आयुर्वेदिक उपचार में कैंसर के लिए कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। आयुर्वेद में कैंसर की सूजन के रूप में पहचान की गई थी। आयुर्वेद के अनुसार यह रोग निंरतर बढ़ता रहता है या अल्सर की तरह शरीर में गहराई से फैला हुआ होता है।
आयुर्वेदिक भाषा में इस तरह की सूजन और गांठ को अर्बुद कहते हैं। प्रारंभिक चरण में कैंसर की बीमारी धीमी गति से बढ़ती है और इसमें दर्द भी कम रहता है।
आयुर्वेद के अनुसार दोष (वात, पित्त और कफ) के खराब होने पर कैंसर की उत्पत्ति होती है जो कि रक्त और ममस धातु पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। रोज अस्वस्थ खाना, मांस, तंबाकू चबाने और धूम्रपान जैसे कई आहार और पर्यावरणीय कारणों की वजह से कैंसर हो सकता है। किसी रसायन और मशीन के दुष्प्रभाव (सूरज की रोशनी और रेडिएशन) एवं कुछ दवाओं की वजह से कैंसर होने का खतरा रहता है। कार्सिनोजेन और हवा एवं वायु प्रदूषण में रहने की वजह से भी कैंसर हो सकता है।
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आयुर्वेद में कैंसर के लिए अनेक उपचारों का उल्लेख किया गया है जिसमें शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन (विषाक्त पदार्थों को निकालना) और ट्यूमर को शरीर से हटाना शामिल है। अर्बुद के इलाज में स्नेहन (शुद्धिकरण), स्वेदन (पसीना निकालने की विधि) जैसे कि तप (सिकाई) और उपनाह (गर्म पुल्टिस लगाना), अग्नि कर्म (प्रतिरोधी धातु की इलेक्ट्रिक तार से प्रत्यक्ष या प्रत्यावर्ती करंट देना), क्षार कर्म (क्षार से शरीर के किसी हिस्से को जलाना) और शस्त्र कर्म (सर्जरी की विधि) शामिल है।
कैंसरकारी ट्यूमर को नियंत्रित करने के लिए पिप्पली, गुडुची (गिलोय), ब्राह्मी, हरिद्रा (हल्दी), अश्वगंधा, यष्टिमधु (मुलेठी) आदि जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है।
कैंसर को नियंत्रित करने के लिए हर्बोमिनरल (जड़ी-बूटियों के साथ धातु भस्म या मिनरल) मिश्रण के साथ कुछ आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें रुद्र रस, त्रिफला, कांचनार गुग्गुल और महामंजिष्ठादि क्वाथ शामिल हैं।