चिंता एक मानसिक विकार है जो कि रज (दिमाग को कार्य और जोश के लिए प्रेरित करता है) और तम (मन को असंतुलन, विकार और चिंता से प्रभावित करने वाला) जैसे मानसिक दोष के असंतुलन के कारण होती है। आयुर्वेद में इसे चित्तोद्वेग कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार किसी आहार और मानसिक कारण की वजह से चित्तोद्वेग हो सकता है। महिलाओं और गरीबी या अपनी आधारभूत जरूरतों को पूरा कर पाने में असक्षम व्यक्ति को चिंता का खतरा ज्यादा रहता है। हालांकि, ये समस्या आमतौर पर वृद्ध लोगों में ज्यादा देखी जाती है। अगर समय पर चिंता का इलाज न किया जाए तो ये मानसिक और शारीरिक समस्या जैसे कि डिप्रेशन, हाइपरटेंशन, हर समय थकान महसूस करना, एक्ने और कब्ज का रूप ले लेती है।
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आयुर्वेदिक उपचार में चित्तोद्वेग या चिंता को नियंत्रित करने के लिए ब्राह्मी, मंडूकपर्णी और अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है। मस्तिष्क के लिए शक्तिवर्द्धक या मेध्य रसायनों के साथ शमन चिकित्सा द्वारा चिंता को नियंत्रित किया जाता है।
आहार में घी, अंगूर, पेठा और फलों को शामिल करें। इसके अलावा जीवनशैली में नियमित ध्यान और प्राणायाम को भी शामिल करने से दिमाग को शांत रखने में मदद मिलती है।