आयुर्वेदिक उपचार में कैंसर के लिए कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। आयुर्वेद में कैंसर की सूजन के रूप में पहचान की गई थी। आयुर्वेद के अनुसार यह रोग निंरतर बढ़ता रहता है या अल्‍सर की तरह शरीर में गहराई से फैला हुआ होता है।  

आयुर्वेदिक भाषा में इस तरह की सूजन और गांठ को अर्बुद कहते हैं। प्रारंभिक चरण में कैंसर की बीमारी धीमी गति से बढ़ती है और इसमें दर्द भी कम रहता है।

आयुर्वेद के अनुसार दोष (वात, पित्त और कफ) के खराब होने पर कैंसर की उत्‍पत्ति होती है जो कि रक्‍त और ममस धातु पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। रोज अस्‍वस्‍थ खाना, मांस, तंबाकू चबाने और धूम्रपान जैसे कई आहार और पर्यावरणीय कारणों की वजह से कैंसर हो सकता है। किसी रसायन और मशीन के दुष्‍प्रभाव (सूरज की रोशनी और रेडिएशन) एवं कुछ दवाओं की वजह से कैंसर होने का खतरा रहता है। कार्सिनोजेन और हवा एवं वायु प्रदूषण में रहने की वजह से भी कैंसर हो सकता है।

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आयुर्वेद में कैंसर के लिए अनेक उपचारों का उल्‍लेख किया गया है जिसमें शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन (विषाक्‍त पदार्थों को निकालना) और ट्यूमर को शरीर से हटाना शामिल है। अर्बुद के इलाज में स्‍नेहन (शुद्धिकरण), स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि) जैसे कि तप (सिकाई) और उपनाह (गर्म पुल्टिस लगाना), अग्‍नि कर्म (प्रतिरोधी धातु की इलेक्ट्रिक तार से प्रत्यक्ष या प्रत्यावर्ती करंट देना), क्षार कर्म (क्षार से शरीर के किसी हिस्‍से को जलाना) और शस्‍त्र कर्म (सर्जरी की विधि) शामिल है।

कैंसरकारी ट्यूमर को नियंत्रित करने के लिए पिप्‍पली, गुडुची (गिलोय), ब्राह्मी, हरिद्रा (हल्‍दी), अश्‍वगंधा, यष्टिमधु (मुलेठी) आदि जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है।

कैंसर को नियंत्रित करने के लिए हर्बोमिनरल (जड़ी-बूटियों के साथ धातु भस्‍म या मिनरल) मिश्रण के साथ कुछ आयुर्वेदिक दवाओं का इस्‍तेमाल किया जाता है, जिनमें रुद्र रस, त्रिफला, कांचनार गुग्‍गुल और महामंजिष्‍ठादि क्‍वाथ शामिल हैं। 

  1. कैंसर में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Cancer ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  2. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से कैंसर - Ayurveda ke anusar Cancer
  3. कैंसर का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Cancer ka ayurvedic ilaj
  4. कैंसर की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Cancer ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  5. आयुर्वेद के अनुसार कैंसर होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Cancer me kya kare kya na kare
  6. कैंसर की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Cancer ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. कैंसर की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Cancer ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
कैंसर की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

कोलोरेक्टल कैंसर पर हल्‍दी के प्रभाव की जांच के लिए एक अध्‍ययन किया गया था। आपको बता दें कि दुनियाभर में कैंसर के कारण होने वाली मृत्‍यु में कोलोरेक्‍टल कैंसर दूसरी सबसे बड़ी वजह है।

अध्ययन में बताया गया कि प्रारंभिक चरण में कीमोथेरेपी के साथ या उसके बिना कोलोरेक्टल कैंसर को सर्जरी से निकालने के अलावा इसका कोई प्रभावी उपचार नहीं है।

हल्‍दी के सक्रिय रासायनिक घटकों में से एक जीरा भी है और पूर्व में हुए अधिकतर चिकित्‍सकीय अध्‍ययनों में कैंसर को नियंत्रित करने में इसे उपयोगी पाया गया है।

इस अध्‍ययन में कोलोरेक्‍टल कैंसर से ग्रस्‍त 15 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था और इन पर हल्‍दी के प्रभाव की जांच की गई थी। अन्‍य चिकित्‍साओं जैसे कि कीमोथेरेपी के साथ कैंसर को नियंत्रित करने में हल्‍दी को प्रभावी और सुरक्षित पाया गया।

अन्य अध्ययनों में असाध्य अग्नाशय के कैंसरस्तन कैंसरमल्टीपल माइलोमाप्रोस्टेट कैंसरफेफड़ों के कैंसर और कैंसर के घावों से पीडित प्रतिभागियों में जीरे को प्रभावकारी, सुरक्षित बताया गया है।

इससे पता चलता है कि कैंसर को नियंत्रित करने में हल्‍दी काफी हद तक प्रभावी होती है। 

(और पढ़ें - हल्दी के दूध के फायदे)

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दुनियाभर में मृत्‍यु के सबसे बड़े कारणों में से एक अर्बुद है। इस बीमारी में शरीर में कहीं भी अनचाही और अनियंत्रित कोशिकाओं का विकास होने लगता है। ये कोशिकाएं शरीर में काफी गहराई में जाकर विकसित होती हैं और शुरुआती चरण में इनमें दर्द या मवाद नहीं होती है। हालांकि, औषधि के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ है लेकिन फिर भी वर्तमान की चिकित्‍साओं में कुछ महत्‍वपूर्ण खामियां मौजूद हैं, इनमें सुधार करने की जरूरत है। इसके अलावा, कैंसर के उपलब्ध उपचार के विकल्पों जैसे कि कीमोथेरेपी के कई दुष्प्रभाव भी होते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार कारक दोष और ऊतक के आधार पर कैंसर को वर्गीकृत किया जा सकता है। आयुर्वेद में निम्‍न तरीकों से कैंसर का वर्गीकरण किया गया है:

  • वात, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण वातज, पित्तज और कफज अर्बुद होता है।
  • त्रिदोषज एक मिश्रित प्रकार का ट्यूमर है जो शरीर के किसी भी हिस्‍से में हो सकता है।
  • प्रभावित धातु के आधार पर कैंसर के तीन प्रकार हो सकते हैं – रक्‍तज अर्बुद (रक्‍त को प्रभावित), ममसाज अर्बुद (मांसपेशी और नरम ऊतकों का ट्यूमर) और मेदोज (वसा ऊतकों का कैंसर)।
  • कैंसर की जगह और अंग जैसे कि कान, आंख, नाक आदि के आधार पर भी इसे वर्गीकृत किया गया है।
  • कैंसर की बीमारी साध्‍य है या असाध्‍य यह रोग के लक्षण के आधार पर यह बताया जा सकता है।

इसके बाद ट्यूमर्स को घातक या सौम्‍य ट्यूमर के रूप में वर्गीकृत किया गया है। सौम्‍य ट्यूमर कम हानिकारक होते हैं, हालांकि, इसके तुरंत इलाज की जरूरत होती है। वहीं घातक ट्यूमर से जान को खतरा हो सकता है। 

(और पढ़ें - ब्रेन ट्यूमर का सफल इलाज)

  • स्‍नेहन
    • ये एक डिटॉक्सिफिकेशन विधि है जिसमें गर्म औषधीय तेल को पूरे शरीर या किसी विशिष्‍ट बिंदु पर लगाया जाता है।
    • तेल त्‍वचा और रक्‍त में जाकर उन्‍हें शिथिल करता है और उनमें फंसे विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालता है। इस तरह कैंसर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इस प्रक्रिया के परिणामस्‍वरूप, गहन ऊतकों से विषाक्‍त जठरांत्र मार्ग की ओर आने लगते हैं। अमा पाचन मार्ग में प्रवेश करती है इसलिए तेल यहां के ऊतकों को चिकना और नुकसान से बचाता है।
    • तेल में विभिन्‍न जड़ी-बूटियों को मिलाया जाता है जो शरीर से स्‍नेहन तेल को निकालने में मदद करती हैं और उसे जमने से रोकती हैं। विभिन्‍न तेलों का इस्‍तेमाल इस प्रक्रिया में किया जाता है लेकिन जिस दोष के कारण रोग हुआ है उसी के आधार पर तेलों का चयन किया जाता है।
    • आमतौर पर ये 3 से 7 दिन की चिकित्‍सा होती है। आयुर्वेद के अनुसार बहुत कमजोर या मजबूत पाचन वाले व्‍यक्‍ति को इस चि‍कित्‍सा की सलाह नहीं दी जाती है। दस्‍त या उल्‍टी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को भी ये चिकित्‍सा नहीं दी जाती है। (और पढ़ें - पाचन शक्ति बढ़ाने के उपाय)
       
  • विरेचन कर्म
    • इस प्रक्रिया में विभिन्‍न जड़ी-बूटियां जैसे कि सेन्‍ना और रूबर्ब का प्रयोग कर मल त्‍याग के जरिए शरीर की सफाई की जाती है। इससे शरीर से मल साफ होता है और अमा बाहर निकल जाती है। पित्ताशय, लिवर और छोटी आंत में अत्‍यधिक पित्त को विरेचन द्वारा निकाला जाता है। कफ दोष को नियंत्रित करने में भी इसका इस्‍तेमाल किया जाता है जो कि अत्‍यधिक पित्त, वसा और बलगम के रूप में शरीर में मौजूद होता है।
    • विरेचन चिकित्‍सा के कारण शरीर में पोषक तत्‍वों की कमी हो जाती है इसलिए इन्‍हें वापिस पाने के लिए विरेचन के बाद चावल और दाल के साथ हल्‍का भोजन करने की सलाह दी जाती है।
    • वात दोष की स्थिति में ऐसा करने की सलाह नहीं दी जाती है क्‍योंकि इसमें पाचन अग्‍नि कमजोर हो जाती है। मलद्वार में अल्‍सर, गर्भावस्‍था और कमजोर एवं दुर्बल व्‍यक्‍ति को भी ये चिकित्‍सा नहीं देनी चाहिए।
       
  • बस्‍ती कर्म
    • बस्‍ती एक आयुर्वेदिक एनिमा चिकित्‍सा है। ये पश्चिमी एनिमा की तरह नहीं होती है जोकि सिर्फ मलद्वार और छोटी आंत (कोलोन) के अंतिम भाग को साफ करती है। बस्‍ती कर्म संपूर्ण छोटी आंत, मलद्वार और गुदा का उपचार करती है।
    • ये न सिर्फ शरीर से मल को साफ करती है बल्कि अमा को भी बाहर निकालती है और कई प्रकार के विकारों जैसे कि गंभीर कब्‍ज, कैंसर, गठियाऑस्टियोपोरोसिसअल्जाइमर रोग और मिर्गी को नियंत्रित करने में मददगार है।
    • शिशु या दस्‍त, कोलोन कैंसर, मलद्वार में ब्‍लीडिंग और पोलिप से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति पर बस्‍ती कर्म का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
       
  • स्‍वेदन
    • स्‍वेदन एक प्रकार की भाप चिकित्‍सा है जो कि आयुर्वेद में पंचकर्म चिकित्‍सा का महत्‍वूर्ण हिस्‍सा है। इस प्रक्रिया के दौरान औषधीय भाप द्वारा शरीर के सभी चैनल्‍स (पूरे शरीर में बहने वाली ऊर्जा के प्रवाह के 12 मुख्य माध्यम या चैनल हैं , इस जीवन ऊर्जा को चीन के पांरपरिक ज्ञान में “की” (Qi) और “ची” (Chi or Chee) कहा जाता है) को खोल दिया जाता है जिससे अमा को जठरांत्र मार्ग में प्रवाहित होने में मदद मिलती है और यहां से अमा आसानी से शरीर से बाहर निकल जाती है। ये त्‍वचा और खून से अमा को साफ करता है। (और पढ़ें - भाप कैसे ले)
    • स्‍वेदन चिकित्‍सा के ताप से वात और कफ को संतुलित करने में मदद मिलती है और शरीर से ठंडक एवं अकड़न को दूर करती है। दोष के बीच संतुलन करने और शरीर को डिटॉक्सिफिकेशन करना कैंसर का एक उपयोगी चिकित्‍सकीय तरीका हो सकता है।
    • नाड़ी स्‍वेद (भाप से सिकाई) के रूप में प्रभावित हिस्‍से पर इस चिकित्‍सा को दिया जा सकता है। शिग्रु (सहजन पेड़) और मांस को उबालकर बनाए गए जूस से प्रभावित हिस्‍से पर भाप दी जाती है।
    • स्‍वेदन करने की विभिन्‍न प्रक्रियांए होती हैं जैसे कि तप, उपनाह, ऊष्‍मा (भाप) और धारा (पूरे शरीर पर गर्म औषधीय तेल या काढ़ा डालना)। आमतौर पर कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों में शरीर से अमा को दूर करने के लिए तप और उपनाह का उपयोग किया जाता है।
       
  • तप
    • तप चिकित्‍सा में धातु की वस्‍तु या गर्म कपड़े से शरीर या प्रभावित हिस्‍से की सिकाई की जाती है।
    • ये चिकित्‍सा वात और कफ दोषों के कारण हुए रोगों को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
       
  • उपनाह
    • इसमें रात को सोने से पहले शरीर पर गर्म पुल्टिस लगाई जाती है।
    • इस पुल्टिस को मरीज की चिकित्‍सकीय स्थिति के आधार पर विभिन्‍न जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार किया जाता है। पुल्टिस लगाने के बाद ऊन या रेशम का तेल लगा गर्म कपड़ा शरीर पर बांध दिया जाता है। इसके बाद मरीज को सोने के लिए कह दिया जाता है।
    • ये असंतुलित हुए दोष को ठीक करने में मदद करता है और वात दोष के विकारों के इलाज में बेहतरीन उपचार है।
       
  • रक्‍तमोक्षण
    • रक्‍त मोक्षण एक डिटॉक्सिफाइंग प्रक्रिया है जिसमें शरीर के विभिन्‍न हिस्‍सों से खून द्वारा विषाक्‍त पदार्थ को बाहर निकाला जाता है। इस तरह ये कैंसर को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • पित्त विकारों जैसे कि त्‍वचा, लिवर और प्‍लीहा रोग की स्थिति में तुरंत राहत पाने के लिए भी ये चिकित्‍सा प्रभावकारी है।
    • ये वातज, पित्तज, कफज और मेदोज ट्यूमर को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • जिस दोष के कारण रोग हुआ है उसके आधार पर रक्‍तमोक्षण प्रक्रिया के लिए गाय के सींग, गैर-जहरीली जोंक और लौकी का इस्‍तेमाल किया जाता है। मेदोज ट्यूमर में ट्यूमर पर चीरा लगाने के बाद रक्‍तमोक्षण किया जाता है।
       
  • अग्‍नि कर्म और क्षार कर्म
    • अग्नि कर्म में ट्यूमर वाले मांस को गर्म उपकरण से जलाया जाता है जबकि क्षार कर्म में ज्वलनशील पदार्थ से ट्यूमर के मांस को जलाया और बांधा जाता है।
    • इन चिकित्‍साओं का प्रयोग अकेले या सर्जरी चिकित्‍सा के साथ कर सकते हैं। ये कफज ट्यूमर, मेदोज ट्यूमर और अन्‍य औषधीय उपचारों से ठीक न हो पाने वाले ट्यूमर को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • सर्जिकल प्रक्रिया से पूरे ट्यूमर को निकालना मुश्किल हो सकता है। आमतौर पर सर्जरी के बाद अग्नि कर्म और क्षार कर्म की सलाह दी जाती है।
       
  • शस्‍त्र कर्म
    • अगर किसी औषधीय चिकित्‍सा पर ट्यूमर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है तो इसे सर्जरी द्वारा निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में पूरे ट्यूमर को बाहर निकाला जाता है जो कि इसे दोबारा होने से रोकेगा। सर्जिकल उपचार में छेदन (काटना) या लेखन (काटने के साथ खुरचना) किया जाता है।
    • सर्जिकल उपचार के दौरान आयरनजिंकतांबा या सीसा से बनी टूनिकेट (नस या धमनी के माध्यम से रक्त के प्रवाह को रोकने वाला उपकरण) के इस्‍तेमाल से कैंसर को अन्‍य अंगों में फैलने से रोका जाता है। इसके बाद ट्यूमर की गहराई और विस्‍तार के आधार पर मांस को अग्नि कर्म या क्षार कर्म द्वारा नष्‍ट किया जाता है। 

(और पढ़ें - पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर का इलाज)

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कैंसर के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • पिप्‍पली
    • ये श्‍वसन, पाचन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, परजीवी रोधी, वायुनाशी (पेट फूलने की समस्‍या को कम करने) और कफ निस्‍सारक (बलगम खत्‍म करने वाले) गुण मौजूद होते हैं।
    • पिप्‍पली कई रोगों जैसे कि जुकामखांसीदमा, गठिया और साइटिका को नियंत्रित करने में उपयोगी है। ये शरीर से अमा को साफ करती है और प्रतिरक्षा कार्य को बढ़ाती है। इस तरह कैंसर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
    • इसके कारण पित्त दोष बढ़ सकता है इसलिए इसका इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
       
  • गुडूची (गिलोय)
  • ब्राह्मी
    • ब्राह्मी परिसंचरण, पाचन, श्‍वसन, तंत्रिका, प्रजनन और उत्‍सर्जन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये मस्तिष्‍क की कोशिकाओं और नसों को ऊर्जा देने के लिए उत्तम मानी जाता है। प्रतिरक्षा तंत्र के कार्य में सुधार लाने के लिए जानी जाती है।
    • ब्राह्मी से बार-बार पेशाब आता है जिससे शरीर से अमा को बाहर निकालने में मदद मिलती है। कैंसर को नियंत्रित करने में ये गुण मदद कर सकते हैं।
    • इसके अलावा सोरायसिस और संधिवात जैसे रोगों के इलाज में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
       
  • हरिद्रा
    • हरिद्रा परिसंचरण, पाचन, श्‍वसन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें जीवाणुरोधी, वायुनाशी और कृमिनाशक गुण होते हैं।
    • घाव भरने, रक्‍त साफ करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। ये खून बनाने में भी मदद करती है। इस वजह से इसे कैंसर में उपयोगी माना गया है। (और पढ़ें - घाव भरने का देसी इलाज)
    • कैंसर को नियंत्रित करने के अलावा हेपेटाइटिस, त्‍वचा रोग, मूत्र संबंधित रोगों और गंभीर ब्रोंकाइल अस्‍थमा के इलाज में भी इसका इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • अश्‍वगंधा
    • अश्‍वगंधा तंत्रिका, प्रजनन और श्‍वसन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये ऊर्जादायक है और प्रतिरक्षा बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियों में सबसे ज्‍यादा असरकारी है। आयुर्वेद में इसे दिमाग के लिए टॉनिक बताया गया है। अश्‍वगंधा के ये गुण इसके कैंसर को नियंत्रित करने वाले प्रभाव को और ज्‍यादा बेहतर बनाते हैं। ऊर्जादायक जड़ी-बूटी होने के कारण कीमोथेरेपी के बाद और पहले शरीर को शक्‍ति प्रदान करने के लिए विशेष रूप से अश्‍वगंधा का प्रयोग किया जाता है।
    • इसके अलावा ये एड्स, याद्दाश्‍त में कमी, त्‍वचा रोग, अल्‍सर और रुमेटिक सूजन के इलाज में भी उपयोगी है।
       
  • यष्टिमधु
    • यष्टिमधु पाचन, तंत्रिका, उत्‍सर्जन, श्‍वसन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें वमनकारी (उल्‍टी), कफ निस्‍सारक, रेचक (दस्‍त), शामक (दर्द दूर करने वाले) और शांतिदायक गुण मौजूद होते हैं।
    • ये खून को साफ और मस्तिष्‍क को पोषण देती है। कैंसर, लेरिन्जाइटिस, सूजन, गले में खराश और अल्‍सर को नियंत्रित करने में उपयोगी है।

कैंसर के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • महा मंजिष्‍ठादि क्‍वाथ
    • इसमें मंजिष्‍ठा, मूर्वा (मरोड़फली), कुटज, गुडुची, शुंथि (सूखी अदरक), कंटकारी (छोटी कटेरी), वच, हरिद्रा, पिप्‍पली और कटुकी मौजूद है।
    • ये विसर्प (एक्जिमा) और कुष्‍ठ रोगों को नियंत्रित करने में मदद करती है। इस क्‍वाथ में मौजूद अनेक सामग्रियां अपने इम्‍यूनोमॉड्यूलेट्री (इम्‍यून सिस्‍टम के कार्य में सुधार करने वाले रसायनिक यौगिक) और ऊर्जादायक गुणों के कारण कैंसर को नियंत्रित करने में प्रभावी है।
  • त्रिफला
    • इसमें तीन फल आमलकीहरीतकी और विभीतकी होते हैं। इस मिश्रण में ऊर्जादायक, जीवाणुरोधी, फंगलरोधी और मलेरिया रोधी गुण पाए जाते हैं।
    • त्रिफला शरीर में पोषक तत्‍वों के अवशोषण को बेहतर और चयापचय में सुधार करने में मदद करती है। इसके अर्बुदरोधक (ट्यूमर को बढ़ने से रोकना), कीमो और रेडियो सुरक्षात्‍मक प्रभाव होते हैं। इसलिए कैंसर के इलाज में ये उपयोगी है और कीमोथेरेपी तथा रेडियोथेरेपी में सहायता के लिए इसे लिया जाता है।
       
  • कंचनार गुग्‍गुल
    • इसमें कंचनार की छाल, त्रिफला, त्रिकुट (तीन फल), वरुण की छाल, दालचीनी, एला (इलायची), तमालपत्र और गुग्‍गुल है।
    • त्रिफला कैंसर को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में से एक है और इस मिश्रण में मौजूद अन्‍य सामग्रियों में भी कैंसर रोधी गुण पाए जाते हैं। इस तरह कंचनार गुग्‍गुल कैंसर की बीमारी में असरकारी होती है। इसके अलावा ये गंडमाला रोग (गर्दन की ग्रंथियों में सूजन) को नियंत्रित करने के लिए भी इस्‍तेमाल की जाती है।
  • रुद्र रस
    • इसे अर्बुदहारा रस भी कहा जाता है और इसमें विभिन्‍न चीज़ें जैसे कि पान के पत्तेपुनर्नवागोमूत्र, पिप्‍पली और चौलाई के काढ़े के साथ पारा एवं सल्‍फर पाउडर मौजूद है।
    • ये सभी प्रकार के कैंसर को नियंत्रित करने में उपयोगी है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

क्‍या करें

क्‍या न करें

  • संसाधित खाद्य पदार्थ न खाएं।
  • अपने भोजन में मांस न लें।
  • गंदा और प्रदूषित पानी न पीएं। (और पढ़ें - पानी साफ करने का तरीका)
  • प्रदूषित वातावरण में रहने से बचें। अपने आसपास गंदगी न रहने दें।
  • धूम्रपान, तंबाकू और शराब का सेवन न करें। (और पढ़ें - शराब छुड़ाने के उपाय)

उपरोक्‍त जड़ी-बूटियों और औषधियों के दुष्‍प्रभाव कीमोथेरेपी की तरह नहीं हैं। इन जड़ी-बूटियों एवं औषधियों से सकारात्‍मक परिणाम पाने के लिए सबसे ज्‍यादा जरूरी है इनका सही इस्‍तेमाल करना।

इन प्राकृतिक जड़ी-बूटियों के प्रयोग से पहले आवश्‍यक सावधानियां बरतना जरूरी है क्‍योंकि इनके कुछ हानिकारक प्रभाव भी हो सकते हैं। उदाहरणार के लिए पिप्‍पली के कारण पित्त दोष बढ़ सकता है जबकि अत्‍यधिक कफ में मुलेठी का सावधानीपूर्वक इस्‍तेमाल करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं में इसके प्रयोग से बचना चाहिए। 

(और पढ़ें - प्रेगनेंसी में होने वाली परेशानियां)

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कैंसर पूरे विश्व में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। हालांकि, इसका उपचार काफी चुनौतीपूर्ण है इसलिए सही उपचार और उचित देखभाल से कैंसर को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।

आयुर्वेद में अनेक चिकित्‍साओं, जड़ी-बूटियों और औषधियों का उल्‍लेख है जो कैंसर को प्रभावी तरीके से नियंत्रित करने और उसमें सुधार लाने में मदद कर सकती हैं।

आमतौर पर कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी का इस्‍तेमाल किया जाता है लेकिन इसके अनेक हानिकारक प्रभाव भी होते हैं। आयुर्वेद और आधुनिक औषधियों की मदद से कैंसर, इसके लक्षणों और वर्तमान में चल रहे उपचारों के दुष्‍प्रभावों को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।

हालांकि, आयुर्वेदिक उपचार में प्राकृतिक जड़ी-बूटियां शामिल होती हैं इसलिए किसी भी तरह के दुष्‍प्रभाव से बचने और रोग को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की सलाह पर ही इनका प्रयोग करना चाहिए।

(और पढ़ें - कैंसर में क्या खाना चाहिए)

Dr. Harshaprabha Katole

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Dr. Dhruviben C.Patel

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Dr Prashant Kumar

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Dr Rudra Gosai

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1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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