दाद को आयुर्वेद में दद्रु कहा जाता है। ये त्वचा पर लाल या हलके भूरे रंग में गोल आकार का निशान होता है जिसमें खुजली भी होती है। दाद का सबसे सामान्य कारण साफ-सफाई का ध्यान न रखना है जिसकी वजह से त्वचा में कवक (फंगस) घुस जाते हैं। ये समस्या अधिकतर उन देशों में होती है जिनकी जलवायु उमस भरी हो और आबादी अधिक हो।
आयुर्वेद में त्वचा रोगों के लिए विभिन्न उपचारों का उल्लेख किया गया है। लेप दाद को नियंत्रित करने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला बाहरी उपचार है।
दाद के इलाज के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा शंखपुष्पी, हरीद्रा (हल्दी), आरग्वध (अमलतास), चक्रमर्द (चकवड़) और पलाश आदि जड़ी बूटियों के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। दाद को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक मिश्रणों में दद्रुघ्न वटी, महामरिच्यादि तेल, आरोग्यवर्धिनी तेल, आरोग्यवर्धिनी वटी, करंजादी तेल और कैशोर गुग्गुल का इस्तेमाल किया जाता है।
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- आयुर्वेद के दृष्टिकोण से दाद - Ayurveda ke anusar Daad
- दाद का आयुर्वेदिक इलाज - Daad ka ayurvedic upchar
- दाद की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Daad ki ayurvedic dawa aur aushadhi
- आयुर्वेद के अनुसार दाद होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Ringworm me kya kare kya na kare
- दाद के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Daad ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
- दाद की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Ringworm ki ayurvedic dawa ke side effects
- दाद की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Daad ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से दाद - Ayurveda ke anusar Daad
आयुर्वेद में त्वचा रोगों को कुष्ठ रोग के रूप में वर्गीकृत किया गया है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में 18 प्रकार के त्वचा रोगों का वर्णन किया गया है। इसमें महाकुष्ठ (प्रमुख त्वचा रोग) और शूद्र कुष्ठ (सामान्य या मामूली त्वचा विकार) शामिल है। दद्रु को आचार्य सुश्रुत द्वारा महा कुष्ठ और आचार्य चरक द्वारा शूद्र कुष्ठ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
दद्रु के लक्षणों में खुजली, लालपन, फोड़े-फुंसी और गोल आकार के घाव हो जाते हैं। कभी-कभी घाव के बीच में कोई फोड़ा या फुंसी नहीं होती है और ये बिलकुल साफ होता है लेकिन कई बार इसका रंग काला हो सकता है एवं त्वचा के फटने या खुजली की शिकायत हो सकती है। आमतौर पर ये एक त्रिदोषज रोग है जोकि त्रिदोष के खराब होने के साथ-साथ कफ और पित्त दोष के प्रधान रूप से असंतुलित होने के कारण होता है।
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दाद का आयुर्वेदिक इलाज - Daad ka ayurvedic upchar
लेप
- जड़ी बूटियों या जड़ी बूटियों के मिश्रण को घी (क्लैरिफाइड मक्खन: वसायुक्त मक्खन से दूध के ठोस पदार्थ और पानी को निकालने के लिए दूध के वसा को हटाना) में मिलाकर गाढ़ा पेस्ट तैयार किया जाता है जिसे लेप कहते हैं।
- ये रोग का इलाज और उसके लक्षणों से राहत दिलाने में मदद करता है। दाद के इलाज के लिए विभिन्न जड़ी बूटियों से अलग-अलग लेप तैयार किए जाते हैं, जैसे कि:
- मूली के रस में चक्रमर्द।
- मूली के रस में शिग्रु (सहजन) की छाल।
- मंजिष्ठा, त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी), लाख (लाह: एक प्राकृतिक राल), हरीद्रा, गंधक के साथ सरसों का तेल।
- खट्टी दही में विडंग के बीज, सरसों, चक्रमर्द, कुठ की जड़ और काला नमक।
- छाछ में दूर्वा (दूब की घास), हरीतकी के फल का छिलका, चक्रमर्द के बीज और तुलसी के पत्ते।
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दाद की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Daad ki ayurvedic dawa aur aushadhi
दाद के लिए जड़ी बूटियां
- शंखपुष्पी
- इसका स्वाद तीखा और कड़वा होता है एवं इसमें तीक्ष्ण (तीखे) तथा रुक्ष (सूखे) गुण मौजूद होते हैं।
- शंखपुष्पी वमन कर्म (औषधियों से उल्टी करवाने की विधि) में खराब हुए वात और पित्त को साफ करने में मदद करती है।
- शंखपुष्पी की पत्तियों से बना लेप वात दोष के असंतुलन के कारण हुए त्वचा रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। ये रक्त धातु को साफ और शुद्ध करती है।
- शंखपुष्पी का तेल दाद, बच्चों में स्कैल्प (सिर की त्वचा) पर फंगल संक्रमण, खाज (स्कैबीज) और अन्य त्वचा संक्रमणों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- हरीद्रा
- हरीद्रा परिसंचरण, श्वसन और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें जीवाणुरोधी, कृमिनाशक, सुगंधक, वायुनाशक और उत्तेजक गुण मौजूद होते हैं।
- ये रक्त प्रवाह को बेहतर करती है और कई त्वचा रोगों को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। घाव, सूजन और फोड़े-फुंसी आदि को ठीक करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - रक्त प्रवाह बढ़ाने के उपाय)
- आरग्वध
- आरग्वध में पौधों द्वारा निर्मित घटक जैसे कि एल्केलोइड, टैनिन, फ्लेवेनॉएड और सैपोनिन होता है। वैज्ञानिक रूप से ये साबित हो चुका है कि उपरोक्त रासायनिक घटक रोगाणुओं को रोकने का काम करते हैं।
- इसके अलावा आरग्वध फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण को भी नियंत्रित करने में उपयोगी है।
- इसमें रेचक, खांसी रोकने और लिवर की सुरक्षा करने वाले एवं दर्द निवारक गुण मौजूद हैं। (और पढ़ें - लिवर रोग का उपचार)
- चक्रमर्द
- चक्रमर्द यानि चकवड़ में पौधों द्वारा निर्मित अनेक सक्रिय घटक मौजूद होते हैं जिनमें एल्केलाइड, फ्लेवेनॉइड्स, शुगर, ग्लाइकोसिड, कार्बोहाइड्रेट, टैनिन और सैपोनिन शामिल हैं। ये घटक इस जड़ी बूटी के चिकित्सीय गुणों के लिए जिम्मेदार हैं।
- चक्रमर्द कफ और वात दोष को साफ करती है। इससे दाद जैसे त्वचा विकारों को ठीक किया जा सकता है।
- इस जड़ी बूटी में खांसी और खुजली से राहत दिलाने वाले गुण मौजूद हैं।
- पलाश
- पलाश में अनेक रसायनिक घटक जैसे कि ब्यूटेन, ब्यूट्रिन, इसोब्यूट्रिन और पैलासिट्रिन मौजूद हैं। इनके कारण ही पलाश में चिकित्सीय गुण एवं प्रभाव होते हैं।
- सूजन संबंधित रोग, त्वचा रोगों और त्वचा के फंगल संक्रमण (जैसे दाद) को नियंत्रित करने में इसका इस्तेमाल किया जाता है। ये घाव को भरने और तनाव को दूर करने में मदद करता है। (और पढ़ें - तनाव दूर करने के लिए योग)
दाद के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- दद्रुघ्न वटी
- गोली के रूप में उपलब्ध इस मिश्रण में चक्रमर्द सक्रिय घटक के तौर पर उपलब्ध है।
- इसका इस्तेमाल सभी प्रकार के त्वचा संक्रमणों जैसे कि दाद और सफेद दाग के इलाज में किया जाता है। (और पढ़ें - सफेद दाग में क्या खाना चाहिए)
- महामरिच्यादि तेल
- करंजादी तेल
- करंजादी तेल में प्रमुख तौर पर कुठ, चित्रकमल, कनेर और चमेली पुष्प के साथ करंज का रस मौजूद है। (और पढ़ें - चमेली के तेल के फायदे)
- ये दाद और कई तरह के त्वचा संक्रमणों का इलाज करने में प्रभावी है।
- आरोग्यवर्धिनी वटी
- ये एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक मिश्रण है जिसका इस्तेमाल त्वचा रोगों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
- इसमें प्रमुख तौर पर त्रिवृत के साथ अन्य हर्बोमिनरल (मिनरल और जड़ी बूटियों का मिश्रण) सामग्री जैसे कि नीम, त्रिफला, अभ्रक भस्म (अभ्रक को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), ताम्र भस्म (तांबे को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) आदि मौजूद है।
- इन घटकों को पित्त विरेचन (मल द्वारा पित्त को साफ करना), कफ शमन (कफ की सफाई) और वात अनुलोमन (वात को साफ और नियंत्रित करना) गुणों के लिए जाना जाता है।
- इसके अलावा ये दीपन (भूख बढ़ाने वाला), पाचन, मेदोहर (वजन कम करने के लिए) और त्रिदोष शामक कार्य भी करती है। (और पढ़ें - वजन कम करने और घटाने के उपाय)
- आरोग्यवर्धिनी वटी दोष को संतुलित करने और शरीर की सफाई करने की प्रक्रिया में मदद करती है। इसलिए ये दाद के साथ-साथ कई त्वचा रोगों को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
- कैशोर गुग्गुल
- कैशोर गुग्गुल में गुग्गुल, गुडुची और त्रिफला प्रमुख घटक के रूप में मौजूद हैं। इन जड़ी बूटियों में बढ़े हुए पित्त को खत्म करने और खून को साफ करने वाले गुण मौजूद हैं। (और पढ़ें - खून को साफ करने वाले आहार)
- ये सभी प्रकार के त्वचा रोगों को नियंत्रित करने में उपयोगी है। ये सौंदर्य को निखारने एवं त्वचा की चमक को भी बढ़ाती है। (और पढ़ें - सिर्फ 7 दिनों में त्वचा पर चमक लाने का सीक्रेट)
व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
आयुर्वेद के अनुसार दाद होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Ringworm me kya kare kya na kare
क्या करें
- साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें और अपने शरीर एवं जननांगों की सफाई का खास ध्यान रखें। (और पढ़ें - निजी अंगों की सफाई कैसे करें)
- ढीले और साफ कपड़े पहनें।
- दिन में दो बार कपड़े बदलें।
क्या न करें
- अनुचित खाद्य पदार्थ जैसे कि मछली के साथ दूध आदि न लें।
- दूषित और बासी भोजन न खाएं। (और पढ़ें - सेहत के लिए क्या खाना जरूरी है)
- प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि मल निष्कासन और पेशाब को रोके नहीं।
- शारीरिक कार्य या धूप से आने के बाद तुरंत बर्फ या ठंडा पानी न पीएं।
- दिन के समय सोने से बचें। (और पढ़ें - सोने का सही समय क्या है)
- अत्यधिक मात्रा में अम्लीय (एसिड) या नमकीन चीज़ें न खाएं।
(और पढ़ें - दाद का रामबाण इलाज)
दाद के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Daad ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
एक मामलें के अध्ययन से पता चला कि 55 वर्षीय एक पुरुष की छाती और बाईं जांघ पर गोल आकार के लाल चकत्ते थे। उस व्यक्ति को यह समस्या पिछले चार महीनों से थी। आयुर्वेदिक चिकित्सा से उपचार के लिए उसे आरोग्यवर्धिनी वटी और कैशोर गुग्गुल खाने को दी गई। इसके साथ ही मरिच्यादि तेल लगाने को दिया गया। उस व्यक्ति को प्रभावित हिस्से में खुजली और जलन महसूस हो रही थी साथ ही उसे मल निष्कासन (अनियमित या कम) से संबंधित समस्या भी हो रही थी।
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उपचार के 15 दिनों के अंदर ही खुजली, लालपन और गोल आकार के फोड़े-फुंसी जैसे लक्षणों में सुधार पाया गया। भूख और मल निष्कासन की क्रिया में भी सुधार देखा गया। वहीं उस व्यक्ति को दोबारा इस तरह की स्वास्थ्य समस्या नहीं हुई।
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दाद की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Ringworm ki ayurvedic dawa ke side effects
प्राचीन समय से ही आयुर्वेदिक उपचार, जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्तेमाल होता आ रहा है और ये प्राकृतिक चिकित्सा के रूप में बहुत प्रसिद्ध हैं। वैसे तो इनके कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होते हैं लेकिन फिर भी आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही इनका सेवन करने की सलाह दी जाती है।
कुछ जड़ी बूटियां किसी रोग या व्यक्ति की प्रकृति के प्रतिकूल (अनुचित) हो सकती हैं। जैसे कि हरीद्रा दाद के इलाज में तो असरकारी है लेकिन अत्यधिक पित्त वाले व्यक्ति को इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
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दाद की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Daad ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
स्वस्थ त्वचा पैथोलॉजिकल जीवों (अपना खाना खुद बनाने वाले जीवाणु) के आक्रमण से बचाने में मदद करती है। त्वचा को स्वस्थ बनाकर स्किन के कई तरह के संक्रमणों जैसे कि दाद से बचने में मदद मिलेगी। दाद एक सामान्य त्वचा संक्रमण है जिसके कई इलाज उपलब्ध हैं लेकिन आयुर्वेदिक औषधियां और उपचार बिना किसी दुष्प्रभाव के रोग को जड़ से खत्म करते हैं और उसे दोबारा होने से भी रोकते हैं।
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संदर्भ
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- Subhash Ranade. Kayachikitsa: A Text Book of Medicine. Chaukhamba Sanskrit Pratishthan, 2001 - Medicine, Ayurvedic