तमिलनाडु ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) यानी क्षयरोग को रोक पाने में नाकाम साबित हो रहा है। एक ताजा रिसर्च के मुताबिक, तमिलनाडु के सरकारी अस्पतालों में महज पांच प्रतिशत टीबी से जुड़े मरीजों को रोग की पहचान के बाद तुरंत इलाज मिल पाता है। वहीं, इसकी तुलना में प्राइवेट अस्पतालों में यह प्रक्रिया तेजी से पूरी की जाती है। यहां पर मरीजों की बीमारी का समय पर पता चल जाता है, जिससे उनका इलाज भी वक्त रहते शुरू हो जाता है। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी पत्रिका, 'जर्नल ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड इंटरनेशनल हेल्थ' में छपे रिसर्च में ये चौकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इस बारे में सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इलाज में कमी के चलते टीबी का संक्रमण फैलने का खतरा अधिक होगा।
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कैसे की गई रिसर्च
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, रिसर्च के तहत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की एक शाखा एनआईटीआर के शोधकर्ताओं ने टीबी के जुड़े 455 मरीजों से बात की। इनमें से लगभग 40 प्रतिशत मरीजों ने बताया कि बीमारी की पहचान के लिए उन्हें दो तरह की जांच प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। वहीं, एक तिहाई मरीजों को तीन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा। इसके अलावा, 16 प्रतिशत मरीज ऐसे थे जिनके टीबी का पता करने के लिए चार चरणों समय का लगा और साढ़े तीन फीसदी मरीज ऐसे थे पांचवीं स्टेज तक भेजा गया।
सरकारी अस्पताल में सुविधाएं बेहद खराब
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ट्यूबरकुलोसिस रिसर्च के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि सरकारी अस्पतालो में दी जाने वाली डायग्नोसिस की सुविधाएं बेहद खराब हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, डायग्नोसिस के तहत टीबी के पांच प्रतिशत से भी कम रोगियों को पहली बार में ही बीमारी का पता चल सका। वहीं, दूसरी ओर जो लोग प्राइवेट अस्पताल में बीमारी की पहचान के लिए पहुंचे, उन्हें टीबी के बारे में पता चलने की संभावना अधिक थी। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि उपचार के परिणामों में कमी से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
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क्या है टीबी की बीमारी?
ट्यूबरकुलोसिस या तपेदिक एक संक्रामक रोग होता है, जो आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है। किसी एक ही संक्रामक बीमारी के मुकाबले टीबी दुनियाभर में दूसरा सबसे बड़ा जानलेवा रोग है। टीबी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में हवा के द्वारा फैलता है। मतलब हवा में सांस लेने से भी टीबी का बैक्टीरिया दूसरे व्यक्ति के शरीर में जा सकता है। इसे पल्मोनरी टीबी (Pulmonary TB) कहते हैं।
टीबी के लक्षण
टीबी शरीर के कई भागों में हो सकता है। इसके लक्षणों में खांसी होना, थकान और वजन घटना शामिल है। टीबी आमतौर पर उपचार के साथ ठीक हो जाता है, जिसमें एंटीबायोटिक दवाओं के कोर्स शामिल हैं। इसका उपचार अक्सर सफल ही होता है, लेकिन इलाज में 6-9 महीने लग सकते हैं और कुछ स्थितियों में दो साल तक का समय भी लग सकता है।
टीबी से संबंधित समस्याएं तथा जटिलताएं
जानकार बताते हैं कि अगर टीवी का इलाज ना किया जाए तो यह मरीज के लिए घातक स्थिति पैदा कर सकता है। सक्रिय टीबी को अगर बिना इलाज किए छोड़ दिया जाए तो यह फेफड़ों को प्रभावित करता है और खून द्वारा शरीर के अन्य अंगों में भी फैल सकता है।
रीढ़ की हड्डी में दर्द- पीठ में दर्द और अकड़न आदि टीबी की सामान्य जटिलाताओं में से एक है।
लीवर और किडनी संबंधी समस्याएं- लीवर व किडनी खून से अशुद्धियों और अपशिष्ट पदार्थों को फिल्टर करने में मदद करते हैं। अगर ट्यूबरकुलोसिस लीवर या किडनी को प्रभावित कर देता है तो ये ठीक से काम नहीं कर पाते।
हृदय संबंधी विकार– कुछ दुर्लभ मामलों में टीबी, दिल के आस-पास के ऊतकों (टिशूज) को प्रभावित करता है। इससे ऊतकों में सूजन होने लगती है और तरल पदार्थ संग्रह होने लगता है। इसके कारण प्रभावी रूप से दिल की पंप करने की क्षमता पर असर पड़ता है। इस स्थिति को कार्डियक टैंपोनेड कहा जाता है, जो घातक स्थिति होती है।
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भारत में क्या है टीबी के मामलों की स्थिति?
भारत में टीबी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। एक अनुमान के मुताबिक, यहां टीबी की बीमारी से हर साल दो लाख 20 हजार लोगों की मौत होती है। साल 2011 में जारी किए गए डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर टीबी से जुड़े जहां 96 लाख मामले सामने आए थे, जबकि 22 लाख मामले अकेले भारत में पाए गए थे। वहीं, मार्च 2019 में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़े भी बेहद चौकाने वाले हैं। ये बताते हैं कि केवल साल 2018 में टीबी के 21 लाख 50 हजार (2.15 मिलियन) नए मामलों का पता चला था।