हमें हमेशा एक अच्छी सुबह की कल्पना करनी चाहिए। यदि आप ऑफिस जाते हैं तो, सुबह अपने लिए थोड़ा समय निकालने की कोशिश करें। आप पार्क में 35 मिनट तक पैदल चल सकते हैं। हृदय रोग विशेषज्ञों का कहना है कि रोजाना 35 मिनट 6 कि.मी प्रति घंटे की रफ्तार से चलना दिल की सेहत के लिए फायदेमंद होता है या 15 मिनट के योग से भी फायदा मिल सकता है साथ ही इससे आपकी सांस लेने की क्षमता भी बेहतर होती है। यदि आप एक ऐसे शहर में रहते हैं, जहां प्रदूषण है तो आप घर से बाहर निकलकर एक्सरसाइज करने की बजाय घर के अंदर रहकर भी योग की मदद से स्वस्थ रह सकते हैं।
योग का इतिहास 5,000 साल पुराना है, जिसे दिनचर्या में अपनाने से आपका सारा जीवन बेहतर हो सकता है। कुछ विशेष तरह के योगासन शरीर के विभिन्न हिस्सों को भी प्रभावित करते हैं, उदाहरण के लिए - प्रतिदिन प्राणायाम का अभ्यास करने से फेफड़ों को मजबूत, नासिका मार्ग को साफ, हृदय से जुड़ी परेशानियों और सांस लेने की प्रक्रिया में सुधार लाया जा सकता है।
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शोध से पता चला है कि योग, ब्रोन्कियल अस्थमा के लक्षणों के साथ-साथ तनाव से होने वाले अस्थमा के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। अक्टूबर 2000 में, द लैंसेट में प्रकाशित एक लेख - "योग एंड कीमोरिफ्लेक्स रिस्पॉन्स टू हाइपोक्सिया एंड हाइपरकेपनिया'' में बताया गया है कि योग करने वाले लोगों में धीमी सांस लेने से तेजी से कीमोरिफ्लेक्स (केमिकल्स के बढ़ने पर सांस लेने की गति में बदलाव आने लगता है) की संवेदनशीलता में कमी आ सकती है, वहीं इसे रोज करने से इसका लाभ बड़ी मात्रा में मिल सकता है।
कीमोरिफ्लेक्स की संवेदनशीलता बताती है कि आपका शरीर कार्बन डाइऑक्साइड जैसे रसायनों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करता है। शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता से हाइपरकेपनिया नामक स्थिति उत्पन्न होती है, जिसमें सुस्ती और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी आ सकती है। कुछ गंभीर मामलों में, हाइपरकेपनिया के कारण पैनिक अटैक (भय या घबराहट की वजह से दौरे पड़ना), पागलपन और दौरे की आशंका हो सकती है। हाइपरकेपनिया का संबंध क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज या सीओपीडी से है।
स्वस्थ फेफड़ों और सांस लेने की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए निम्न छह आसनों को आजमाया जा सकता है:
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सालाभासन:
- चटाई पर पीठ के बल लेट जाएं
- अपने दोनों पैरों को धीरे से फर्श से ऊपर की ओर उठाएं
- अब पैरों के बराबर अपने हाथों को भी फर्श से ऊपर उठाएं
- भुजाओं को ऊपर उठाने से आपका सिर और छाती भी ऊपर की तरफ उठने लगेंगे
- जांघों की मदद से घुटनों को झुकाए बिना पैरों को और अधिक उठाने की कोशिश करें। आपका वजन निचली पसलियों और पेट पर होना चाहिए।
भुजंगासन:
- चटाई पर उल्टा मुंह करके लेट जाएं
- अपनी हथेलियों को अपने कंधों के बराबर ले जाएं
- पैरों के अंतिम भाग को जमीन पर रख दें
- अब छाती को ऊपर उठाने के लिए अपने हाथों से फर्श को धक्का दें, जिससे आपकी सिर और छाती ऊपर उठ जाएगी, लेकिन पेट अभी भी चटाई पर रहना चाहिए
- आगे की ओर देखें और अपने कंधों को आराम से वापिस रखें
- सांस छोड़ें और अपने आप को पेट के बल वाली साधारण मुद्रा में ले आएं
मत्स्यासन:
- पीठ के बल लेट जाएं
- अब हाथों को जमीन पर रखें लेकिन हथेलियां नीचे की ओर रहनी चाहिए
- सांस लें और छाती को जमीन से ऊपर उठाएं एवं अपने सिर को पीछे ले जाएं, ध्यान रहे सिर का पिछला हिस्सा जमीन को छू रहा हो
- अब संतुलन बनाने के लिए कोहनी का प्रयोग करें, अपनी पीठ को एक अर्द्ध गोलाकार अवस्था में ले जाएं।
- कुछ सेकेंड के लिए (30 से 40 सेकंड के लिए इसी मुद्रा में रहने की कोशिश करें) इस आसन को करें और सामान्य रूप से सांस लें
- अब इस मुद्रा से बाहर आने के लिए गर्दन को सीधा करें और धीरे से वापस पीठ के बल लेट जाएं।
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अंजनेयासन:
- नीचे घुटने मोड़ कर बैठ जाएं, अब किसी मेज या फिर चार पैर वाले पशु की तरह पोजीशन लें। अब अपने शरीर के साथ एक उल्टा "वी" बनाएं। आपकी हथेलियां और आपके पैरों के तलवे फर्श को छूने चाहिए। जितना संभव हो, फर्श पर एड़ी के पूरे भाग को रखने की कोशिश करें
- सांस छोड़ें और अपने दाहिने पैर को अपने दाहिने हाथ के बराबर में लाएं
- सुनिश्चित करें कि पैर सीधा हो और दाहिना घुटना और टखना एक सीध में हो
- अपने बाएं घुटने को धीरे-धीरे पीछे की ओर ले जाएं और फर्श पर रखें
- एक गहरी सांस लेते हुए शरीर को ऊपर उठाएं व अपने हाथों को सिर से ऊपर ऐसे उठाएं कि आपके बाइसेप्स आपके कानों को छू रहे हों और आपकी हथेलियां आपस में जुड़ी हों
- सांस छोड़ें और कूल्हों को आगे की ओर ले जाएं
- अब पैरों, कूल्हे और ललाट में खिंचाव को महसूस करें
- जितना संभव हो उतना अपने पीठ के निचले हिस्से को पीछे करके झुकें। अपनी बाहों को आगे पीछे करें
- कुछ सेकेंड के लिए इसी मुद्रा में रहें और फिर अपने हाथों को वापिस चटाई पर रखकर कुछ क्षण आराम करें
- अब अपने बाएं पैर से यही क्रिया वापिस दोहराएं
पादंगुष्ठासन:
- सीधे खड़े हों और पैरों के बीच 2 से 3 इंच का अंतर रखें
- सांस छोड़ें और आगे की ओर झुकें
- अब पैर के दोनो पंजों के अंगूठों को पकड़ने के लिए अपनी हांथों की पहली व दूसरी उंगली और अंगूठे का प्रयोग करें
- अपने हाथ की उंगलियों से पैर की उंगलियां दबाएं
- सांस छोड़ें और अपने धड़ को ऊपर उठाएं, फिर सांस छोड़ते हुए आगे झुकें
- इस मुद्रा में 30 से 60 सेकंड तक रहें
उत्तान शिशोसन
- सबसे पहले किसी मेज की तरह दोनों हाथ पैरों को जमीन पर रखें। घुटनों कोमोड़ें और कूल्हों को ऊपर की ओर उठाएं और हाथों को बिलकुल सीधा रखें। अब अपने पैर की उंगलियों को पीछे की तरफ करें और कूल्हे की चौड़ाई के बराबर पैरों में अंतर होना चाहिए
- अब हाथ की उंगलियों को फैलाएं
- सांस छोड़ें और कूल्हों को एड़ी की ओर आगे पीछे करें। अपनी बाहों को सक्रिय रखें। आपकी कोहनी जमीन को नहीं छूनी चाहिए
- अपने सिर को नीचे फर्श पर ले जाएं, गर्दन को आराम दें। अब रीढ़ में आपको खिंचाव महसूस होगा
- इस मुद्रा को 30 सेकेंड से एक मिनट तक करें
- आराम करने के लिए अपने नितंबों को एड़ी पर रखें
ध्यान दें कि आपको कितनी बार धड़ को फैलाने, ऊपर देखने और सही तरीके से सांस लेने के लिए निर्देश दिया गया है। इस प्रत्येक आसन से सांस लेने में सुधार व छाती और फेफड़ों का संकुचन दूर होता है।
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