जब महिला गर्भवती होती है, तो ब्रेस्ट में बदलाव आना शुरू हो जाता है. असल में इन बदलावों के चलते ही ब्रेस्ट स्तनपान के लिए तैयार होने लगते हैं. यही कारण है कि प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को कई बार ब्रेस्ट में भारीपन महसूस होता है. जब शिशु का जन्म होता है, तो ब्रेस्टफीडिंग के दौरान महिला की बॉडी में हार्मोंस रिलीज होते हैं, जिस कारण ब्रेस्ट मिल्क बनता और रिलीज होता है.

आज इस लेख में आप ब्रेस्ट मिल्क बनने की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानेंगे -

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  1. ब्रेस्ट में मिल्क कैसे बनता है?
  2. ब्रेस्ट मिल्क बनने का तरीका
  3. सारांश
जानिए ब्रेस्ट मिल्क बनने की प्रक्रिया के बारे में के डॉक्टर

ब्रेस्ट मिल्क बनने के पीछे हार्मोंस की अहम भूमिका होती है. आइए, ब्रेस्ट मिल्क बनने की पूरी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानते हैं -

ब्रेस्ट मिल्क बनने में ब्रेस्ट की भूमिका

ब्रेस्ट के अंदर अंगूरों की तरह सेल्स के विभिन्न कल्स्टर होते हैं, जिसे एल्वियोली (alveoli) कहा जाता है. इसके अंदर ही दूध का निर्माण होता है. जब मिल्क बन जाता है, तो वह एल्वियोली के जरिए मिल्क डक्ट्स (milk ducts) में आता है. डक्ट्स ब्रेस्ट के जरिए मिल्क को बाहर निकालती हैं. ध्यान रहे कि ब्रेस्ट साइज ब्रेस्टफीड करवाने की क्षमता को प्रभावित नहीं करता. ब्रेस्ट का साइज छोटा हो या बड़ा मिल्क बच्चे की जरूरत के हिसाब से समान मात्रा और क्वालिटी में ही बनता है.

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ब्रेस्ट मिल्क बनने में दिमाग की भूमिका

जब डिलीवरी के बाद शिशु ब्रेस्टफीड करना शुरू करता है, तो मां के ब्रेन को मैसेज पहुंचता है. इस संकेत के बाद ब्रेन प्रोलैक्टिन और ऑक्सीटोसिन हार्मोंस को रिलीज करने का सिग्नल देता है. प्रोलैक्टिन हार्मोन के कारण ही एल्वियोली में दूध बनता है और ऑक्सीटोसिन एल्वियोली के आसपास मौजूद मांसपेशियों को मिल्क डक्ट्स से दूध को बाहर निकालने का कारण बनता है.

जब दूध स्तनों से बाहर आ जाता है, तो इसे लेट-डाउन रिफ्लेक्स कहा जाता है. शिशु को दूध पिलाने के अलावा लेट-डाउन रिफ्लेक्स अन्य कारणों से भी हो सकता है. जब बच्चा रो रहा हो, मां बच्चे को देखे या उसके बारे में सोचे, तो भी लेट-डाउन रिफ्लेक्स हो सकता है. शिशु को स्तनपान कराने का समय होने पर भी ऐसा हो सकता है.

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ब्रेस्ट मिल्क बनने में शिशु की भूमिका

शिशु भी स्तनों में मिल्क बनाने में मदद कर सकता है. शिशु जितना दूध पीता है, शरीर उसी के अनुसार मिल्क प्रोड्यूस करता है. डिलीवरी के बाद कुछ दिन या हफ्ते तक शिशु के अधिक ब्रेस्टफीड करने से शरीर अधिक ब्रेस्ट मिल्क का निर्माण करता है. बच्चे की जरूरत के हिसाब से मिल्क की क्वांटिटी कम या ज्यादा हो सकती है. जब भी बच्चा ब्रेस्टफीड करता है, तो शरीर को सिग्नल मिल जाता है कि बच्चे को अगली बार फीडिंग के लिए मिल्क की जरूरत है.

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महिलाओं के स्वास्थ के लिए लाभकारी , एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोंस को कंट्रोल करने , यूट्रस के स्वास्थ को को ठीक रखने , शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर सूजन को कम करने में लाभकारी माई उपचार आयुर्वेद द्वारा निर्मित अशोकारिष्ठ का सेवन जरूर करें ।  

ब्रेस्टफीडिंग के लिए बनने वाले ब्रेस्ट‍ मिल्क के तीन अहम चरण होते हैं, जो बच्चे को पोषक तत्व देते हैं. ये तीनों ही चरण ब्रेस्ट मिल्क की प्रक्रिया में जरूरी होते हैं. आइए, ब्रेस्ट मिल्क बनने के इन चरणों के बारे में विस्तार से जानते हैं -

कोलोस्ट्रम

बच्चे के जन्म के तुरंत बाद निकलने वाला पहला थिक मिल्क गहरे पीले रंग का होता है. इसे कोलोस्ट्रम या फिर ‘लिक्वि‍ड गोल्ड’ भी कहा जाता है, क्योंकि ये बच्चे के लिए सबसे महत्व‍पूर्ण होता है. कोलोस्ट्रम न्यूट्रिशंस और एंटीबॉडीज से भरपूर होता है. ये बच्चे को इंफेक्शन से बचाता है. कोलोस्ट्रम बच्चे के पाचन तंत्र को ठीक से विकसित होने और काम करने में मदद करता है.

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ट्रांजिशनल मिल्क

ट्रांजिशनल मिल्क तब बनता है, जब मैच्योर ब्रेस्ट मिल्क धीरे-धीरे कोलोस्ट्रम की जगह ले लेते हैं. महिलाएं बच्चे की डिलीवरी के पहले हफ्ते से लेकर दूसरे हफ्ते तक ट्रांजिशनल मिल्क बना सकती हैं. इस दौरान ब्रेस्ट‍ में गर्माहट व भारीपन महसूस होता है. इसी के साथ दूध का रंग हल्के नीले से सफेद में बदल जाता है. इस समय बच्चे की जरूरतों के हिसाब से ब्रेस्ट मिल्क बदल जाता है. बच्चे को ब्रेस्टफीड करवाने और एक्सट्रा दूध निकालने से मिल्क प्रोडक्शन अच्छा होता है.

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मैच्योर मिल्क

शिशु के जन्म के 10-15 दिन बाद मैच्योर मिल्क बनना शुरू हो जाता है. ब्रेस्ट मिल्क का हर फेज न्यू‍ट्रिशंस से भरपूर होता है, जिसकी बच्चे को जरूरत होती है. मैच्योर मिल्क में मौजूद फैट में बच्चे के फीड के मुताबिक बदलाव होते रहते हैं. बच्चे को हमेशा पहले एक ब्रेस्ट से फीड करवाना चाहिए. पहला ब्रेस्ट खाली होने के बाद ही दूसरे ब्रेस्ट से फीड करवाना चाहिए. इससे बच्चे को सही मात्रा में पोषक तत्व मिलते हैं.

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ब्रेस्ट मिल्क न्यूट्रिशंस से भरपूर होता है और शिशु को इंफेक्शन व अन्य बीमारी से बचाने में मदद करता है. बच्चे की जरूरतों के हिसाब से और बच्चे के बीमार होने पर भी ब्रेस्ट मिल्क बदल जाता है. ये छोटे बच्चे के लिए उत्तम आहार माना जाता है. महिलाओं के ब्रेस्ट को बनाना वाला स्ट्र्क्‍चर ब्रेस्ट मिल्क को प्रोटेक्ट, प्रोड्यूस और ट्रांसपोर्ट करता है. ब्रेस्ट मिल्‍क के बनने में ब्रेस्ट, ब्रेन और बेबी तीनों का अहम रोल होता है. ये तीनों ही तीन अन्य चरणों से गुजरते हैं, जिसे ब्रेस्ट मिल्क बनने का अहम हिस्सा माना जाता है, जैसे – कोलोस्ट्रम, ट्रांजिशनल मिल्क और मैच्योर मिल्क.

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