साइनस को दुष्ट प्रतिश्याय भी कहा जाता है। साइनस हवा से भरी छोटी-छोटी खोखली गुहा रूपी संरचनाएं हैं जो नाक के आसपास वाले हिस्से, गाल या माथे की हड्डी के पीछे एवं आंखों के बीच वाले हिस्से में पैदा होने लगती हैं।
स्वस्थ व्यक्ति में साइनस हवा से भरा होता है लेकिन अगर किसी व्यक्ति को ऊपरी श्वसन मार्ग में संक्रमण हो तो नासिका ऊतकों में सूजन होने लगती है जिसकी वजह से नासिका मार्ग में रुकावट उत्पन्न हो सकती है। साइनस की वजह से व्यक्ति को सिरदर्द, भारीपन, बार-बार नींद का टूटना और जठरांत्र संबंधित परेशानियां हो सकती हैं।
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साइनस के इलाज के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक प्राचीन और समग्र उपचार की सलाह देते हैं जिसमें वमन कर्म (औषधियों से उल्टी करवाने की विधि), नास्य कर्म (नासिक मार्ग से औषधि डालना) और विरेचन कर्म (मल निष्कासन की विधि) शामिल है।
आमतौर पर साइनस के लिए जिन जड़ी बूटियों और औषधियों की सलाह दी जाती है उनमें बिभीतकी, मारीच (काली मिर्च), उपकुंचिका (कलौंजी), अदरक, हरीद्रा (हल्दी), घृत (घी), वच, तुलसी, पिप्पली, चित्रक, हरीतकी (हरड़), व्योषादि वटी, कफकेतु रस, लक्ष्मीविलास रस और त्रिभुवनकीर्ति रस शामिल है।