसराइड को नियंत्रित करने के लिए बस्ती कर्म को कैसे किया जाता है -
- इस आयुर्वेदिक उपचार की प्रक्रिया में औषधीय तेल या काढ़े का उपयोग किया जाता है. इस प्रक्रिया को शुरू करने से पहले हल्के हाथों से शरीर की मालिश और सिकाई की जाती है.
- इस गुनगुने काढ़े या तेल को एक बस्ती यंत्र के माध्यम से इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कुछ समय बाद मल त्याग होने लगता है.
- मल के माध्यम से शरीर के अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकल जाते हैं. इससे मेटाबॉलिज्म में सुधार होता है और फैट को जमने से रोका जा सकता है. फैट न जमने के कारण कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड के लेवल में उचित गिरावट आ सकती है.
सारांश
असंतुलित लाइफस्टाइल व गलत खान-पान के चलते कोई भी हाई ट्राइग्लिसराइड का शिकार हो सकता है. ऐसे में इस लेख में बताई गईं आयुर्वेदिक दवाओं के माध्यम से इस समस्या को कुछ कम किया जा सकता है. बस इस बात का जरूर ध्यान रखें कि इन आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर ही करें.
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