टाइफाइड बुखार एक संक्रामक रोग है जो ‘साल्मोनेला टाइफी’ (Salmonella typhi) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। अगर इस रोग का सही समय पर निदान या इलाज न हो तो ये घातक साबित हो सकता है। संक्रमित खान-पान के कारण आपको टाइफाइड हो सकता है। टाइफाइड में दीर्घकालीन बुखार होता है, जो 104 डिग्री तक बढ़ सकता है। इसके अलावा टाइफाइड में सिरदर्द, मतली, भूख न लगना, कमजोरी, कब्ज, और कभी-कभी दस्त भी हो सकते हैं।

टाइफाइड, विकासशील देशों में होने वाले सबसे गंभीर इन्फेक्शन में से एक है। सामान्य तौर पर, इसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है। हालांकि, आजकल एंटीबायोटिक दवाओं में अवरोध उत्पन्न करने वाले कई मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें रोगी को होमियोपैथिक इलाज की मदद लेनी पड़ती है।

होम्योपैथी में टाइफाइड के इलाज के लिए कई उपचार व दवाएं उपलब्ध हैं। इसके इलाज के लिए सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली होम्योपैथिक दवा है ‘बैप्टीशिया टिनक्टोरिया’ (Baptisia tinctoria)। इस दवा का उपयोग टाइफाइड से बचाव के लिए भी किया जाता है।

(और पढ़ें - टाइफाइड होने पर क्या करे)

  1. होम्योपैथी में टाइफाइड का इलाज कैसे होता है - Homeopathy me typhoid ka ilaaj kaise hota hai
  2. टाइफाइड की होम्योपैथिक दवा - Typhoid ki homeopathic dawa
  3. होम्योपैथी में टाइफाइड के लिए खान-पान और जीवनशैली के बदलाव - Homeopathy me typhoid ke liye khan-pan aur jeevanshaili ke badlav
  4. टाइफाइड के होम्योपैथिक इलाज के नुकसान और जोखिम कारक - Typhoid ke homeopathic ilaj ke nuksan aur jokhim karak
  5. टाइफाइड के होम्योपैथिक उपचार से जुड़े अन्य सुझाव - Typhoid ke homeopathic upchar se jude anya sujhav
टाइफाइड बुखार की होम्योपैथिक दवा और इलाज के डॉक्टर

होम्योपैथिक दवाओं को इतना अधिक घोल कर बनाया जाता है कि वास्तविक पदार्थ का एक भी यौगिग दिखाई नहीं देता है। ये दवाएं प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करती हैं और शरीर में मौजूद टी व बी कोशिकाओं को सक्रिय करती हैं। इसके कारण शरीर में टाइफाइड करने वाले बैक्टीरिया से लड़ने के लिए एंटीबॉडी का निर्माण होता है। इस विषय पर की गई एक रिसर्च के अनुसार बैप्टीशिया टिनक्टोरिया (Baptisia tinctoria) जैसी होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग न केवल टाइफाइड बुखार के इलाज के लिए, बल्कि इससे बचाव के लिए भी किया जा सकता है।

(और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के घरेलू उपाय)

होम्योपैथी का लक्ष्य होता है रोगी की बीमारी के लक्षण, जीवनशैली, पहले हुई समस्याएं, अनुवांशिक और पारिवारिक कारक को ध्यान में रखते हुए उसका इलाज करना। होम्योपैथी में ऐसा माना जाता है कि हर एक व्यक्ति दूसरे से अलग होता है और यहां तक कि उनमें किसी भी रोग के लक्षण भी अलग-अलग देखने को मिलते हैं। इसीलिए हर व्यक्ति को अलग होम्योपैथिक दवा दी जाती है।

होम्योपैथिक इलाज किसी भी उम्र के व्यक्ति, बच्चों, गर्भवती महिलाओं और यहां तक कि बूढ़े लोगों के लिए भी सुरक्षित होता है। इस संक्रमण की स्थिति में रोगी को एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक के पास जाना चाहिए ताकि उसे सही समय पर जल्द-से-जल्द उचित दवा, खुराक और सही उपचार दिया जा सके।

(और पढ़ें - टायफाइड में क्या खाना चाहिए)

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होम्योपैथी में ऐसी कई दवाएं हैं जो टाइफाइड के लिए दी जा सकती हैं, लेकिन जैसे पहले बताया गया है, हर व्यक्ति में टाइफाइड के अलग लक्षण होते हैं, इसीलिए डॉक्टर उन्हें लक्षणों के आधार पर अलग-अलग दवाएं देते हैं।

लक्षणों के आधार पर दी जाने वाली कुछ दवाएं निम्नलिखित हैं:

  • आर्सेनिकम एल्बम (Arsenicum album)
    सामान्य नाम: आर्सीनियस एसिड (Arsenious acid)
    लक्षण: ये दवा नीचे दिए गए लक्षण अनुभव होने पर दी जाती है:
    • समय-समय पर बुखार होना व सुबह के तीन बजे के आस-पास शरीर का तापमान बढ़ना।
    • तापमान कम होने के बाद रोगी को बहुत ज्यादा थकान महसूस होना। (और पढ़ें - थकान दूर करने के लिए क्या खाएं)
    • बार-बार बुखार होना। (और पढ़ें - तेज बुखार होने पर क्या करें)
    • बेचैनी महसूस होना। इस स्थिति में व्यक्ति बेचैनी दूर करने के लिए कभी लेटता है, चलता है, बैठता है, टांगे हिलाता है और बार-बार अपनी पोजीशन बदलता रहता है।
    • जीभ का सूखना व लाल होना, जिसके साथ मुंह में तेज जलन होती है।
    • पूरे शरीर में जलन होना। 
    • खाने को देखने व उसकी गंध से भी परेशानी होना।
    • तेज प्यास लगना पर ज्यादा पानी न पी पाना। (और पढ़ें - टायफाइड में क्या खाना चाहिए)
       
  • बेलाडोना (Belladonna)
    सामान्य नाम: डेडली नाइटशेड (Deadly nightshade)
    लक्षण: नीचे दिए गए लक्षण अनुभव करने पर ये दवाएं दी जाती है:
  • ब्रायोनिआ एल्बा (Bryonia alba)
    सामान्य नाम: वाइल्ड हॉप्स (Wild hops)
    लक्षण: ये दवा नीचे दिए गए लक्षण अनुभव करने पर दी जाती है:
    • सिर, पीठ और हाथ-पैरों में दर्द होना जो हिलने-डुलने के कारण बढ़ जाता है।
    • होंठ सूखना व फटना और जीभ का सफ़ेद हो जाना।
    • बुखार होने पर नब्ज तेज चलना।
    • ठंड लगना व त्वचा ठंडी पड़ना।
    • पेट की समस्याएं होना और सुबह उठते ही मतली महसूस होना।
    • बिलकुल भी भूख न लगना और खाने का स्वाद न आना। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने के उपाय)
    • पेट में दबाव महसूस होना जैसे अंदर कोई पत्थर मौजूद हो। (और पढ़ें - पथरी का इलाज)
    • गर्मी के मौसम में समस्या बढ़ जाना।
    • पेट पर हाथ लगाने पर दर्द होना। (और पढ़ें - पेट दर्द में क्या खाना चाहिए)
       
  • बैप्टीशिया टिनक्टोरिया (Baptisia tinctoria)
    सामान्य नाम: वाइल्ड इंडिगो (Wild indigo)
    लक्षण: टाइफाइड के मामलों में बैप्टीशिया टिनक्टोरिया सबसे ज्यादा दी जाने वाली दवा है। इसे निम्नलिखित लक्षण होने पर दिया जाता है:
    • मांसपेशियों में ऐंठन महसूस होना। शरीर के किसी भी भाग को छूने पर या लेटने पर अकड़न महसूस होना जैसे चोट लगी हो।
    • बहुत ज्यादा कमजोरी होना। रोगी को इतनी कमजोरी महसूस होती है कि वह अपनी परेशानी भी व्यक्त नहीं कर पाता। रोगी बात करते हुए बीचे में ही सो जाता है। (और पढ़ें - कमजोरी दूर करने के घरेलू उपाय)
    • गले में कुछ अटका हुआ महसूस होने के कारण ठोस खाद्य पदार्थ निगलने में समस्या होना।
    • बुखार के साथ-साथ भूख न लगने की समस्या होना और पेट खाली महसूस होना।
    • रोगी का सोने का मन करना पर उसे नींद न आना व बेचैनी होना।
    • जीभ का बीच में से भूरा व सूखा होना और साइड से चमकदार होना। (और पढ़ें - अच्छी नींद आने के उपाय)
       
  • जेल्सीमियम (Gelsemium)
    सामान्य नाम: येलो जैस्मिन (Yellow jasmine)
    लक्षण: नीचे दिए गए लक्षण होने पर ये दवा दी जाती है:
    • बुखार में बहुत ज्यादा कंपन के कारण रोगी को पकड़कर रखने की आवश्यकता होना। (और पढ़ें - कंपकंपी का इलाज)
    • बुखार में बहुत कमजोरी व थकान महसूस होना जिसके कारण रोगी का बस लेटे रहने का मन करता है।
    • टेस्ट के दौरान व्यक्ति की जीभ कांपना।
    • हाथ-पैर ठंडे होना। (और पढ़ें - हाइपोथर्मिया के लक्षण)
    • लगातार उनींदापन महसूस होना और नींद में बड़बड़ाना।
    • सिर चकराना व ठीक से देख न पाना।
    • पेट से संबंधित समस्याएं होना। (और पढ़ें - पेट में इन्फेक्शन का इलाज)
    • प्यास न लगना।

जेल्सीमियम दवा टाइफाइड के शुरूआती चरणों में देने के लिए अधिक उचित होती है जब रोगी को कमजोरी महसूस होती है।

  • फॉस्फोरिकम एसिडम (Phosphoricum acidum)
    सामान्य नाम: एसिड फॉस्फोरस (Acid phosphorus)
    लक्षण: निम्नलिखित लक्षणों में ये दवा दी जाती है:
    • बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होना।
    • हिल-डुल न पाना और केवल बेड पर लेटे रहना।
    • धीरे-धीरे बोलना। (और पढ़ें - बोलने में दिक्कत के कारण)
    • दिमागी तौर पर शारीरिक तौर से ज्यादा थका हुआ महसूस करना।
    • पेट में तनाव और घातक दस्त होना। (और पढ़ें - दस्त रोकने के घरेलू उपाय)
    • दर्द के बिना दस्त होना और मल का रंग हल्का होना, कभी-कभी सफेद रंग का मल आना।
       
  • रस टोक्सिकोडेन्ड्रन (Rhus toxicodendron)
    सामान्य नाम: पोइज़न आइवी (Poison ivy)
    लक्षण: इस दवा को देने के लिए रोगी में निम्नलिखित विशेष लक्षण मौजूद होने चाहिए:
    • जीभ के आगे तिकोनी लाल नोक होना।
    • बेचैनी होना, रोगी का बिस्तर में बार-बार पोज़ीशन बदलना।
    • बहुत ज्यादा ठंड लगना, जैसे किसी ने रोगी पर ठंडा पानी डाला हो।
    • त्वचा पर अर्टिकेरिया जैसे लक्षण होना।
    • इतनी ज्यादा थकान महसूस होना कि व्यक्ति को थकावट के ही सपने आना।
    • मुंह का स्वाद कड़वा होना और प्यास न बुझना। व्यक्ति को लगातार दूध पीने की इच्छा होती है।

(और पढ़ें - दूध कब पीना चाहिए)

 

होम्योपैथी के अनुसार टाइफाइड में क्या करना चाहिए और क्या नहीं के बारे में नीचे दिया गया है:

क्या करें:

  • लंबे समय तक चलने वाली बिमारियों में रोगी का ध्यान रखने वालों को ये सलाह दी जाती है कि उसे जो भी चीज खाने-पीने के लिए चाहिए, वह चीज उसे दी जाए। (और पढ़ें - बुखार में क्या खाएं)
  • ऐसी बिमारियों में रोगी को खाने-पीने का मन होता है, उसे वह देनी चाहिए क्योंकि इससे रोगी को आराम मिलता है और वह बेहतर महसूस करता है।
  • रोगी को शारीरिक और मानसिक तौर पर आराम करने दें। (और पढ़ें - मानसिक रोग के लक्षण)

क्या न करें:

  • रोगी को ऐसी कोई भी चीज न दें जो होम्योपैथिक इलाज में बाधा डाल सकती है, क्योंकि इन दवाओं को पहले ही बहुत कम मात्रा में दिया जाता है। नीचे दी गई चीजें होम्योपैथिक दवाओं के प्रभाव पर असर डाल सकती हैं:
  • रोगी को आराम करने दें और उसे परेशान न करें। व्यक्ति को कोई तनाव या उत्तेजित करने वाली बात न बताएं।

(और पढ़ें - संतुलित आहार के फायदे)

होम्योपैथिक दवाएं खाने में सुरक्षित होती हैं और ये बिमारियों को जड़ से ठीक करती हैं। लेकिन ऐसा तब होता है जब किसी योग्य होम्योपैथिक डॉक्टर से उचित समय पर सही दवा ली जाती है। आजतक होम्योपैथिक दवाओं के कोई दुष्प्रभाव सामने नहीं आए हैं, टाइफाइड के मामले में आपको डॉक्टर से सलाह लेकर उचित खुराक में सही दवा लेने की आवश्यकता होती है। एक बार ठीक होने के बाद भी टाइफाइड बुखार दोबारा हो जाता है, इसीलिए इसकी सही दवा लेना आवश्यक है ताकि इसे जड़ से खत्म किया जा सके और ये दोबारा न हो।

(और पढ़ें - टाइफाइड डाइट चार्ट)

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रोगी का बहुत ज्यादा ध्यान रखने और उसके लक्षणों की निगरानी करने के बाद चुनी गई उचित होम्योपैथिक दवा से टाइफाइड जैसे संक्रामक रोग को ठीक किया जा सकता है। टाइफाइड ज्यादातर संक्रमित खान-पान से फैलता है, इसीलिए व्यक्ति को अपने खाने-पीने के पदार्थों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अगर आपको कोई भी पेट से संबंधित समस्या, बुखार या नसों से संबंधित समस्या अनुभव होती है, तो जल्द से जल्द डॉक्टर के पास जाना चाहिए ताकि समय रहते आपकी समस्या को समझा जा सके और उचित दवा दी जा सके।

(और पढ़ें - टाइफाइड के घरेलू इलाज)

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संदर्भ

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