बवासीर को हेमोर्रोइड्स के नाम से भी जाना जाता है। इसमें निचले मलद्वार और गुदा की रक्त वाहिकाओं में सूजन हो जाती है। बवासीर के कारण मल निष्कासन के समय अत्यधिक दबाव पड़ना है। रक्त वाहिकाओं में सूजन के कारण मलद्वार और गुदा की त्वचा पर दिक्कत होने लगती है और इस वजह से गुदा मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार तीन दोषों (वात, पित्त और कफ) के एकसाथ असंतुलित होने पर बवासीर की बीमारी होती है।
आयुर्वेद में जट्यादि तेल से अभ्यंग (तेल मालिश), बस्ती (एनिमा) और विभिन्न आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से मात्रा बस्ती (तेल एनिमा) और सिट्ज बाथ (टब में बैठ कर स्नान करने की एक विधि) आदि का विवरण है। बवासीर को नियंत्रित करने के लिए जड़ी-बूटियों और औषधि की सलाह भी दी जाती है।
बवासीर को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा मंजिष्ठा (भारतीय मजीठ), हरीद्रा (हल्दी), हरीतकी (हरड़), कुटज (कुर्ची) और सूरन (उष्णकटिबंधीय कंद की फसल) आदि जड़ी-बूटियों के प्रयोग की सलाह दी जाती है। बवासीर की औषधियों में कांकायन वटी और त्रिफला गुग्गल टैबलेट शामिल है।
(और पढ़ें - बवासीर में क्या करना चाहिए)