मोटापा दैनिक जीवन के कार्यों को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है. वहीं, यह सामान्य स्वास्थ्य समस्याएं जैसे - गैस, एसिडिटीकब्ज आदि का भी कारण बन सकता है. इतना ही नहीं मोटापा गंभीर बीमारियों को भी न्यौता देता है. इसमें हृदय रोग, डायबिटीज, किडनी और लिवर की बीमारियां शामिल हैं. इसके अलावा, मोटापा अस्थमा का कारण भी बन सकता है. मोटापा अस्थमा के विकास और अस्थमा के लक्षणों को गंभीर बना सकता है.

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आज इस लेख में आप मोटापा और अस्थमा के संबंध के बारे में विस्तार से जानेंगे -

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  1. अस्थमा क्या है?
  2. मोटापे और अस्थमा में संबंध
  3. मोटापे के कारण क्यों होता है अस्थमा?
  4. मोटापा कम करने से अस्थमा का जोखिम कैसे कम होता है?
  5. सारांश
क्या मोटापे के कारण अस्थमा हो सकता है? के डॉक्टर

अस्थमा फेफड़ों की एक बीमारी है, जिसमें वायुमार्ग संकीर्ण हो जाता है और सूजन आ जाती है. साथ ही अस्थमा में बलगम का उत्पादन भी अधिक होता है. इस स्थिति में सांस लेना मुश्किल हो जाता है. वैसे तो अस्थमा कई कारणों से हो सकता है, लेकिन मोटापा भी अस्थमा का एक मुख्य कारण हो सकता है. अगर किसी अस्थमा रोगी का वजन अधिक है, तो इससे अस्थमा के लक्षण ट्रिगर हो सकते हैं. इतना ही नहीं मोटापा अस्थमा की दवाइयों के असर को भी कम कर सकता है.

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मोटापा और अस्थमा में बहुत ही गहरा संबंध होता है. मोटापा अस्थमा के जोखिम को बढ़ा सकता है. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, मोटापे के चलते अस्थमा की समस्या हो सकती है और अस्थमा के लक्षण बिगड़ सकते हैं. मोटापे के चलते अस्थमा होने से दवा लेने और अस्पताल में भर्ती होने के मामले बढ़ते हैं.

दिसंबर 2018 में जरनल पेडियाट्रिक में प्रकाशित एक स्टडी में पाया गया कि अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त बच्चों में अस्थमा होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है. इस स्टडी में करीब 5 लाख बच्चे शामिल थे. स्टडी के दौरान पाया गया कि संतुलित वजन वाले बच्चों की तुलना में ओवरवेट बच्चों को अस्थमा होने का जोखिम 8 से 17 प्रतिशत अधिक होता है.

वहीं, मोटापे से ग्रस्त युवाओं में अस्थमा का खतरा 26 से 38 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. ये डेटा डॉक्टर के पास चेकअप के लिए मरीजों और उन्हें दी गई सांस लेने की दवा के आधार पर तैयार किया गया था.  आंकड़ों से पता चलता है कि मोटापे से ग्रस्त बच्चों में अस्थमा के 23 से 27 प्रतिशत नए मामले सीधे तौर पर मोटापे के कारण होते हैं.

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अमेरिकन लंग एसोसिएशन के अनुसार, मोटापा या फिर छाती और पेट पर एक्स्ट्रा फैट होने से फेफड़ों पर दबाव पड़ता है, जिससे वो सिकुड़ जाते हैं. इस स्थिति में व्यक्ति के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है. फैटी टिश्यू की वजह से भी फेफड़ों में सूजन हो सकती है, जिससे फेफड़ों का काम प्रभावित हो सकता है और अस्थमा के लक्षण महसूस हो सकते हैं. 

इसके अलावा मोटापा लोगों को अस्थमा के जोखिम कारकों जैसे - एलर्जी, सिगरेट के धुएं और वायु प्रदूषण आदि के प्रति संवेदनशील बना सकता है. इनका सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है और फिर फेफड़े कमजोर व संकुचित हो सकते हैं. ऐसे में अस्थमा के लक्षण ट्रिगर होना शुरू हो सकते हैं.

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मोटापा, अस्थमा को विकसित कर सकता है, साथ ही अस्थमा के लक्षणों को ट्रिगर भी कर सकता है. ऐसे में अगर कोई अस्थमा रोगी है, तो मोटापे को कम करके अस्थमा के लक्षणों को कम कर सकते हैं. वहीं, अगर किसी को अस्थमा नहीं भी है, तो भी मोटापे को कम करके अस्थमा के जोखिम को कम किया जा सकता है.

अक्टूबर 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि वजन कम करने से आप हेल्दी रह सकते हैं. वजन कम करके फेफड़ों को संकुचित होने से बचाया जा सकता है. साथ ही सांस लेने की क्रिया में भी सुधार हो सकता है. अस्थमा के जोखिम को कम करने के लिए शरीर का कम से कम 5 प्रतिशत वजन जरूर कम करना चाहिए.

बेशक, वजन कम करना फायदेमंद है, लेकिन यह अस्थमा का सटीक इलाज नहीं है. साथ ही इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि यह जरूरी नहीं है कि अगर कोई मोटे नहीं है, तो उसे अस्थमा नहीं हो सकता है. मोटापा सिर्फ इसका एक जोखिम कारक होता है. मोटापे के कम करके अस्थमा के जोखिम और लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है. अस्थमा के लक्षणों में सुधार करने के लिए मोटापे के कम करने के साथ ही धूम्रपान से परहेज करना भी जरूरी है. साथ ही एलर्जी से भी बचने की जरूरत है.

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मोटापा और अस्थमा में एक गहरा संबंध होता है. मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति में अस्थमा विकसित होने की आंशका अन्य लोगों की तुलना में अधिक होती है. वहीं, अगर किसी व्यक्ति को पहले से ही अस्थमा है, तो मोटापा उसके लक्षणों को ट्रिगर कर सकता है. इसलिए मोटापा और अस्थमा एक-दूसरे से संबंधित होते हैं. मोटापे को कम करके अस्थमा के लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है. साथ ही मोटापा अस्थमा के विकसित होने के जोखिम को भी कम कर सकता है.

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