भारत के विश्व प्रसिद्ध महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का गुरुवार को पटना में देहांत हो गया। वह पिछले कुछ दिनों से एक गंभीर बीमारी के चलते पटना मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में भर्ती थे। आइंस्टीन की थ्योरी को चुनौती देने और अपनी साइकिल वेक्टर स्पेस थ्योरी के लिए विश्व भर में अपनी पहचान बनाने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म सन 1942 में बिहार में भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में हुआ था। उन्होनें 1969 में पीएचडी पूरी करने के बाद कुछ वर्ष अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनीस्ट्रेशन) में भी काम किया। कहा जाता है कि नासा के अपोलो मिशन के दौरान कंप्यूटर में खराबी आने पर वशिष्ठ नारायण सिंह ने जो कैलकुलेशन की थी वह बिल्कुल कंप्यूटर जैसी ही थी।
वशिष्ट नारायण सिंह सिर्फ 37 वर्ष की उम्र में ही सिजोफ्रेनिया (स्किजोफ्रेनिया) नाम के एक मानसिक रोग से ग्रसित हो गए। सिजोफ्रेनिया मस्तिष्क को प्रभावित करता है, जिसमें व्यक्ति की सोचने, काम करने, भावनाओं को व्यक्त करने, वास्तविकता अपनाने और दूसरों से संबंध रखने की क्षमता कम हो जाती है। इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति अपनी काल्पनिक और वास्तविकता दुनिया में अंतर नहीं कर पाता। सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति को अक्सर समाजिक संबंधों, काम, स्कूल और रिश्ते निभाने संबंधित समस्याएं आती हैं। वैसे तो यह विकार पुरुषों व महिलाओं दोनों को हो सकता है, लेकिन पुरुषों में ही यह ज्यादा देखा जाता है।
क्या है सिजोफ्रेनिया ?
स्किजोफ्रेनिया या सिजोफ्रेनिया को हिंदी में मनोविदलता कहा जाता है, यह एक गंभीर मानसिक रोग है। सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त लोगों की लगभग सभी मानसिक गतिविधियां प्रभावित हो जाती हैं। सिजोफ्रेनिया के रोग कई प्रकार के होते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं :
- पैरानॉयड सिजोफ्रेनिया
- डिसऑर्गेनाइज्ड (अव्यवस्थित) सिजोफ्रेनिया
- कैटाटनिक सिजोफ्रेनिया
- रेजिडुअल एंड अनडिफ्रेंशिएटेड (अवशिष्ट और अधोसंरक्षित) सिजोफ्रेनिया
भारत में सिजोफ्रेनिया के आंकड़े और इलाज
1 अरब से भी अधिक आबादी वाले भारत देश में हर 1000 व्यक्ति में तीन लोग सिजोफ्रेनिया विकार से ग्रस्त होते हैं। इस रोग से पृथ्वी की 1 प्रतिशत आबादी जूझ रही है, यानि दुनियाभर में कुल 2 करोड़ 1 लाख लोगों को यह रोग है। इस संख्या में 1 करोड़ 20 लाख पुरुष हैं तो 90 लाख महिलाएं। यह रोग पुरुषों में अधिक आम है और साथ ही यह उनमें कम उम्र में हो जाता है। सामान्य रूप से स्वस्थ लोगों के मुकाबले सिजोफ्रेनिया के रोगियों की जल्दी मृत्यु होने की आशंका 2-3 गुना अधिक होती है। यह रोग कई अन्य शारीरिक रोगों के कारण भी हो सकता है जैसे हृदय रोग, मेटाबॉलिज्म व संक्रमण संबंधी रोग।
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सिजोफ्रेनिया का उपचार मौजूद होने के बावजूद भी इसके 50 प्रतिशत मरीजों को इलाज उपलब्ध नहीं हो पाता है, जिनमें से 90 फीसदी लोगों के साथ ऐसा गरीबी के कारण होता है। भारत में मानसिक रोगों का इलाज हर जगह पर मौजूद नहीं है। इतनी अधिक आबादी होने के बावजूद भी भारत में केवल 4 हजार मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं। इस रोग का इलाज करने के लिए कई न्यूरोलॉजिकल मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है, भारत में इन मशीनों की कमी होना भी इलाज की उपलब्धता को प्रभावित कर रहा है।
डब्लूएचओ द्वारा जारी किए गए मेन्टल हेल्थ एक्शन प्लान 2013-2020 को पाकिस्तान, ईरान, इथियोपिया, भारत और तंज़ानिया जैसे देशों को नजर में रखते हुए लॉन्च किया गया था। इस हेल्थ केयर फेसिलिटी में मरीज की निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है।
- जरूरी दवाएं उपलब्ध कराना
- मरीज के शारीरिक व मानसिक बदलावों पर निरंतर नजर रखना
- मरीज की घर पर देखभाल करने के लिए परिवारजनों को प्रोत्साहित करना
- लोगों को भेदभाव न करने के लिए जागरुक करना
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