कोरोना वायरस संकट की वजह से कई गंभीर बीमारियों से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हुए हैं। इनमें ट्यूबरकुलोसिस भी शामिल है। खबर है कि पिछले साल की तुलना में इस साल जनवरी से लेकर जून महीने के बीच टीबी के मामलों से जुड़ी रिपोर्टिंग में 3.4 लाख की गिरावट आई है। प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने विशेषज्ञों के हवाले बताया है कि इस गिरावट के लिए टीबी के मरीजों को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं में आई कमी जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि हेल्थ सर्विसेज में आई यह कमी कोविड-19 की वजह से महीनों से लागू लॉकडाउन के कारण है। उन्होंने चिंता जताई है कि टीबी के नियंत्रण से जुड़े अभियानों व कार्यक्रमों को भविष्य में और बड़ी मुश्किलों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
(और पढ़ें - डीसीजीआई ने इस अंतरराष्ट्रीय कंपनी को भारत में टीबी की दवा सप्लाई करने की अनुमति दी, इन शर्तों के साथ)
नेशनल टीबी एलिमिनेशन प्रोग्राम के आंकड़ों के आधार पर बताया गया है कि साल 2019 में जनवरी से जून महीने के बीच ट्यूबरकुलोसिस के 12.50 मामले सामने आए थे। वहीं, इस साल इसी अवधि में नोटिफाई किए गए टीबी मामलों की संख्या 9.15 लाख रही है। इसे सरकार ने भी नोटिस में लिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय की टीबी डिविजन के प्रमुख और अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. केएस सचदेवा का कहना है कि अभी यह दावा करना जल्दबाजी होगी कि लॉकडाउन से जुड़े महीनों के दौरान टीबी के कितने मामले रिपोर्ट नहीं हो पाए हैं। लेकिन वे इतना जरूर कहते हैं, 'देशभर में टीबी नोटिफिकेशन की दरें घटी हैं।' हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ पदाधिकारी ने यह भी कहा कि हालात सामान्य होने पर टीबी के मामले एक बार फिर रिपोर्ट होने लगेंगे।
(और पढ़ें - 2019 में टीबी से करीब 80 हजार लोगों की मौत, कोविड-19 संकट की वजह से हजारों अतिरिक्त मौतों की बन सकता है वजह)
इंडियन जर्नल ऑफ ट्यूबरकुलोसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पहले लॉकडाउन के शुरुआती तीन हफ्तों में देश में हर हफ्ते दर्ज होने वाले टीबी के मामलों में 75 प्रतिशत तक की कमी आई थी। इसका सीधा कारण यही है कि लॉकडाउन और कोरोना वायरस के डर से टीबी के मरीज घरों से निकलकर केमिस्ट, डीओटीएस सेंटर और डॉक्टरों के पास जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे। मिसाल के लिए, मुंबई स्थित हिंदुजा अस्पताल में टीबी से जुड़ी ओपीडी सर्विस में 85 प्रतिशत तक की कमी आई है। अप्रैल 2019 में यहां 32 हजार लोग अपने स्वास्थ्य का चेकअप कराने आए थे। लेकिन अप्रैल 2020 में यानी लॉकडाउन की घोषणा के बाद यह संख्या 4,800 रह गई। जानकार इसके लिए टीबी से जुड़ी सेवाओं और सुविधाओं में आई कमी को जिम्मेदार मानते हैं, जिसका सीधा संबंध लॉकडाउन से है।