गर्दन में दर्द को आयुर्वेद में मान्य शूल कहा जाता है। इसमें गर्दन और पीठ के सर्वाइकल हिस्से में दर्द महसूस होता है। गलत पोस्चर में बैठने या आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस (गठिया का एक रूप है जो रीढ़ को प्रभावित करता है), सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस (रीढ़ की हड्डी से संबंधित रोग), रूमेटाइड आर्थराइटिस (जोड़ों में दर्द और सूजन) और स्लिप डिस्क (रीढ़ की हड्डी से शुरु होकर दर्द शरीर के कई हिस्सों में फैल जाता है) जैसी किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है।
गलत पोस्चर जैसे कि झुक कर खड़े होने, कंधों को झुका कर रखने, मोटे तकिए पर सोने या लंबे समय तक मोबाइल पर गर्दन को झुका कर देखने से गर्दन पर दबाव पड़ता है जिसकी वजह से उसमें दर्द और अकड़न पैदा होती है। उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियां कमजोर होने की वजह से भी गर्दन में दर्द हो सकता है।
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गर्दन में दर्द के लिए आयुर्वेद में विभिन्न उपचारों का उल्लेख किया गया है जिसमें स्नेहन (तेल मालिश), स्वेदन (पसीना निकालने की विधि), मान्य बस्ती (बाहरी बस्ती का एक प्रकार), बस्ती कर्म (एनिमा थेरेपी), नास्य कर्म (नाक से औषधि डालने की विधि) और लेप (औषधियों को प्रभावित हिस्से पर लगाना) शामिल है।
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गर्दन में दर्द को नियंत्रित करने के लिए जिन आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है वो गोक्षुर, बाला, अश्वगंधा और रसोनम (लहसुन) हैं। इसके अलावा गर्दन के दर्द से छुटकारा पाने के लिए खाने और लगाने की औषधि में महारास्नादि कषाय, लाक्षा गुग्गुल, प्रसारिणि तेल, योगराज गुग्गुल, दशमूल क्वाथ और त्रिफला रसायन का नाम शामिल है।