बच्चों की आर्थिक स्थिति उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी पत्रिका 'बायोमेड सेंट्रल' (बीएमसी) ने इस जानकारी को रिसर्च के साथ प्रकाशित किया है। इसमें फिनलैंड की हेलसिंकी यूनिवर्सिटी, डेनमार्क की आरहस यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का गहन अध्ययन किया। इसमें उन्हें बच्चों में मानसिक विकार से जुड़े जोखिम और माता-पिता की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बीच संबंध होने का पता चला है।
रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने साल 1980 और 2000 के बीच पैदा हुए लगभग 10 लाख डैनिश (डेनमार्क में पैदा हुए) बच्चों के स्वास्थ्य आंकड़ों को खंगाला। इनके आधार पर उन्होंने इस बात की जांच की कि बच्चों के जन्म के वर्ष उनके माता-पिता की आय कितनी थी और बाद में आने वाले वर्षों (5, 10 और 15 साल) में इस आय में कितना बदलाव आया। विश्लेषण के लिए आय से संबंधित पांच वर्ग रखे गए थे। इससे शोधकर्ताओं को बचपन के दौरान और बाद में माता-पिता की आय में आए उतार-चढ़ाव को मापने में मदद मिली।
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शोधकर्ताओं ने डेटासेट में शामिल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य (15 वर्ष की आयु से लेकर मानसिक विकार की जांच या 2016 के आखिर तक) को मॉनिटर किया। इस प्रकार 37 साल की आयु तक फॉलोअप की प्रक्रिया चलती रही। इससे विस्तृत अध्ययन प्रक्रिया से पता चला कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का उनकी आर्थिक स्थिति से संबंध है।
परिणामों पर बात करते हुए हेलसिंकी यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर और शोधकर्ता क्रिश्चियन हकलिनन का कहना है, 'हमारे अध्ययन से पता चला है कि कम आय वाले परिवारों में बच्चे जितना ज्यादा समय तक बड़े होते हैं, उनमें मानसिक विकार विकसित होने का जोखिम उतना अधिक होता है।' अध्ययन के निष्कर्ष के मुताबिक, कम आय वाले माता-पिता के घरों में पैदा हुए 25.2 प्रतिशत बच्चों में 37 साल की उम्र में मेंटल डिसऑर्डर का पता चला है। इसके विपरीत उसी अवधि में अच्छी आमदनी वाले अभिभावकों के घर पैदा हुए 13.5 प्रतिशत बच्चों में मेंटल डिसऑर्डर विकसित हुआ। इसके अलावा, मानसिक विकारों में से केवल एकमात्र डिसऑर्डर खाने से जुड़ा था। इस मामले में कम आयवर्ग वाले अभिभावकों के परिवार में खाने संबंधी विकार के विकसित होने का कम जोखिम कम पाया गया।
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कुल-मिलाकर निष्कर्ष यह था कि जो बच्चे कम आय वाले परिवारों में रहते थे, उनमें मानसिक स्वास्थ्य विकार विकसित होने का जोखिम अधिक था। शोधकर्ता हकलिनन ने बताया, 'हमने देखा है कि एक-तिहाई बच्चे, जो बचपन में कम आय वाले परिवारों में रहते थे, उन्हें बाद में अपने मानसिक विकार का पता चला। जबकि उसी अवधि में अच्छी आय वाले परिवारों में केवल 12 प्रतिशत बच्चों में मेंटल डिसऑर्डर की समस्या का पता चला।' हालांकि अध्ययन डेनमार्क के परिवारों पर केंद्रित है। लेकिन हकलिनन का मानना है, 'रिसर्च का उपयोग अन्य नॉर्डिक देशों के संदर्भ में भी निष्कर्ष निकालने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली मानसिक विकारों के उपचार में काफी समान है।'