शरीर में आयरन की कमी को एनीमिया का मुख्य कारण माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कैंसर का उपचार करने वाली कीमोथेरेपी भी एनीमिया के जोखिम को बढ़ा सकती है. जी हां, कीमोथेरेपी के दौरान कैंसर सेल्स के साथ ही कुछ स्वस्थ कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचने लगता है, जिसकी वजह से लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन नहीं हो पाता है और एनीमिया के लक्षण नजर आने लगते हैं. कई अध्ययनों में भी साबित हो चुका है कि कीमोथेरेपी और एनीमिया एक-दूसरे से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं. इसलिए, कैंसर रोगियों को एनीमिया यानी हीमोग्लोबिन के कम स्तर का सामना करना पड़ता है.
आज इस लेख में आप कीमोथेरेपी के दौरान होने वाले एनीमिया के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में विस्तार से जानेंगे -
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- कीमोथेरेपी क्या है?
- कीमोथेरेपी से जुड़ा एनीमिया क्या है?
- कीमोथेरेपी के दौरान एनीमिया के लक्षण
- कीमोथेरेपी के दौरान एनीमिया होना कितना आम है?
- कीमोथेरेपी के दौरान एनीमिया होने के कारण
- कीमोथेरेपी के दौरान एनीमिया का इलाज
- सारांश
कीमोथेरेपी क्या है?
कीमोथेरेपी विभिन्न प्रकार के कैंसर का उपचार है. कीमोथेरेपी की दवाइयों में केमिकल्स होते हैं, जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं और फैलने से रोकते हैं. ये केमिकल शरीर में मौजूद हेल्दी सेल्स को भी नुकसान पहुंचाने लगते हैं. खासकर त्वचा, पाचन तंत्र और बोन मैरो की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है. ऐसे में जब कीमोथेरेपी के दौरान इन कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है, तो लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन सही मात्रा में नहीं हो पाता है. इसकी वजह से कीमोथेरेपी से जुड़ा एनीमिया होने की आशंका बढ़ जाती है.
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कीमोथेरेपी से जुड़ा एनीमिया क्या है?
कीमोथेरेपी दवाइयों में मौजूद रसायन कैंसर सेल्स को नष्ट करते हैं, साथ ही हेल्दी कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं. इसकी वजह से लाल रक्त कोशिकाओं में कमी आने लगती है. जब कीमोथेरेपी दवाइयों की वजह से रेड ब्लड सेल्स कम होने लगते हैं, तो इसी को कीमोथेरेपी से जुड़ा एनीमिया कहा जाता है. इस स्थिति में रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है.
आपको बता दें कि हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद प्रोटीन होता है, जो शरीर के ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है. आसान भाषा में समझा जाए, तो एनीमिया वह स्थिति होती है जिसमें शरीर में ऑक्सीजन को ठीक से ले जाने के लिए पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाएं नहीं होती हैं और हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है.
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कीमोथेरेपी के दौरान एनीमिया के लक्षण
कीमोथेरेपी लेने के दौरान लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन नहीं हो पाता है. इसकी वजह से हीमोग्लोबिन भी गिरता है और शरीर में खून की कमी होने लगती है. जब एनीमिया होता है, तो निम्न लक्षण महसूस हो सकते हैं -
- थकान और कमजोरी
- ताकत महसूस न करना
- चक्कर आना या बेहोशी
- सांस लेने में कठिनाई
- सिरदर्द
- त्वचा का रंग पीला होना
- हार्ट बीट तेज होना
- सीने में दर्द
- डिप्रेशन
- ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
- भूख में कमी
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कीमोथेरेपी के दौरान एनीमिया होना कितना आम है?
रिसर्च के अनुसार, कीमोथेरेपी लेने वाले लगभग 70 प्रतिशत लोगों को एनीमिया के लक्षणों का सामना करना पड़ता है. यह इन लोगों में सबसे आम है -
- फेफड़ों के कैंसर
- लिंफोमा कैंसर
- मूत्र पथ के कैंसर
- प्रजनन प्रणाली के कैंसर
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कीमोथेरेपी के दौरान एनीमिया होने के कारण
कीमोथरेपी एनीमिया का बड़ा कारण हो सकता है. जब कोई कैंसर रोगी कीमोथेरेपी लेता है, तो उसे एनीमिया का सामना करना पड़ सकता है. इसके कारण इस प्रकार हैं -
कीमोथेरपी दवाइयां
कीमोथेरेपी शरीर में तेजी से फैलने वाली कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करती है. वहीं, कई बार कीमोथेरेपी लेने के दौरान वे कोशिकाएं भी नष्ट होने लगती हैं, जो लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करती हैं, जैसे बोन मैरो. इस स्थिति में मुंह में छाले, स्वाद में बदलाव और मतली जैसे लक्षण महसूस हो सकते हैं.
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भूख की कमी
कीमोथेरेपी के दौरान भूख में कमी होने लगती है, जिसकी वजह से व्यक्ति पर्याप्त भोजन नहीं खा पाता है. ऐसे में शरीर में पोषक तत्वों की कमी के कारण एनीमिया के लक्षणों का अनुभव हो सकता है. जब आयरन व विटामिन-बी12 की कमी होती है, तो शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन नहीं हो पाता है और एनीमिया हो सकता है.
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कीमोथेरेपी के दौरान एनीमिया का इलाज
कीमोथेरेपी के दौरान होने वाले एनीमिया का इलाज करवाना जरूरी होता है, क्योंकि अगर एनीमिया का इलाज समय पर नहीं किया गया, तो स्थिति गंभीर रूप ले सकती है. यह स्थिति शारीरिक रूप से व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है. कीमोथेरेपी से जुड़े एनीमिया का इलाज इस प्रकार से किया जाता है -
दवाइयां
कीमोथेरेपी से जुड़ा एनीमिया का इलाज करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने वाली दवाइयां लिख सकते हैं. इन दवाइयों में प्रोक्रिट या एपोजेन और अरनेस्प शामिल हैं. इसके अलावा, लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाने के लिए एरिथ्रोपोइटिन-स्टिमुलेटिंग एजेंट का भी उपयोग किया जा सकता है. इसका प्रभाव दिखने में 4 से 6 सप्ताह लग सकते हैं.
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सप्लीमेंट्स
लगभग 65 प्रतिशत आयरन हीमोग्लोबिन में होता है. हीमोग्लोबिन रक्त में मौजूद एक प्रोटीन है, जो शरीर के अंगों और टिश्यू तक ऑक्सीजन पहुंचाता है. आयरन की कमी होने पर हीमोग्लोबिन शरीर में कोशिकाओं तक ऑक्सीजन नहीं ले जा पाता है. ऐसे में एनीमिया का इलाज करने के लिए आयरन सप्लीमेंट लेना फायदेमंद हो सकता है. इसके अलावा, एनीमिया का इलाज फोलिक एसिड, विटामिन-बी12 सप्लीमेंट्स से भी किया जा सकता है. ये विटामिन और आयरन शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ावा देते हैं और हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ा सकते हैं.
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ब्लड ट्रांसफ्यूजन
एनीमिया की कमी होने पर शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है. इस स्थिति में शरीर में खून की कमी होने लगती है. ऐसे में जब दवाइयों और सप्लीमेंट की मदद से एनीमिया के लक्षणों में कमी नहीं आती है या हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता नहीं है, तो डॉक्टर ब्लड ट्रांसफ्यूजन की सलाह दे सकते हैं.
इसमें एनीमिया रोगी को रक्तदान किया जाता है और फिर उसके शरीर में डाला जाता है. इससे हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाया जाता है. इसके लिए रक्त का प्रकार एनीमिया रोगी से मेल खाना चाहिए. डॉक्टर ब्लड ट्रांसफ्यूजन की सलाह तब दे सकते हैं, जब हीमोग्लोबिन का स्तर 8 ग्राम प्रति डेसीलीट से कम हो जाता है.
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सारांश
एनीमिया कीमोथेरेपी का एक सामान्य दुष्प्रभाव हो सकता है. कीमोथेरेपी दवाओं में मौजूद रसायन कैंसर कोशिकाओं के साथ ही शरीर में मौजूद स्वस्थ कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसकी वजह से लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन कम होने लगता है और हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने लगता है, जिसकी वजह से एनीमिया हो जाता है. कीमोथेरेपी बंद हो जाने पर एनीमिया आमतौर पर ठीक हो जाता है, लेकिन अगर कीमोथेरेपी के दौरान एनीमिया के लक्षण महसूस हो, तो इन्हें बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें.
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Dr. Srikanth M
रक्तशास्त्र
25 वर्षों का अनुभव
