मनोविदलता (स्किज़ोफ्रेनिया) एक मानसिक विकार है जिसे मतिभ्रम (ऐसी चीज़ों या आवाज़ों का सुनाई देना जिनका कोई अस्तित्व ही न हो), डिप्रेशन, मूड बदलने और भ्रम के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसका असर व्यक्ति की सोचने और समझने की क्षमता पर पड़ता है जिससे उसके व्यवहार में बदलाव आता है।
आयुर्वेद के अनुसार स्किज़ोफ्रेनिया किसी एक प्रकार के मानसिक विकार से संबंधित नहीं हो सकता है लेकिन स्किज़ोफ्रेनिया के लक्षण कई प्रकार के उन्माद (मानसिक विकार) से मिलते-जुलते होते हैं। खराब और दूषित पेय या खाद्य पदार्थ, मानसिक संतुलन खोने और गलत जीवनशैली की वजह से शरीर में त्रिदोष खराब होने लगते हैं जिससे स्किज़ोफ्रेनिया जैसे मानसिक विकार होने का खतरा बढ़ जाता है।
(और पढ़ें - त्रिदोष किसे कहते है)
स्किज़ोफ्रेनिया के प्रमुख इलाज के रूप में पंचकर्म थेरेपी जैसे कि विरेचन (दस्त की विधि), वमन (औषधियों से उल्टी लाने की विधि), स्नेहन (तेल लगाने की विधि) और तप (सिकाई) की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही दिमाग को तेज करने वाली जड़ी बूटियों जैसे कि अश्वगंधा, जटामांसी, सर्पगंधा और वच एवं सारस्वतारिष्ट तथा महाकल्याणक घृत जैसे मिश्रण दिए जाते हैं।
(और पढ़ें - दिमाग तेज करने का उपाय)
- आयुर्वेद के दृष्टिकोण से स्किज़ोफ्रेनिया - Ayurveda ke anusar Schizophrenia
- स्किज़ोफ्रेनिया का आयुर्वेदिक उपचार - Schizophrenia ka ayurvedic ilaj
- स्किज़ोफ्रेनिया की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Schizophrenia ki ayurvedic dawa aur aushadhi
- आयुर्वेद के अनुसार स्किज़ोफ्रेनिया में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Schizophrenia kam karne ke liye kya kare kya na kare
- स्किज़ोफ्रेनिया की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Schizophrenia ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
- स्किज़ोफ्रेनिया की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Schizophrenia ki ayurvedic dawa ke side effects
- स्किज़ोफ्रेनिया की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Schizophrenia ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से स्किज़ोफ्रेनिया - Ayurveda ke anusar Schizophrenia
चरक संहिता द्वारा चेतना, ज्ञान, व्यवहार, मन, इच्छा, बुद्धि, आचरण, शिष्टाचार और याददाश्त के विकृत (खराब) होने के रूप में उन्माद का वर्णन किया गया है। आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार दोषों का उन्मार्ग (असंतुलित) या खराब होना एवं शरीर की अंदरूनी शक्ति में असंतुलन पैदा होना स्किज़ोफ्रेनिया के प्रमुख काराणों में शामिल हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सक स्किज़ोफ्रेनिया के इलाज के लिए प्राणायाम, दृश्य प्रक्रियाएं, मंत्र, ध्यान और भजन करने की सलाह देते हैं। दोष के आधार पर स्किज़ोफ्रेनिया से ग्रस्त व्यक्ति में निम्नलिखित लक्षण देखने को मिलते हैं:
- पित्तज उन्माद:
पित्त से संबंधित उन्माद होने पर व्यक्ति में गुस्सा, धमकाने, कुछ खट्टा, गर्म या तीखा खाने के बाद अपच होने जैसे लक्षण सामने आते हैं। ये सभी लक्षण रात के समय बढ़ जाते हैं। (और पढ़ें - गुस्सा शांत करने के उपाय)
- वातज उन्माद:
वात से संबंधित उन्माद के लक्षणों में संगीत गाना, बातें करना, हंसना या तेज चिल्लाना या किसी संगीत वाद्ययंत्र की तरह आवाज़ें निकालना शामिल है। इस प्रकार के उन्माद में याददाश्त में कमी आना भी एक प्रमुख लक्षण है। (और पढ़ें - याददाश्त खोने के लक्षण)
- कफज उन्माद:
कफ से संबंधित उन्माद के लक्षणों में खाने की इच्छा में कमी और एकांत (अकेले) रहना शामिल है। रात को खाना खाने के बाद मानसिक लक्षण और ज्यादा बढ़ जाते हैं। कफ से संबंधित उन्माद में उल्टी, अवसाद, कुछ करने की इच्छा में कमी आना और कुछ न करने की इच्छा जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं।
स्किज़ोफ्रेनिया के इलाज में जड़ी बूटियों और मिश्रणों का चयन प्रभावित दोष के प्रकार के आधार पर किया जाता है। आयुर्वेद में सभी प्रकार के मानसिक विकारों (स्किज़ोफ्रेनिया का भी) उपचार संभव है। इसमें जीवनशैली में सुधार कर व्यक्ति को मानसिक रूप से स्वस्थ बनाया जाता है। इसके अलावा एकाग्रता बढ़ाने और संपूर्ण सेहत में सुधार के लिए योग तथा ध्यान की सलाह भी दी जाती है।
स्किज़ोफ्रेनिया के इलाज के लिए आयुर्वेद में प्रमुख पंचकर्म थेरेपी के साथ अन्य उपचारों जैसे कि शिरोधारा (तरल या तेल को सिर के ऊपर डालने की विधि), अभ्यंग (तेल मालिश) और सरसों के तेल में औषधियों को मिलाकर लगाने का उल्लेख किया गया है।
स्किज़ोफ्रेनिया का आयुर्वेदिक उपचार - Schizophrenia ka ayurvedic ilaj
- विरेचन
- विरेचन कर्म का इस्तेमाल विशेष तौर पर गुदा मार्ग के ज़रिए शरीर से अतिरिक्त पित्त को बाहर निकालने के लिए किया जाता है।
- विरेचन क्रिया पीलिया, अस्थमा, त्वचा रोगों, जठरांत्र संबंधित विकारों और मानसिक विकारों जैसे कि मिर्गी और उन्माद के इलाज में मददगार है।
- विरेचन कर्म से पहले अंदरूनी स्वेदन किया जाता है।
- विरेचन के बाद पेट में हल्कापन महसूस होता है और भूख में भी सुधार आता है।
- इस चिकित्सा का इस्तेमाल खासतौर पर पित्त प्रकार के उन्माद के कारण हुए स्किज़ोफ्रेनिया के इलाज में किया जाता है। ये चिकित्सा पित्त से संबंधित गुस्से, चिंता, अनिद्रा, डर और चिड़चिड़ापन को दूर करती है।
- स्नेहन
- स्नेहन चिकित्सा में शरीर के बाहरी और आंतरिक स्वेदन के लिए स्नेहक (चिकने पदार्थों) का इस्तेमाल किया जाता है।
- ये शरीर के विभिन्न हिस्सों से विषाक्त पदार्थों को एक जगह इकट्ठा करने में मदद करती है जिससे उन्हें आसानी से शरीर से बाहर निकाल लिया जाता है।
- स्नेहन के लिए तेल को शरीर पर लगाया जाता है या फिर एनिमा के रूप में दिया जाता है या नासिका मार्ग से तेल डाला जाता है।
- बाहरी तौर पर इस्तेमाल करने पर त्वचा पर तेल की एक पतली परत लगाई जाती है जिसके बाद शरीर की मालिश की जाती है।
- पित्त या कफ प्रकार के मानसिक रोगों के इलाज में स्वेदन उपयोगी है।
- वमन
- वमन चिकित्सा शरीर से अतिरिक्त कफ और पित्त को साफ करने में मदद करती है। इसलिए ये पित्त या कफ दोष में असंतुलन के कारण हुए स्किज़ोफ्रेनिया के इलाज में असरकारी है।
- वमन कर्म में इस्तेमाल होने वाली कुछ सामान्य जड़ी बूटियां मदनफल, विडंग, कुटज और निम्बा (नीम) हैं।
- ये चिकित्सा एनोरेक्सिया (असामान्य रूप से शरीर का कम वज़न, वज़न बढ़ाने का अत्यधिक डर), श्वसन संबंधित रोगों, त्वचा विकारों, अल्सर और साइनस के इलाज में मददगार है।
- पित्त से संबंधित उन्माद से ग्रस्त व्यक्ति को स्वेदन और पसीना निकालने की विधि के बाद वमन करना चाहिए।
- तप
- स्वेदन चिकित्सा का एक प्रकार तप या सिकाई भी है जो कि शरीर की नाडियों को साफ और उनमें से अमा को तरल में बदलने में प्रभावी है।
- तप कर्म में गर्म धातु की वस्तु या कपड़े से शरीर या प्रभावित हिस्से की सिकाई की जाती है। इससे शरीर से अतिरिक्त कफ और वात दोष बाहर निकल जाता है। इस प्रक्रिया में गर्म हाथों का भी प्रयोग किया जाता है।
- उन्माद से ग्रस्त व्यक्ति को वमन और विरेचन चिकित्सा से पहले स्नेहन के साथ तप की सलाह दी जाती है।
(और पढ़ें - मानसिक रोग दूर करने के उपाय)
स्किज़ोफ्रेनिया की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Schizophrenia ki ayurvedic dawa aur aushadhi
स्किज़ोफ्रेनिया के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां
- जटामांसी
- जटामांसी स्वाद में तीखी जड़ी बूटी है जिसमें संकुचक (ऊतकों को संकुचित करने वाले), मूत्रवर्द्धक, नसों को आराम देने वाले, सुगंधक, उत्तेजक और पाचक गुण होते हैं।
- नींद लाने एवं दिमाग को शक्ति देने के लिए ये उत्तम जड़ी बूटी है। स्किज़ोफ्रेनिया के मरीज़ में ये चिंता को दूर एवं गुस्से को शांत करती है। (और पढ़ें - गहरी नींद आने के घरेलू उपाय)
- जटामांसी मानसिक तनाव को कम करती है और सिरदर्द, पाचन संबंधित समस्याएं, किडनी स्टोन, त्वचा रोग एवं घबराहट के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें - किडनी स्टोन का आयुर्वेदिक इलाज)
- ये अनिद्रा, हिस्टीरिया (मानसिक अवसाद) और मिर्गी के इलाज में मदद करती है।
- आप जटामांसी को पाउडर, अर्क के रूप में या चिकित्सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
- सर्पगंधा
- सर्पगंधा श्वसन, उत्सर्जन, परिसंचरण और तंत्रिका प्रणाली पर कार्य करती है।
- हाइपरटेंशन की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सर्पगंधा की सलाह दी जाती है। ये जड़ी बूटी हिंसक अटैक के लक्षणों से भी राहत दिलाती है। (और पढ़ें - पैनिक अटैक के लक्षण)
- सर्पगंधा स्किज़ोफ्रेनिया के मरीज़ों में तनाव को कम करती है।
- मानसिक विकारों के साथ-साथ सर्पगंधा बुखार, पेचिश, अनिद्रा और मल त्याग के दौरान दर्द होने की समस्या को भी दूर करती है।
- आप सर्पगंधा को गोली, काढ़े, पाउडर के रूप में या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
- ब्राह्मी
- ब्राह्मी में पाचक, ऊर्जादायक, नसों को आराम देने वाले और मूत्रवर्द्धक गुण होते हैं।
- ब्राह्मी बुद्धि को बढ़ाने और दिमाग की कोशिकाओं एवं नसों को शक्ति प्रदान करने की उत्तम जड़ी बूटी है।
- ब्राह्मी तंत्रिका तंत्र के कार्य में सुधार लाती है और त्वचा रोगों जैसे कि सोरायसिस का इलाज करती है। ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है। (और पढ़ें - सोरायसिस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट)
- सौम्य उत्तेजक और शांतिदायक जड़ी बूटी होने के कारण ये मूड में सुधार लाने में मदद करती है।
- आप ब्राह्मी को घी या तेल के साथ पाउडर के रूप में, अर्क, काढ़े या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
- अश्वगंधा
- मष्तिष्क को शक्ति प्रदान करने के लिए अश्वगंधा एक सर्वोत्तम जड़ी बूटी है जो तंत्रिका तंत्र के कार्य में सुधार तथा मानसिक तनाव को कम करती है। (और पढ़ें - तनाव के लिए योग)
- ये जड़ी बूटी कई मानसिक विकारों जैसे कि चिंता, न्यूरोसिस (दुखी रहना), अनिद्रा, बाइपोलर विकार (हर समय दुविधा में रहना) और गतिभंग (अटैक्सिया: मांसपेशियों पर नियंत्रण न होने की वजह से कार्य न कर पाना) के इलाज में उपयोगी है।
- अश्वगंधा मस्तिष्क में ओजस के उत्पादन और वात के स्तर को शांत करता है जिससे उन्माद के लक्षणों में सुधार आता है।
- आप अश्वगंधा को हर्बल वाइन, पाउडर (घी या तेल के साथ), काढ़े के रूप में या चिकित्सक के अनुसार ले सकते हैं।
- वच
- वच में उत्तेजक, ऊर्जादायक और बंद नाक की समस्या दूर करने वाले गुण होते हैं।
- ये याददाश्त बढ़ाने और मिर्गी, पॉलिप्स, मानसिक आघात, जुकाम और अस्थमा के इलाज में उपयोगी है।
- वच के सुगंधित तेल में कपूर और अन्य जड़ी बूटियों को मिलाकर अवसाद से संबंधित मंदता को कम एवं मस्तिष्क की नाडियों को साफ करती है। (और पढ़ें - मानसिक मंदता के लक्षण)
- वच का इस्तेमाल खासतौर पर वात और कफ प्रकार के उन्माद में किया जाता है।
- आप वच का इस्तेमाल पाउडर, काढ़े, पेस्ट, दूध के काढ़े या डॉक्टर के निर्देशानुसार कर सकते हैं।
स्किज़ोफ्रेनिया के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
- महाकल्याणक घृत
- इसे 30 हर्बल सामग्रियों के साथ-साथ हल्दी, गाय का घी, चंदन, मंजिष्ठा, गाय का दूध, विडंग और इलायची से तैयार किया गया है।
- ये औषधि प्रमुख तौर पर स्किज़ोफ्रेनिया और अन्य मानसिक विकारों के इलाज में उपयोगी है।
- इसका इस्तेमाल भूलने की बीमारी (एमनेसिया) और हकलाने के इलाज में किया जाता है।
- सारस्वतारिष्ट
- इस हर्बल मिश्रण में 23 सामग्रियां जैसे कि विडंग, सोना, वच, गुडूची, चीनी, शतावरी, अश्वगंधा, शहद और ब्राहृमी मौजूद है।
- इस औषधि का इस्तेमाल मानसिक शांति पाने और याददाश्त बढ़ाने के लिए किया जाता है। ये मानसिक विकारों, डर और हकलाहट के इलाज में भी इस्तेमाल की जाती है।
- आप सारस्वतारिष्ट के साथ दूध या डॉक्टर के निर्देशानुसार भी ले सकते हैं।
- उन्माद गज केशरी
- उन्माद गज केशरी मैनसिल, गंधक, पारद और धतूरे के बीज का मिश्रण है। इस मिश्रण में वच और रसना का काढ़ा भी मिलाया गया है।
- उन्माद और मिर्गी के इलाज में प्रमुख तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है।
- स्मृति सागर रस
- ये एक पॉलीहर्बल (दो या अनेक जड़ी बूटियों से तैयार) मिश्रण है जिसमें गंधक, ताम्र (तांबा), पारद, मैनसिल और हरितला के साथ वच का काढ़ा, ज्योतिष्मती तेल या ब्राह्मी रस मिलाया गया है।
- ये औषधि बुद्धि में सुधार करती है और मिर्गी के इलाज में उपयोगी है।
- ब्राहृमी घृत
- ब्राहृमी घृत को विभिन्न आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों जैसे कि त्रिकटु (तीन कषाय – पिप्पली, शुंथि [सोंठ] और मारीच [काली मिर्च] का मिश्रण), ब्राह्मी, विडंग, गाय का घी, आरग्वध और 12 अन्य सामग्रियों से तैयार किया गया है।
- ब्राह्मी घृत का इस्तेमाल याददाश्त में सुधार और बुद्धि को तेज करने के लिए किया जाता है। ये मानसिक विकारों जैसे कि अवसाद, फोबिया, उन्माद और पागलपन के इलाज में असरकारी है।
- ये औषधि एकाग्रता में भी सुधार लाती है और हकलाने एवं शय्या-मूत्रण (बिस्तर गीला करने की समस्या) को कम करती है। (और पढ़ें - बिस्तर गीला करने के कारण)
व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
(और पढ़ें - मनोविकृति क्या है)
आयुर्वेद के अनुसार स्किज़ोफ्रेनिया में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Schizophrenia kam karne ke liye kya kare kya na kare
क्या करें
- संतुलित जीवनशैली का पालन एवं आहार का सेवन करें। (और पढ़ें - संतुलित आहार के फायदे)
- ध्यान, प्राणायाम, आसन और मंत्रों का उच्चारण करें।
- रसायन रहित ताजे खाद्य पदार्थों को ही खाएं।
- पुराने चावल, मुद्गा (मूंग दाल), कूष्मांड (पेठा), पटोला (तोरई) की पत्तियां, अंगूर, ब्राह्मी की पत्तियां और गाय का ताजा दूध लें।
- तुलसी, अदरक और इलायची का सेवन करें। ये हृदय और मन के स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं। (और पढ़ें - हृदय को स्वस्थ रखने के तरीके)
- याददाश्त और बुद्धि को बढ़ाने के लिए खाने में घी का इस्तेमाल करें।
- खाने के बाद आराम करना, खाने को चबा-चबा कर खाना, टीवी न देखना, संगीत सुनना या खाने के दौरान दूसरी चीज़ों में न उलझे रहना, खाना खाते समय ठीक से बैठना आदि अच्छी आदतों को अपनाएं।
- समय पर सोएं और पर्याप्त नींद लें। (और पढ़ें - कितने घंटे सोना चाहिए)
क्या न करें
- जल्दबाजी में न रहें, इससे चिंता और मन को परेशानी हो सकती है।
- गर्म या अनुचित खाद्य पदार्थ जैसे कि दूध के साथ मछली आदि न खाएं।
- वाइन न पीएं।
- प्राकृतिक इच्छाओं (जैसे कि प्यास लगना, नींद आना और भूख लगना) को रोके नहीं।
(और पढ़ें - तनाव दूर करने के घरेलू उपाय)
स्किज़ोफ्रेनिया की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Schizophrenia ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
हाल ही में हुए एक अध्ययन में स्किज़ोफ्रेनिया के इलाज में आयुर्वेदिक औषधियों और उपचार के प्रभाव की जांच की गई/। इसमें स्किज़ोफ्रेनिया से ग्रस्त 15 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था। अध्ययन के दौरान इन सभी प्रतिभागियों को महाकल्याणक घृत से स्नेहन के साथ वच खाने को दी गई।
इन औषधियों के साथ अन्य आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां और मिश्रण भी दिए गए। दो सप्ताह के उपचार से ही स्किज़ोफ्रेनिया के लक्षणों जैसे कि भ्रम में रहना, मतिभ्रम में सुधार देखा गया। सभी प्रतिभागियों के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार देखा गया।
(और पढ़ें - दिमाग के लिये योग)
स्किज़ोफ्रेनिया की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Schizophrenia ki ayurvedic dawa ke side effects
अनुभवी चिकित्सक की देखरेख में आयुर्वेदिक उपचार और औषधियों का प्रयोग पूरी तरह से सुरक्षित है। हालांकि, कुछ विशेष जड़ी बूटियां और उपचार किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकती हैं। स्किज़ोफ्रेनिया के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा लेने के दौरान कुछ सावधानियां बरतना भी जरूरी है, जैसे कि :
- विरेचन चिकित्सा के दौरान बहुत ज्यादा दस्त की वजह से सुस्ती, बेहोशी, पेट दर्द, गुदा से खून आना और कमजोरी की समस्या हो सकती है। (और पढ़ें - कमजोरी कैसे दूर करें)
- गर्भावस्था में भी वमन चिकित्सा हानिकारक होती है। बच्चों और वृद्धों पर भी वमन कर्म नहीं करना चाहिए। मजबूत पाचन अग्नि वाले और अगर किसी व्यक्ति को उल्टी करने में दिक्कत होती है तो उसे भी वमन चिकित्सा नहीं देनी चाहिए क्योंकि इसके कारण इन लोगों में पित्त और वात दोष में असंतुलन पैदा हो सकता है।
- सर्पगंधा की अधिक मात्रा जानलेवा साबित हो सकती है।
- छाती में बलगम जमने पर अश्वगंधा नहीं लेनी चाहिए। (और पढ़ें - बलगम का आयुर्वेदिक इलाज)
स्किज़ोफ्रेनिया की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Schizophrenia ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
स्किज़ोफ्रेनिया एक ऐसा मानसिक रोग है जिसमें व्यक्ति की सोचने और समझने की क्षमता कम हो जाती है। स्किज़ोफ्रेनिया न सिर्फ मरीज़ को प्रभावित करता है बल्कि इसका असर उसके पूरे परिवार के दैनिक जीवन पर भी पड़ता है।
स्किज़ोफ्रेनिया के इलाज में ऐसी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधीय मिश्रणों का इस्तेमाल करना चाहिए जो दिमाग के लिए टॉनिक (शक्तिवर्द्धक) और मस्तिष्क के कार्यों को उत्तेजित करने का काम करती हों। पंचकर्म थेरेपी शरीर से अमा को बाहर निकालने और खराब हुए दोष को संतुलन में वापिस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दोष का खराब होना ही अधिकतर रोगों का कारण है। मरीज़ की हालत में जल्दी सुधार लाने के लिए जड़ी बूटियों और औषधीयों के साथ प्राणायाम, योग और शरीर एवं मन को आराम देने वाली चिकित्साओं की सलाह दी जाती है।
(और पढ़ें - मन को शांत कैसे करे)
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स्किज़ोफ्रेनिया की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

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7 वर्षों का अनुभव
संदर्भ
- Nishant Singh. Panchakarma: Cleaning and Rejuvenation Therapy for Curing the Diseases . Institute of Clinical Research India; New Delhi
- Swami Sada Shiva Tirtha. The Ayurveda Encyclopedia. The Authoritative Guide to Ayurvedic Medicine; [Internet]
- Sukanto Sarkar et al. Add-on effect of Brahmi in the management of schizophrenia. J Ayurveda Integr Med. 2012 Oct-Dec; 3(4): 223–225. PMID: 23326095
- Central Council for Research in Ayurvedic Sciences. Diseases. National Institute of Indian Medical Heritage; Hyderabad
- Sudha Prathikanti. Ayurvedic Treatments: Complementary and Alternative Treatments in Mental Health Care. American Psychiatric Press; Washington, D.C