वृद्धदारु या विधारा (आर्गिरिया स्पेसिओसा) एक क्रीपर प्लांट (बेल की तरह दीवारों के सहारे चढ़ने वाला या जमीन पर फैलने वाला पौधा) है, जो भारतीय उपमहाद्वीप और दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। इस पौधे के फूल बैंगनी रंग के होते हैं, जिन्हें अक्सर सजाने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत के कुछ हिस्सों विशेष रूप से बिहार और असम में इसका सब्जी के रूप में भी सेवन किया जाता है।
आयुर्वेद में, विधारा को रसायन या एडेप्टोजेन (गैर विषैले पौधे जो सभी प्रकार के तनाव को दूर करने में शरीर की मदद करते हैं) के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग विभिन्न बीमारियों जैसे न्यूरोलॉजिकल और गठिया संबंधी विकार से लेकर एनोरेक्सिया, मधुमेह और हाई बीपी तक के उपचार के लिए किया जाता है। इस पौधे की जड़ें भी स्वास्थ्य के लिहाज से काफी फायदेमंद होती है। वास्तव में, वृद्धदारु या विधारा आयुर्वेदिक चिकित्सा में इस्तेमाल किए जाने वाला एक महत्वपूर्ण घटक है।
हालांकि, वृद्धदारु के बीजों में लाइसरगामाइड (एलएसए) नामक एक हैलुसिनोजेनिक (भ्रम पैदा करने वाला) यौगिक होता है। यदि इनकी खुराक सही मात्रा में ना ली गई तो इन बीजों का सेवन घातक हो सकता है। इस जड़ी बूटी को राजस्थान के कुछ हिस्सों में गर्भनिरोधक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भले ही यह कई तरह से फायदेमंद हो लेकिन वृद्धदारु का किसी भी रूप में उपयोग करने से पहले अनुभवी आयुर्वेदिक डॉक्टर से परामर्श करना उचित होगा।
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विधारा के बारे में कुछ सामान्य जानकारी:
- वानस्पतिक नाम: आर्गिरिया स्पेसिओसा, आर्गिरिया नर्वोसा
- फैमिलीः कॉन्वौल्वूलेसिया
- सामान्य नाम: एलीफेंट क्रीपर, वूली मॉर्निंग ग्लोरी, हवायन बेबी वुडरोज, सिल्की एलीफेंट ग्लोरी, वृद्धदारु, विधारा
- हिंदी नाम: समंदर-का-पट, घाव-पत्ता, विधारा, समुंदरसोखा
- संस्कृत नाम: समुद्रसोषा, अंतकोतरापुष्पी, वृद्धादारका या वृधा दारका, छगलानघिरी
- पौधे के इस्तेमाल किए जाने वाले हिस्सेः बीज, पत्तियां, जड़ें और फूल
- भौगोलिक वितरण: वृद्धदारु उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छी तरह से पनपता व बढ़ता है। यह मूल रूप से भारत में पाया जाता है, लेकिन इसकी खेती मध्य और दक्षिण अमेरिका, पूर्वी एशिया और कैरिबियन क्षेत्रों में भी की जाती है। भारत में, वृद्धदारु आमतौर पर दक्षिण भारत के साथ-साथ ओडिसा, बिहार और असम जैसे राज्यों में पाया जाता है।