सिफलिस एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जो 'ट्रेपोनेमा पैलिडम' नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है। यह एक यौन संचारित रोग है, यानी जब आप सिफिलिटिक छाले से ग्रस्त किसी व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो ऐसे में सिफलिस का खतरा होता है। ये छाले बाहरी जननांगों, योनि, गुदा, मलाशय, मुंह और होंठों पर दिखाई दे सकते हैं। आमतौर पर सिफलिस यौन गतिविधियों की वजह से फैलता है, लेकिन कई बार यह सिफलिस से पीड़ित व्यक्ति के संपर्क (बिना सेक्स किए) में आने से भी फैल सकता है। यह एक संक्रमित मां से उसके अजन्मे बच्चे में भी फैल सकता है, इस स्थिति को कंजेनाइटल सिफलिस कहते हैं और यह जानलेवा हो सकता है। इसके अलावा यह ब्लड ट्रांसफ्यूजन (खून चढ़ाने) या दूषित सुइयों के माध्यम से फैल सकता है।
सिफलिस एक्यूट (अचानक व तेज) और क्रोनिक (धीरे-धीरे व लंबे समय तक प्रभावित करने वाला) दोनों रूप से प्रभावित कर सकता है। इसमें पड़ने वाले छाले शरीर के ज्यादातर अंगों पर देखे जा सकते हैं। एचआईवी और सिफलिस एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सिफलिस से पीड़ित व्यक्ति जो एचआईवी पॉजिटिव है उनमें पेनिसिलिन से रिकवर होने की संभावना उन लोगों के मुकाबले बेहद कम होती है, जो एचआईवी पॉजिटिव नहीं है। सिफलिस के मरीजों में एचआईवी पॉजिटिव होने की आशंका अधिक होती है। यदि इस स्थिति का इलाज नहीं किया जाता है तो सिफलिस नसों, मस्तिष्क और शरीर के ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकता है। पुरुष, विशेष रूप से समलैंगिक, महिलाओं की तुलना में सिफलिस (उपदंश) के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। यह संक्रमण अक्सर 15 से 39 वर्ष के बीच के व्यक्तियों में पाया जाता है।
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कंजेनाइटल सिफलिस का निदान बच्चे के जन्म के तुरंत बाद हो जाता है, इसमें दिखाई देने वाले लक्षण गर्भावस्था के दौरान मां से बच्चे में पारित होते हैं। एक्वॉयर्ड सिफलिस, जो किशोरावस्था या वयस्कता में होता है, यह 3 अलग-अलग चरणों में होता है- प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक, बीच में विलंबता के एक चरण के साथ :
- प्राथमिक चरण - इसमें संक्रमण वाले स्थान पर दर्द रहित छाले होने लगते हैं। इस संक्रमित घाव को यदि दूसरा व्यक्ति हाथ लगाएगा, तो यह समस्या उसे भी प्रभावित कर सकती है। यह लीजन संक्रमित होने के 2-3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं और 3-6 सप्ताह तक बने रहते हैं, जिसके बाद यह अपने आप ठीक हो जाते हैं। इसके बाद यह रोग दूसरे चरण की ओर बढ़ता है।
- माध्यमिक चरण - यह चरण कई अन्य बीमारियों की नकल करता है। यह अल्सर विकसित होने के 4-10 सप्ताह बाद विकसित होते हैं। माध्यमिक चरण के सामान्य लक्षणों में गले में खराश, बुखार, जोड़ों में दर्द और मांसपेशियों में दर्द, पूरे शरीर पर चकत्ते (विशेषकर हथेलियों और तलवों), सिरदर्द, बाल झड़ना, भूख में कमी और लिम्फ नोड्स में सूजन शामिल है। यह चरण उपचार के बिना ठीक हो जाता है, लेकिन रोग अगले चरण तक बढ़ सकता है।
- लैटेंट (डॉर्मेंट) फेज - 'अर्ली लैटेंट फेज' संक्रमण के बाद शुरुआती 12 महीने में होता है। इस चरण में, संक्रमित व्यक्ति के कोई लक्षण नहीं होते हैं, लेकिन फिर भी वह संक्रामक होता है। 'लेट लैटेंट फेज' तब होता है जब संक्रमण 12 महीने से अधिक समय तक बना रहता है और रोगी एसिम्टोमैटिक और आमतौर पर संक्रामक नहीं होता है। हालांकि, संक्रमण अभी भी मां से उसके अजन्मे बच्चे तक ब्लड ट्रांसफ्यूजन के माध्यम से प्रेषित हो सकता है।
- तृतीयक चरण - लगभग एक तिहाई रोगी तृतीयक चरण तक आते हैं, ऐसा कई साल या दशकों तक लैटेंट सिफलिस से ग्रस्त रहने के बाद होता है। इस अवस्था में हृदय, मस्तिष्क, हड्डियां और त्वचा प्रभावित होती है। इस चरण में रोग का पूर्वानुमान आमतौर पर नहीं हो पाता है। कंजेनाइटल सिफलिस के मामले में जन्म के समय बच्चे का वजन कम होता है, इसके अलावा उनमें जन्म से असामान्यता भी देखी जा सकती है। इन असामान्यताओं में हड्डी और दांत की बनावट सही न होना; मस्तिष्क का संक्रमण; हृदय, किडनी और लिवर बढ़ना; पीलिया; ग्रंथियों में सूजन; चकत्ते और खून की कमी शामिल हैं।
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सिफलिस का निदान निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
- ब्लड टेस्ट के माध्यम से
- कल्चर टेस्ट, जिसमें त्वचा के घाव से ऊतक के नमूने लिए जाते हैं
- रीढ़ की हड्डी में द्रव विश्लेषण
सिफलिस का इलाज एंटीबायोटिक्स, आमतौर पर पेनिसिलिन के साथ किया जाता है। अच्छी बात यह है कि सिफलिस को सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है, खासकर यदि इसका उपचार उचित समय पर शुरू कर दिया जाए। इस संक्रमण का इलाज करने से स्थिति को बदतर होने से रोका जा सकता है, लेकिन जिन अंगों को नुकसान हुआ है उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है। इसलिए लक्षणों को नोटिस करते ही डॉक्टर से परामर्श करें।
पारंपरिक उपचार के अलावा सिफलिस का होम्योपैथिक उपचार भी मौजूद है। यह न केवल लक्षणों से छुटकारा दिलाता है, बल्कि यह संक्रमण को सफलतापूर्वक दूर करने में भी मदद करता है। यह बीमारी की प्रगति व आगे के चरणों में जाने से रोकता है। होम्योपैथिक डॉक्टर रोगी के व्यक्तित्व के आधार पर उपाय निर्धारित करते हैं। उपदंश के उपचार के लिए उपयोग किए जाने वाले सामान्य उपचारों में शामिल हैं औरुम मेटालिकम, फ्लोरिकम एसिडम, कैलियम आयोडेटम, मर्क्यूरियस सॉल्युबिलिस, नाइट्रिकम एसिडम, फाइटोलैक्का सेंड्रा, इस्टिलिंग्या सिल्वाटिका और सिफिलिनम।