पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम यानि पीासीओएस एक ऐसी स्थिति है जो जिसमें प्रजनन उम्र में महिलाओं की ओवरी के अंदर कई फ्लूइड से भरे फॉलिकल बन जाते हैं। इस कंडीशन से जुड़े कुछ लक्षणों में मासिक चक्र अनियमित या न आना, एग न बनना या कम बनना, ब्लीडिंग अनियमित होना, महिलाओं में मेल हार्मोंस का लेवल बढ़ना, चेहरे और शरीर पर अनचाहे बाल आना, डैंड्रफ, ऑयली स्किन, ज्यादा वजन बढ़ना और पेल्विक हिस्से में दर्द होना।
पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं को फर्टिलिटी की समस्याएं, कंसीव करने में दिक्कत होती है जिसका संबंध शरीर में इंसुलिन हार्मोन या ग्लूकोज लेवल बढ़ने से हो सकता है। ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन के बढ़ने से कंसीव करने की संभावना कम और मिसकैरेज का खतरा बढ़ सकता है।
यह देखा गया है कि लगभग 70 प्रतिशत जिन महिलाओं को ओवुलेशन में दिक्कत आती है, उनकी फर्टिलिटी कम होती है। पीसीओएस की 30 से 50 पर्सेंट मामलों में मिसकैरेज का जोखिम रहता है, जो कि बिना पीसीओएस वाली महिलाओं में तीन गुना ज्यादा है। इस वजह से पीसीओएस को कंट्रोल करना अहम होता है।
हालांकि, आयुर्वेद में पीसीओएस का किया भी गायनेकोलॉजिकल कंडीशन से संबंध नहीं हो सकता है, इसे अर्तव शाय के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो कि महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। पीसीओएस में डिस्मेनोरिया यानि माहवारी के दौरान दर्द होना भी एक आम लक्षण है। पीसीओएस के लिए आयुर्वेदिक इलाज में दीपन और पाचन, शोधन चिकित्सा, वमन कर्म, विरेचन और बस्ती कर्म शामिल है।
पीसीओएस के आयुर्वेदिक इलाज में गुडूची, आमलकी (आंवला), हरिद्रा (हल्दी), अश्वगंधा, करेला, शतावरी, मारीच (काली मिर्च) और औषधियों में चंद्रप्रभा वटी, शतपुष्पादि घनवटी और पथ्यादि चूर्ण शामिल है।