एचआईवी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को प्रभावित करता है जिससे शरीर पर कई संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है और इस वजह से मरीज़ को ठीक होने में अधिक समय लगता है। आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया की लगभग 23 मिलियन आबादी ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) संक्रमण से ग्रस्त है। इनमें से लगभग 8.1 मिलियन लोग इम्यून डेफिशियंसी सिंड्रोम (एड्स) से पीडित हैं।
आयुर्वेद के अनुसार एड्स एक "प्रोग्रेसिव वेस्टिंग रोग" (धीरे-धीरे शरीर को खत्म करने वाला रोग) है जो कि शरीर में आठवे धातु ओजस को खत्म करने लगता है। ओजस धातु को शरीर के सभी धातुओं का मूलतत्व कहा जाता है क्योंकि यह सभी धातुओं के उत्कृष्ट हिस्से से बना है और ये प्रतिरक्षा प्रणाली को सहयोग प्रदान करता है। ओजस धातु के क्षतिग्रस्त और कम होने पर शरीर की प्रतिरक्षा संरचना कमजोर पड़ने लगती है और ऐसे में शरीर पर कई संक्रमणों और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
एलोपैथी के अनुसार, संक्रमण से लड़ने के दौरान सफेद रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार सीडी4 पैथोजन को ढूंढकर उसे नष्ट कर देता है। हालांकि, एचआईवी इंफेक्शन रोग प्रतिरोधक क्षमता को नुकसान पहुंचाकर सीडी4 कोशिकाओं की संख्या घटा देता है। इन सीडी4 कोशिकाओं के 200 से कम होने पर (स्वस्थ शरीर में इसकी संख्या 500 या इससे ज्यादा होती है) व्यक्ति को एड्स की बीमारी घेर लेती है।
आयुर्वेद में आमलकी (भारतीय करौंदा), अश्वगंधा (भारतीय जिनसेंग) गुडुची और शतावरी जैसी कुछ जड़ी-बूटियों को प्रतिरोधक क्षमता बेहतर करने और प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए असरकारी बताया गया है। एड्स को नियंत्रित करने के लिए इन जड़ी-बूटियों का प्रयोग कर सकते हैं। संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर करने में च्यवनप्राश अवलेह भी प्रभावकारी पाया गया है।
आयुर्वेद सदवृत्त (अच्छी जीवनशैली) को बढ़ावा देता है जिसमें तनाव से दूर रहना, साफ-सफाई का ध्यान रखना, अपने साथी के प्रति ईमानदार रहना और एचआईवी को नियंत्रित रखने के लिए अध्यात्मिक जीवन व्यतीत करना शामिल है। खून चढ़ाने से पहले रक्त के नमूने चैक करवाएं, संक्रमित सुईं का इस्तेमाल और असुरक्षित यौन संबंध बनाने से बचें और गर्भावस्था के दौरान एचआईवी टेस्ट जरूर करवाएं ताकि इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके।
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