डीपीटी (डीटीपी और डीटीडब्लूपी) के टीके से शिशु का तीन तरह के संक्रामक रोग (डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस) से बचाव किया जाता है। इस टीके से बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को इन रोगों से लड़ने के लिए विकसित किया जाता है। यह तीनों रोग शिशु और बच्चों के लिए जानलेवा होते हैं।

डिप्थीरिया में बच्चों को सांस लेने में समस्या होती है। इसके अलावा टेटनस के बैक्टीरिया जो कि मिट्टी में पाए जाते हैं, तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं, जिसकी वजह से मांसपेशियों में ऐंठन होती है। वहीं पर्टुसिस (Whooping cough: काली खांसी) में नवजात शिशु को खाने, पीने और सांस लेने में पेरशानी होती है। इसकी वजह से बच्चों में निमोनिया, मिर्गी और मस्तिष्क में क्षति होने का खतरा बना रहता है।

इस टीके की उपयोगिता के चलते ही आपको इस लेख में डीपीटी (डीटीपी और डीटीडब्लूपी) के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही इसमें आपको डीपीटी वैक्सीन क्या है, डीपीटी को कब लगवाना चाहिए, डीपीटी के साइड इफेक्ट और डीपीटी किन बच्चों को नहीं दिया जाना चाहिए आदि के बारे में भी विस्तार से बताया गया है।

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  1. डीपीटी वैक्सीन क्या है? - DPT ka tika kya hota hai
  2. डीपीटी के प्रकार - DPT ke prakar
  3. डीपीटी का टीका कब लगवाया जाता है? - DPT ka tika kab lagaya jata hai
  4. डीपीटी का टीका किन बच्चों को नहीं लगाना चाहिए? - DPT kin bacho ko nahi lagana chahiye
  5. डीपीटी वैक्सीन के साइड इफेक्ट - DPT vaccine ke side effect
  6. सारांश
डीपीटी वैक्सीन के डॉक्टर

डीपीटी वैक्सीन सात साल तक के बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टेटनस के बैक्टीरिया से लड़ने के लिए सक्षम बनाती है। इसके बाद किशोर और व्यस्कों में इन रोगों के बचाव और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए डीपीटी का ही बूस्टर वैक्सीन दिया जाता है। इस वैक्सीन को टीडीएपी (Tdap) भी कहते हैं। यह वैक्सीन 11 साल की उम्र में दिया जाता है। 

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डीपीटी या डीटीपी वैक्सीन मुख्य रूप से बच्चों को डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस से बचाव करती है। इन तीनों ही रोगों के बारे में नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

  • डिप्थीरिया (Diptheria):
    इसके कारण सांस लेने में परेशानी, लकवा और हार्ट फेल हो सकता है। (और पढ़ें - बच्चे की मालिश कैसे करें)
     
  • टेटनस (Tetanus):
    टिटनेस या टेटनस एक गंभीर बैक्टीरियल बीमारी होती है, जो शरीर के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है। इससे मांसपेशियां संकुचित (सिकुड़ना) होने लगती हैं, जिससे काफी दर्द होता है। टिटनेस विशेष रूप से जबड़े और गर्दन की मांसपेशियों को ही प्रभावित करती है। टिटनेस को लॉकजॉ (Lockjaw) के रूप में जाना जाता है, इसमें व्यक्ति ना तो मुंह खोल पाता है और ना ही किसी चीज को निगल पाता है। (और पढ़ें - टिटनेस इंजेक्शन​)
     
  • पर्टुसिस (Pertussis: Whooping cough):
    इसको काली खांसी के नाम से भी जाना जाता है। इस खांसी की वजह से शिशु और बच्चों को खाने, पीने और सांस लेने में मुश्किल होती है। इसके साथ ही कांली खांसी बच्चों या शिशुओं में मिर्गी, निमोनिया और मस्तिष्क क्षति का भी कारण होती है। यहां तक की कुछ मामलों में इसकी वजह से शिशु की मृत्यु भी हो सकती है। (और पढ़ें - शिशु की खांसी के घरेलू उपचार)

कई बार डीपीटी को अन्य कई टीकों के साथ मिलाकर संयोजन भी किया जाता है। इन टीकों के बारे में आगे जानें:

  • क्वाड्रीवेलेंट वैक्सीन (Quadrivalent vaccine):
    इस टीके में डीपीटी के साथ ही एचआईबी (HiB) भी होता है, जिससे आपके बच्चे का हिमोफिलस इंफ्लुएंजा टाइप बी से बचाव होता है। (और पढ़ें - नवजात शिशु के दस्त का इलाज)
     
  • पेंटावेलेंट वैक्सीन (Pentavalent vaccine):
    इस वैक्सीन में डीपीटी के साथ एचआईबी (HiB) व एचईपीबी (HepB) को शामिल किया जाता है, इससे बच्चे का हेपेटाइटिस बी से बचाव होता है। (और पढ़ें - माँ का दूध कैसे बढ़ाएं)
     
  • हेक्सावेलेंट वैक्सीन (Hexavalent vaccine):
    इसमें डीपीटी के साथ एचआईबी, एचईपीबी और आईपीवी (injectable polio vaccine) को शामिल किया जाता है। (और पढ़ें - मिट्टी खाने का इलाज)

संयोजन वैक्सीन से आपके बच्चें को एक ही खुराक से कई दवाएं मिल जाती हैं। अगर आप बच्चे को संयोजन दवाएं नहीं देते हैं, तो राष्ट्रीय टीकाकरण योजना के अंतर्गत सभी टीके समय पर लगवाने चाहिए। 

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सामान्यतः डीपीटी वैक्सीन दो प्रकार की होती है – 

  1. डीटीएपी (DTaP) 
  2. डीटीडब्लूपी (DTwP) 

इन दोनों ही दवाओं में मौजूद बैक्टीरिया की मात्रा अलग अलग होती है। डीटीडब्लूपी को बनाने में पर्टुसिस बैक्टीरिया की कोशिकाओं का पूरी तरह से इस्तेमाल होता है, जबकि डीटीएपी को तैयार करते समय इस बैक्टीरिया के कुछ ही हिस्सों का उपयोग किया जाता है। अलग-अलग तरह से बनने के कारण इस वैक्सीन से शिशुओं और बच्चों में इसकी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखी जाती हैं। सामान्यतः डीटीडब्लूपी के इस्तेमाल से शिशु को बार-बार और गंभीर प्रतिक्रियाएं हो सकती है।

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इसी वजह से डीटीएपी को कम दर्द वाली व डीटीडब्लूपी को अधिक दर्द वाली दवा के रूप में जाना जाता है। डीटीएपी वैक्सीन से दर्द कम होता है और इसके साइड इफेक्ट भी कम होते हैं।

लेकिन कुछ तथ्य इस बताते हैं कि डीटीडब्लूपी बच्चों को प्रभावी रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इसीलिए इस वैक्सीन के कुछ साइड इफेक्ट के बावजूद भी इसको डीटीएपी के मुकाबले बेहतर विकल्प माना जाता है। कुछ तथ्यों के आधार पर इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और भारतीय सरकार बच्चों को डीटीडब्लूपी लगाने की सलाह देते हैं। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन इन रोगों के लिए दोनों ही टीकों को शिशुओं के लिए बेहतर बताता हैं।   

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बच्चों को डीपीटी की 5 खुराक दी जाती है। बच्चे को डीपीटी टीके लगाने के सही समय के बारे में नीचे बताया गया है।

  • 2 महीने
  • 4 महीने
  • 6 महीने
  • 15 से 18 महीने
  • 4 से 6 साल

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किशोर व व्यस्कों के लिए डीपीटी –

  • 11 से 12 साल में डीपीटी बूस्टर टीडीएपी (Tdap) की खुराक देना।
  • इसके बाद हर दस साल में एक खुराक लेने की जरूरत होती है। 

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डीपीटी केवल सात साल से कम आयु के बच्चों को दी जाती है। यह टीका सभी बच्चों के लिए प्रभावी नहीं होता है, कुछ बच्चों को डीपीटी के जगह पर केवल डिप्थीरिया और टेटनस का ही टीका लगाया जाता है। निम्न स्थितियों में शिशु या बच्चे को डीपीटी का टीका नहीं लगवाना चाहिए या इसके लगाने के लिए कुछ समय इंतजार करना चाहिए।

  • अगर शिशु छह सप्ताह का ना हुआ हो। (और पढ़ें - बच्चे का देरी से बोलना)
  • डीपीटी की पिछली खुराक से शिशु को यदि गंभीर एलर्जी हुई हो। (और पढ़ें - एलर्जी के घरेलू उपाय)
  • पहले कभी डीपीटी की खुराक से बच्चे को कोमा या सात दिनों तक बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हुई हो। (और पढ़ें - नवजात शिशु को गैस)
  • डीपीटी लेने से पहले शिशु को "गिलेन बरे सिंड्रोम" (Guillain-Barre syndrome) हुआ हो। इसमें स्थिति में रोग प्रतिरोधक क्षमता आपके तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाती है।
  • पिछली बार डीपीटी की खुराक से यदि बच्चे को गंभीर दर्द या सूजन की समस्या हुई हो। (और पढ़ें - बच्चे की मालिश का तेल)

इस स्थिति में आपके डॉक्टर इस बात को तय करते हैं कि शिशु को डीपीटी खुराक दी जानी चाहिए या नहीं। इसके साथ ही डॉक्टर डीपीटी की अगली निर्धारित खुराक के लिए थोड़े समय इंतजार करने की भी सलाह दे सकते हैं। इसके अलावा शिशु को मामूली सर्दी जुकाम हो या किसी अन्य बीमारी के हल्के लक्षण हो तो ऐसे में उसको डीपीटी की खुराक दी जा सकती है, लेकिन यदि शिशु को गंभीर बीमारी हो, तो टीका लगाने से पहले उसके ठीक होने का इंतजार किया जाता है। 

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डीपीटी वैक्सीन से होने वाली प्रतिक्रिया के चलते इससे शिशु और बच्चों में कई तरह के साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं। इनके बारे में नीचे बताया जा रहा है।

  • इंजेक्शन की जगह पर लालिमा और सूजन होना। (और पढ़ें - शिशु का घुटनों के बल चलना)
  • इंजेक्शन की जगह पर लगातार या छूने पर दर्द होना।
  • टीका लगाने के तीन दिनों बाद शिशु को बुखार आना, बैचेनी होना, भूख कम लगना और उल्टी की समस्या हो सकती है। (और पढ़ें - शिशु को उल्टी होना)
  • कुछ मामलों में टीके से गंभीर प्रतिक्रिया होने पर शिशु को दौरे पड़ना, तीन घंटे से ज्यादा समय तक रोते रहना या 105 डिग्री फारेनहाइट (40 डिग्री सेल्सियस) से अधिक बुखार होना।
  • डीपीटी की चौथी और पांचवी खुराक में कुछ बच्चों के हाथ और पैरों में सूजन आना। (और पढ़ें - बुखार कम करने के घरेलू उपाय)
  • बेहद दुर्लभ मामलों में डीपीटी से शिशु का दिमाग स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त भी हो सकता है। 

टीके के बाद शिशु या बच्चे में किसी भी तरह की गंभीर प्रतिक्रिया दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाएं और इलाज शुरू करें। 

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डीपीटी वैक्सीन (डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टेटनस) एक सामान्य और प्रभावी टीका है जो बच्चों को तीन गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए दिया जाता है। डिप्थीरिया एक संक्रमण है जो गले और श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है, पर्टुसिस (काली खांसी) एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी है जो श्वास संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकती है, और टेटनस एक गंभीर बीमारी है जो मांसपेशियों में जकड़न और ऐंठन पैदा करती है। यह वैक्सीन बच्चों को प्रारंभिक उम्र में दी जाती है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती है। डीपीटी टीकाकरण कार्यक्रमों का पालन करने से इन बीमारियों के प्रसार को कम करने और बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद मिलती है।

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