टीबी को क्षयरोग या राजयक्ष्मा के नाम से भी जाना जाता है। टीबी की बीमारी में थकान, हल्‍का बुखार, रात में पसीना आना, भूख और वजन में कमी जैसे लक्षण नज़र आते हैं। इसके अलावा किस अंग में टीबी में हुआ है, इसके आधार पर अन्‍य लक्षण सामने आ सकते हैं। आमतौर पर टीबी सबसे ज्‍यादा फेफडों को प्रभावित करता है और इसके लक्षणों में शाम के समय बुखार आना, खांसी, गला बैठना, रात में पसीना आना, भूख एवं वजन में कमी, सीने में दर्द, हथेलियों तथा पैरों के तलवों में जलन शामिल हैं।

टीबी के आयुर्वेदिक उपचार में स्‍नेहन (तेल लगाना), स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि), वमन (औषधियों से उल्‍टी करवाने की‍ विधि) और विरेचन (दस्‍त की विधि) की सलाह दी जाती है।

हालांकि, ये चिकित्‍साएं सिर्फ उन मरीज़ों में प्रभावित होती हैं जिनमें दोष खराब या असंतुलित हुए हैं और जिनमें इन्‍हें सहन करने की क्षमता तथा ताकत हो। कमजोर व्‍यक्‍ति पर शोधन कर्म (शुद्धिकरण चिकित्‍सा) का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए और टीबी से ग्रस्‍त मजबूत व्‍यक्‍ति पर भी हल्‍के शोधन का इस्‍तेमाल करना चाहिए।

ऐसा इसलिए किया जाता है क्‍योंकि टीबी की बीमारी में सभी सात धातुओं का क्षय (नुकसान) हो जाता है। शरीर को मजबूती प्रदान करने के लिए बृंहण (पोषण) उपचार दिया जाना चाहिए। हालांकि, इस बात का पूरा ध्‍यान रखना चाहिए कि इससे धातु अग्नि प्रभावित न हो।

टीबी को नियंत्रित करने के लिए इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में विदरिकंड, ब्राह्मी, रसोनम (लहसुन), यष्टिमधु (मुलेठी), अश्वगंधा और गुडूची शामिल हैं। आयुर्वेद में टीबी को नियंत्रित करने के लिए औषधियों में एलादि चूर्ण, सितोपलादि चूर्ण, चित्रक-हरीतकी, महालक्ष्मी विलास रस, च्‍यवनप्राश अवलेह, द्राक्षारिष्‍ट, धनवंतरा गुटिका, भृंगराजासव, सुवर्णमालिनी वसंत, मधुमालीनी वसंत और वसंत कुसुमाकर का उल्‍लेख किया गया है।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से क्षय रोग - Ayurveda ke anusar TB
  2. टीबी का आयुर्वेदिक इलाज - Tuberculosis ka ayurvedic ilaj
  3. टीबी की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - TB ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार तपेदिक होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurveda ke anusar Tuberculosis hone par kya kare kya na kare
  5. तपेदिक में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Tuberculosis ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. क्षय रोग की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - TB ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. टीबी के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Tuberculosis ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
टीबी की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद के अनुसार टीबी की बीमारी इस तरह बढ़ती है:

  • धातुक्षय ऊतकों के नुकसान से राजयक्ष्मा।
  • इसमें शरीर का चयापचय निष्क्रिय होने लगता है जिसके कारण मेद (वसा वाले ऊतक), रस (तरल ऊतक, रक्‍त (खून), मम्‍सा (मांसपेशियों) और शुक्र (जनन ऊतक) धातु को नुकसान पहुंचता है।
  • इसके कारण ओजक्षय (इम्‍युनिटी को हानि) होता है जिससे रोगजनक सूक्ष्मजीवों द्वारा संक्रमण उत्‍पन्‍न होता है एवं राजयक्ष्मा की बीमारी होती है।
  • स्‍नेहन कर्म
    • इस चिकित्‍सा में जड़ी बूटियों को गर्म औषधीय तेल में मिलाकर मालिश की जाती है।
    • ये शरीर की छोटी नाडियों में भी मौजूद अमा को पतला कर करने में मदद करता है।
       
  • स्‍वेदन कर्म
    • स्‍वेदन में विभिन्‍न तरीकों से शरीर पर पसीना लाया जाता है। ये अमा को साफ करने और दोष को संतुलित करने में मदद करता है। (और पढ़ें - वात, पित्त और कफ असंतुलन के लक्षण)
    • स्‍वेदन के निम्‍न प्रकार हैं:
      • तप (सिकाई): इसमें धातु की वस्‍तु, गर्म कपड़े या गर्म हाथों से शरीर को गरमाई दी जाती है।
      • उपनाह: इस चिकित्‍सा में बढ़े हुए दोष के आधार पर चुनी गई जड़ी बूटियों से गर्म पुल्टिस का इस्‍तेमाल किया जाता है।
      • ऊष्‍मा: ऊष्‍मा में दोष के आधार पर जड़ी बूटियों को चुन कर उन्‍हें उबाला जाता है और फिर गर्म भाप दी जाती है। (और पढ़ें - भाप लेने का तरीका)
      • धारा: इसमें शरीर पर गर्म औषधीय तरल को तेज धारा में डाला जाता है।
         
  • वमन कर्म
    • वमन चिकित्‍सा में औषधीय जड़ी बूटियों और उनके मिश्रणों की मदद से उल्‍टी करवाई जाती है जिससे शरीर से अमा को साफ करने एवं दोष को संतुलित करने में मदद मिलती है। ये नाडियों और छाती से बलगम को भी साफ करता है। (और पढ़ें - बलगम का आयुर्वेदिक इलाज)
    • वमन में वामक और वमनोपेग, दो प्रकार की जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है। उल्‍टी लाने के लिए वमक जड़ी बूटियों का प्रयोग किया जाता है। वमक जड़ी बूटियों के प्रभाव को बढ़ाने के लिए वमनोपेग जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • गर्भवती महिलाओं, बच्‍चों, कमजोर और दुर्बल व्‍यक्‍ति को वमन की सलाह नहीं दी जाती है।
       
  • विरेचन कर्म
    • विरेचन कर्म में मल त्‍याग के लिए रेचक जड़ी बूटियों का सेवन करवाया जाता है। वमन की तरह विरेचन भी अमा को साफ करता है। विरेचन में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में सेन्‍ना, एलोवेराऔर रूबर्ब शामिल हैं।
    • ये पित्ताशय, लिवर और छोटी आंत से बढ़े हुए पित्त को हटाने में मदद करता है। चूंकि, विरेचन कर्म से शरीर में जमा कफ भी साफ होता है इसलिए कफ रोगों को नियंत्रित करने में भी विरेचन उपयोगी है। वात विकारों में विरेचन की सलाह नहीं दी जाती है।
    • हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्‍सक के निर्देशन एवं देख-रेख में ही विरेचन कर्म करना चाहिए। कमजोरी होने पर विरेचन कर्म से मरीज़ को नुकसान पहुंच सकता है।

टीबी के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • विदरिकंड
    • विदरिकंड प्रजनन और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें शक्‍तिवर्द्धक, पोषक, ऊर्जादायक और सूजन-रोधी गुण होते हैं।
    • विदरिकंड से कमजोर और दुर्बल व्‍यक्‍ति को वजन बढ़ाने में मदद मिलती है। चूंकि, टीबी के प्रमुख लक्षणों में वजन कम होना भी शामिल है इसलिए टीबी के मरीज़ों की सेहत में सुधार लाने के लिए ये जड़ी बूटी अत्‍यंत प्रभावी है। विदरिकंड का इस्‍तेमाल लीवर बढ़ने और प्‍लीहा को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है।
    • इस जड़ी बूटी को अवलेह, काढ़े, पाउडर और दूध के काढ़े के रूप में ले सकते हैं। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने की विधि)
       
  • ब्राह्मी
    • ब्राह्मी तंत्रिका, परिसंचरण, श्‍वसन, प्रजनन, पाचन और उत्‍सर्जन प्रणाली पर कार्य करती है। इसके अनेक चिकित्‍सकीय प्रभाव होते हैं।
    • ये दिमाग को शक्‍ति प्रदान कर मस्तिष्‍क की कोशिकाओं और नसों को ऊर्जा देती है। ब्राह्मी प्रतिरक्षा प्रणाली को साफ और पोषण प्रदान करती है। ये खून को भी साफ करती है। इसलिए टीबी के सामान्‍य लक्षणों जैसे कि खांसी, बुखार और ब्रोंकाइटिस को नियंत्रित करने में ब्राह्मी उपयोगी है। (और पढ़ें - खून साफ करने के घरेलू उपाय)
    • ब्राह्मी का इस्‍तेमाल घी, तेल, पाउडर, अर्क और काढ़े के रूप में किया जा सकता है।
       
  • रसोनम
    • रसोनम, श्‍वसन, तंत्रिका, परिसंचरण, प्रजनन और पाचन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • इसमें कृमिनाशक, परजीवीरोधी, बैक्‍टीरियल-रोधी, ऐंठन-रोधी, वायुनाशक (पेट फूलने से राहत), कफ-निस्‍सारक (बलगम खत्‍म करने वाले), ऊर्जादायक और उत्तेजित करने वाले गुण होते हैं। लहसुन नाडियों को खोलकर अमा को खून और लसीका में से हटाने में मदद करता है।
    • ये हड्डियों और नसों के ऊतकों को ताकत, फेफड़ों और ब्रोंकाई में माइक्रोबियल संक्रमण से बचाव एवं इलाज तथा वात बुखार के इलाज में सहायक है। अत: टीबी को नियंत्रित करने में लहसुन बहुत ज्‍यादा असरकारी होता है।
    • रसोनमक का इस्‍तेमाल अर्क, पाउडर, रस और औषधीय तेल के रूप में किया जाता है। लहसुन के अर्क को उबालना नहीं चाहिए।
       
  • यष्टिमधु
    • यष्टिमधु वात, पित्त और कफ को साफ करती है। ये शरीर से अत्‍यधिक कफ को हटाने में भी मदद करती है। ये उम्र बढ़ाती है और शरीर को मजबूती प्रदान करती है। इसमें औषधीय गुण मौजूद होते हैं और इसी वजह से टीबी के इलाज में यष्टिमधु में असरकारी साबित होती है।
    • ये ब्‍लीडिंग (खून बहने), गले में परेशानी, ब्रोंकाइटिस और थकान को दूर करने में उपयोगी है। आमतौर पर इसका इस्‍तेमाल पाउडर के रूप में किया जाता है।
       
  • अश्‍वगंधा
    • अश्‍वगंधा तंत्रिका, श्‍वसन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। ये प्रतिरक्षा तंत्र को बढ़ाने, सूजन-रोधी और ऊर्जादायक गुणों से युक्‍त होती है।
    • हज़ारों वर्षों से आयुर्वेद में इस जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल तनाव को कम करने और औषधि के रूप में किया जा रहा है।
    • इम्‍युनिटी बढ़ाने वाली औषधि च्‍यवनप्राश अवलेह में अश्‍वगंधा का इस्‍तेमाल किया जाता है। ये औषधि जुकाम, खांसी और टीबी को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • टीबी के लक्षणों से राहत दिलाने में अश्‍वगंधा मदद करती है इसलिए टीबी के इलाज में इस जड़ी बूटी का उपयोग किया जाता है। इम्‍युनिटी बढ़ाने के कारण अश्‍वगंधा माइक्रोबियल संक्रमण से भी बचाती है।
       
  • गुडूची
    • गुडूची प्रमुख तौर पर परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली कुछ चुनिंदा जड़ी बूटियों में शामिल गुडूची तीनों दोषों को साफ कर सकती है। कभी-कभी शिलाजीत के साथ इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • टीबी के अलावा गुडूची पित्त रोगों, पीलिया, मलेरिया के बुखार, कब्ज, गठिया और पुरानी रुमेटिज्‍म की समस्‍या को नियंत्रित करने में उपयोगी है। ये शरीर से अमा को साफ करने, बुखार, सूजन एवं दर्द को कम करने का काम भी करती है।
    • पाउडर और अर्क के रूप में गुडूची का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

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टीबी के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • एलादि चूर्ण
    • एलादि चूर्ण में इलायची, दालचीनी की छाल और पत्तियां, नागकेसर, मारीच (काली मिर्च), पिप्पलीऔर शुंथि (सोंठ) मौजूद है।
    • इसके पाचक, कृमिनाशक और सूजन-रोधी गुण होते हैं। ये अपच, खांसी, ब्रोंकाइटिस, गले और छाती में सूजन एवं भूख कम लगने की समस्‍या को दूर करती है। ये सभी लक्षण टीबी की बीमारी से जुड़े हैं और इसी वजह से एलादि चूर्ण टीबी को नियंत्रित करने में लाभकारी है। (और पढ़ें - भूख न लगने के कारण)
       
  • सितोपलादि चूर्ण
    • इस पाउडर को वंशलोचन, दालचीनी, पिप्‍पली और इलायची से तैयार किया गया है।
    • इसमें सूजन-रोधी, पाचन, कफ-निस्‍सारक, संक्रमण-रोधी, वायुनाशक और नींद लाने वाले गुण होते हैं जो कि टीबी को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। (और पढ़ें - अच्छी गहरी नींद आने के घरेलू उपाय)
    • खांसी और ब्रोंकाइटिस के इलाज में घी या शहद के साथ इसका इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • चित्रक हरीतकी
    • चित्रक हरीतकी को चित्रक, आमलकी, गुडूची, दशमूल, गुड़, हरीतकी, त्रिकटु (पिप्‍पली, शुंथि, मारीच का मिश्रण), दालचीनी की छाल और पत्तियां, इलायची एवं शहद से तैयार किया गया है।
    • इस औषधि में पाचक, वायुनाशक और कफ-निस्‍सारक गुण होते हैं। ये भूख बढ़ाती है और टीबी, खांसी एवं पेट के निचले हिस्‍से में आ रही किसी रुकावट को दूर करने में मदद करती है।
       
  • महालक्ष्‍मी विलास रस
    • महालक्ष्‍मी विलास रस को अभ्रक, ताम्र (तांबा), वंग, टिन, मौक्‍तिक (मोती), सुवर्णा (सोना), रौप्‍य (चांदी) और नाग (सीसा) की भस्‍म (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) से तैयार किया गया है।
    • ये मिश्रण टीबी के मरीज़ों में इम्‍युनिटी और ताकत बढ़ाने में मदद करता है जिससे टीबी के लक्षणों में सुधार आता है और आगे संक्रमण होने का खतरा भी नहीं रहता है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ)
    • ये वात दोष के खराब होने के कारण हुए सिरदर्द के इलाज में उपयोगी है। कान बजना और वात रोगों के कारण आई कमजोरी को भी दूर करने में महालक्ष्‍मी विलास रस असरकारी है।
       
  • च्‍यवनप्राश अवलेह
    • इसमें ताजा और पका हुआ आंवला, शहद, तिल का तेल, चीनी, कैंडी, दशमूल, पिप्‍पली, गुडूची, हरीतकी, मुस्‍ता, पुनर्नवा और इलायची मौजूद है। ताजा फल उपलब्‍ध न होने पर सूखे फलों का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
    • ये हल्‍का कफ-निस्‍सारक है और टीबी के सबसे सामान्‍य लक्षण कमजोरी एवं खांसी को नियंत्रित करने में उपयेागी है। ये ब्रोंकाइटिस और अस्‍थमा के इलाज में भी च्‍यवनप्राश अवलेह असरकारी होता है।
       
  • द्राक्षारिष्‍ट
    • द्राक्षारिष्‍ट में त्‍वक (दालचीनी), इला (इलायची), तेज पत्ता, खजूर, चंदन, लवांग (लौंग), पिप्‍पली, शहद, किशमिश और चीनी जैसी विभिन्‍न सामग्रियां मौजूद हैं।
    • इस औषधि को शरीर एवं ह्रदय के लिए शक्‍तिवर्द्धक तथा इसका हल्‍के रेचक के रूप में इस्‍तेमाल किया जा सकता है। इसमें भूख बढ़ाने वाले और पाचक गुण होते हैं। टीबी में कम भूख लगने की समस्‍या को द्राक्षारिष्‍ट से नियंत्रित किया जा सकता है। ये बवासीर के इलाज में भी असरकारी है।
       
  • धनवंतरा गुटिका
    • धनवंतरा गुटिका में शुंथि, चिरायता, इलायची, हरीतकी, मकोय की जड़ी और जीरे जैसी सामग्रियां मौजूद हैं।
    • ह्रदय के लिए टॉनिक के रूप में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है। इसमें कफ-निस्‍सारक गुण होते हैं एवं यह टीबी, खांसी तथा ब्रोंकाइटिस को नियंत्रित करने में मददगार है। इसके अलावा ये कमजोर दिल और निमोनिया के इलाज में भी उपयोगी है।
       
  • भृंगराजासव
    • इस आयुर्वेदिक मिश्रण में भृंगराज, हरीतकी, पिप्‍पली, त्‍वक, तेजपत्र, नागकेसर, लवांग, इलायची, जातिफल (जायफल) और गुड़ मौजूद है।
    • इसमें पोषक, शक्‍तिवर्द्धक, बैक्‍टीरियल-रोधी और ऊर्जादायक गुण होते हैं। ये चयापचय और शरीर के ऊतकों में पाचन अग्‍नि को ठीक कर सकती है।
    • ये औषधि प्रतिरक्षा तंत्र के कार्य को उत्तेजित और उसमें सुधार भी लाती है।
       
  • मधुमालीनी वसंत
    • इस मिश्रण में विभिन्‍न सामग्रियां जैसे कि सिंगरिफ, काली मिर्च, नींबू का रस और सफेद मिर्च शामिल है।
    • खांसी, लंबे समय से हो रहे बुखार और टीबी को नियंत्रित करने में मधुमालीनी वसंत उपयोगी है।
       
  • वसंत कुसुमाकर
    • वसंत कुसुमाकर में विभिन्‍न सामग्रियां जैसे कि सुवर्ण, रौप्‍य, वंग, नाग, अभ्रक और मौक्‍तिक की भस्‍म एवं हरीद्रा (हल्दी), वासा (अडूसा) तथा चंदन का काढ़ा मौजूद है।
    • ये वात विकारों, खांसी, डायबिटीज और टीबी को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
       
  • सुवर्णमालिनी वसंत
    • इसके प्रमुख अवयवों में स्‍वर्ण भस्‍म, मौक्‍तिक भस्‍म, मारीच और नींबू का रस शामिल है।
    • ये टीबी, खांसी और लंबे समय से हो रहे बुखार को नियंत्रित करने में असरकारी है।
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क्‍या करें

  • अपने आहार में चावल की लाल किस्‍म (वैरायटी) और जौ के बीजों को शामिल करें।
  • अनार, आमलकी और आम आदि फल खाएं।
  • बकरी का दूध और सुगंधित पानी पीएं।
  • कम मात्रा में वाइन का सेवन करें लेकिन इसके इस्‍तेमाल के दौरान सावधानी रखना जरूरी है।
  • बकरी, हिरण, केकड़ा और जंगली जानवरों का मांस खाएं।

क्‍या न करें

एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में टीबी के इलाज में भृंगराजासव के प्रभाव और महत्‍व के बारे में बताया गया है। इस अध्‍ययन के अनुसार ये मिश्रण डॉट्स उपचार (डायरेक्‍ट ऑब्‍जर्व ट्रीटमेंट, शॉर्ट कोर्स कीमोथेरेपी) थेरेपी में सहायक है।

(और पढ़ें - टीबी हो तो क्या करे)

इससे इम्‍युनिटी बढ़ती है और हानिकारक सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा मिलती है। डॉट्स थेरेपी के लिवर पर पड़ने वाले दुष्‍प्रभाव से भी भृंगराजासव बचाता है। अध्‍ययन में कहा गया है कि डॉट्स ट्रीटमेंट के साथ भृंगराजासव देने से टीबी के मरीजों की हालत में सुधार आया।

(और पढ़ें - टीबी रोग के घरेलू उपाय)

अनुभवी चिकित्‍सक की देखरेख में आयुर्वेदिक उपचार और औषधियों का सेवन सुरक्षित होता है। हालांकि, व्‍यक्‍ति की प्रकृति के आधार पर कुछ सावधानियां बरतनी भी जरूरी हैं। उदाहरण के तौर पर-

  • कमजोर व्‍यक्‍ति में शोधन चिकित्‍सा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • ब्राह्मी की अधिक खुराक के कारण सिरदर्द और खुजली हो सकती है इसलिए इसका इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
  • हाइपरएसिडिटी और अत्‍यधिक पित्त की स्थिति में रसोनम का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • यष्टिमधु थेरेपी की वजह से सोडियम और वॉटर रिटेंशन हो सकता है। इसे 6 सप्‍ताह से अधिक समय तक लेने पर हाइपरटेंशन की समस्‍या भी हो सकती है।

(और पढ़ें - टीबी टेस्ट कैसे होता है)

टीबी एक संक्रामक रोग है जो बड़ी आसानी से हवा के ज़रिए फैल सकता है। टीबी बेसिली के एंटीबायोटिक प्रतिरोधी होने के कारण पारंपरिक दवाओं से इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक कर पाना मुश्किल होता है।

आयुर्वेद में अत्‍यंत प्राचीन औषधियों और उपचारों का उल्‍लेख किया गया है जो टीबी के मरीज़ की स्थिति को बेहतर करने में मदद कर सकते हैं। टीबी के इलाज में डॉट्स थेरेपी का इस्‍तेमाल किया जाता है लेकिन इसके कुछ दुष्‍प्रभाव भी होते हैं।

नई चिकित्‍साओं के सहायक के रूप में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्‍तेमाल किया जा सकता है। इनकी मदद से नई चिकित्‍साओं को ज्‍यादा तेजी से असर करने में मदद मिलती है। डॉट्स के साथ देने पर आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां लिवर को किसी भी तरह के नुकसान से बचाती हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां और औषधियां प्रतिरक्षा तंत्र के कार्य में भी सुधार लाती हैं और शरीर को मजबूती प्रदान करती हैं जिससे मरीज को जल्‍दी ठीक होने में मदद मिलती है।

(और पढ़ें - टीबी में क्या खाना चाहिए)

Dr. Harshaprabha Katole

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आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

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Dr Prashant Kumar

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Dr Rudra Gosai

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1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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