पांडु रोग में रक्त की कमी के कारण त्वचा का रंग सामान्य से बदलकर सफेद हो जाता है। दोष के बढ़ने और अतिरिक्त पित्त बनने पर दिल में मौजूद पित्त दिल से जुड़ी धमनियों और नसों में पहुंच जाता है। ये एक वात दोष है जिसके कारण पित्त अपनी जगह से हटकर पूरे शरीर में फैल जाता है। इसके बाद पित्त कफ को खराब कर त्वचा, खून और मांसपेशियों को प्रभावित करता है जिस वजह से त्वचा का रंग सफेद पड़ने लगता है।
आयुर्वेद के अनुसार एनीमिया के पांच प्रकार हैं:
- वातज:
वात एनीमिया का प्रमुख कारण है। ये आयरन-की कमी वाला एनीमिया है जोकि सबसे ज्यादा होता है। (और पढ़ें - आयरन की कमी के लक्षण)
- पित्तज:
इस एनीमिया के प्रकार में पित्त प्रमुख कारण है। मेगालोब्लास्टिक एनीमिया को इस प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- कफज:
कफज एनीमिया में कफ के कारण ये बीमारी होती है और ये एक जीर्ण (पुरानी) बीमारी है।
- सन्निपतज:
इस प्रकार का एनीमिया त्रिदोष के कारण होता है। इसमें लाल कोशिकाओं की कमी, थैलेसीमिया और अप्लास्टिक एनीमिया आता है। अप्लास्टिक एनीमिया इस रोग का घातक रूप है।
- मृदभक्षणजन्य पांडु रोग:
बहुत ज्यादा मिट्टी खाने की वजह से ये समस्या होती है जिसमें अपच और कृमि संक्रमण हो जाता है। (और पढ़ें - पेट में कीड़े होने का इलाज)
पांडु रोग के लक्षणों में रंग का फीका पड़ना और ताकत में कमी आना शामिल है। इसलिए एनीमिया की बीमारी में त्वचा और नाखूनों का रंग सफेद पड़ने लगता है और थकान एवं ताकत में कमी महसूस होती है। एनीमिया से ग्रस्त व्यक्ति को अन्न द्वेष (खाने के प्रति अनिच्छा या खाना पसंद न आना), बदन दर्द और ज्वर (बुखार) हो सकता है। शारीरिक कार्य के दौरान सांस न आना और मांसपेशियों में दर्द महसूस होता है।
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अनुचित खाद्य पदार्थ (जैसे मछली के साथ दूध), ज्यादा खून बहने या कुछ पोषक तत्वों जैसे कि विटामिन बी12, फोलिक एसिड और आयरन की कमी की वजह से एनीमिया की बीमारी होती है। बवासीर में खून बहने, कीड़ों या थ्रेड वर्म के संक्रमण के कारण पाचन समस्याओं की वजह से भी एनीमिया हो सकता है। पीलिया या हेमोलिटिक पीलिया भी एनीमिया का रूप ले सकता है।
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एनीमिया का आसानी से पता लगाया जा सकता है और इसे पूरी तरह से ठीक भी किया जा सकता है। इस रोग के इलाज के लिए कई तरह की जड़ी बूटियां उपलब्ध हैं। उपचार द्वारा रोग के कारण बनने वाले दोष को हटाया जाता है।
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आमलकी, हरीतकी,दाड़िम युक्त आयुर्वेदिक औषधियों और लौह जैसे मिनरल्स हिमेटिनिक प्रभाव देते हैं और खून में हीमोग्लोबिन को बढ़ाते हैं, पांडु रोग में हीमोग्लोबिन का स्तर 12 ग्राम/डेसीलिटर से नीचे गिर जाता है।
अदरक और पिप्पली शरीर में इन सामग्रियों के अवशोषण को बेहतर करती हैं, इस प्रकार सूक्ष्म पोषक तत्वों के प्रभाव में वृद्धि होती है। विडंग कृमिघ्न (कीड़े नष्ट करने वाली) के रूप में कार्य कर एनीमिया को ठीक करने में मदद करती है। कई आयुर्वेदिक मिश्रण जैसे कि द्राक्षावलेह (अंगूर और लौह भस्म, आयरन से तैयार पेस्ट) का इस्तेमाल पांडु रोग के इलाज में किया जाता है।
हीमोग्लोबिन का स्तर 6 ग्राम/डेसीलिटर से नीचे गिरने पर एनीमिया गंभीर रूप ले लेता है। ऐसे में खून चढ़ाने की सलाह दी जाती है। जीवनशैली तथा आहार में आवश्यक बदलाव एवं पथ्य (क्या करें) और अपथ्य (क्या न करें) का ध्यान रख कर एनीमिया में सुधार लाया जा सकता है।
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