इम्यूनोथेरेपी उपचार का ऐसा तरीका है, जिसमें रोग को नियंत्रित करने के लिए या यूं कहें किसी बीमारी से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय किया जाता है। एक्टिव इम्यूनोथेरेपी एक प्रकार की इम्यूनोथेरेपी है, जिसका उद्देश्य प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रोत्साहित करना है। कैंसर इम्यूनोथेरेपी का उपयोग या तो तब किया जाता है जब कैंसर के उपचार के अन्य तौर-तरीके (जैसे सर्जरी, कीमोथेरेपी आदि) असर नहीं करते हैं या फिर इसे अतिरिक्त उपचार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। कैंसर इम्यूनोथेरेपी के कई तरीके जैसे इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, एडॉप्टिव टी सेल ट्रांसफर, कैंसर वैक्सीन, इम्युनोमोड्यूलेटर और ऑनकोलिटिक वायरस थेरेपी उपलब्ध हैं। हालांकि, यह तरीका चिकित्सकीय रूप से मान्यताप्राप्त है, लेकिन इसके कई दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं।

(और पढ़ें - कैंसर मरीजों में इम्यूनोथेरेपी रेस्पॉन्स को बेहतर करने की दवा)

  1. इम्यूनोथेरेपी के प्रकार - Types of immunotherapy in Hindi
  2. कैंसर या एक्टिव इम्यूनोथेरेपी कैसे काम करता है? - How cancer or activated immunotherapy works in hindi
  3. कैंसर इम्यूनोथेरेपी के लिए संकेत - Indications for cancer immunotherapy in Hindi
  4. इम्यूनोथेरेपी का उपयोग कैसे होता है - How immunotherapy is administered in Hindi
  5. कैंसर इम्यूनोथेरेपी के फायदे - Benefits of cancer immunotherapy in Hindi
  6. कैंसर इम्यूनोथेरेपी के साइड इफेक्ट - Side effects of cancer immunotherapy in Hindi
इम्यूनोथेरेपी के फायदे और नुकसान के डॉक्टर

इम्यूनोथेरेपी को जैविक चिकित्सा (बायोलॉजिकल थेरेपी) के रूप में भी जाना जाता है। यह एक प्रकार का नैदानिक उपचार है जो रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय (रोग और उसकी प्रगति को नियंत्रित करना) करता है। कैंसर जैसे रोगों में जहां शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है, वहां एक्टिव इम्यूनोथेरेपी की मदद ली जा सकती है। एलर्जी और स्वप्रतिरक्षी बीमारियों जैसे प्रो-इंफ्लेमेटरी स्थितियां हाइपरएक्टिव इम्यूनिटी को दबाता है ऐसे में प्रतिरक्षा को अतिसक्रिय करना बहुत जरूरी होता है। इम्यूनोथेरेपी को इम्यूनोमॉड्यूलेटरी ड्रग्स (प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने वाली दवाएं) और वैक्सीन (कैंसर थेरेपी का हिस्सा) के साथ भी लिए जाने का सुझाव दिया जाता है।

मोटे तौर पर, इम्यूनोथेरेपी दो प्रकार की होती है - सप्रेसन इम्यूनोथेरेपी और एक्टिवेशन इम्यूनोथेरेपी।

सप्रेसन इम्यूनोथेरेपी : जब इम्यून रिस्पॉन्स यानी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बढ़ती है तो इससे सूजन हो जाती है जिसे नियंत्रित करने के लिए इम्यूनोथेरेपी की जाती है। इसके अलावा ऑर्गन ट्रांसप्लांंट के मामलों में रिजेक्शन (जब शरीर नए अंग को नहीं अपनाता है) को रोकने के लिए भी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को कम करने की जरूरत होती है, जिसके लिए इम्यूनोथेरेपी की मदद ली जाती है। फिलहाल, जिन स्थितियों में इस प्रकार की इम्यूनोथेरेपी का उपयोग किया जाता है, उनमें शामिल हैं :

आम इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं में शामिल हैं :

एक्टिवेशन इम्यूनोथेरेपी (या कैंसर इम्यूनोथेरेपी): पारंपरिक रूप से कैंसर का इलाज कैंसर कोशिकाओं को मार कर या ट्यूमर को सर्जरी के जरिये निकालकर किया जाता है। लेकिन एक्टिवेशन इम्यूनोथेरेपी कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए शरीर की कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय (एक्टिवेट) करती है। कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय और नियोजित करने के लिए कई तरीके विकसित किए गए हैं, जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं :

  • इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर : यह ऐसे ड्रग्स हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली में स्वाभाविक रूप से मौजूद कुछ चेकपॉइंट को अतिसक्रिय होने से रोकती हैं। बता दें, प्रतिरक्षा प्रणाली में बहुत से ऐसे पॉइंट्स होते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए रेगुलेटर्स (संचालक) की तरह काम करते हैं।

पेम्ब्रोलिजुमैब (कीट्रूडा) और निवोलुमैब (ओपडिवो) जैसी कुछ दवाइयां इम्यून चेकपॉइंट को ब्लॉक कर सकती हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ लड़ने के लिए अधिक मज​बूत बना सकती हैं। यहां पर यह भी जानने लायक है कि प्रतिरक्षा प्रणाली का सामान्य से कम एक्टिव होना या ज्यादा एक्टिव होना दोनों शरीर के लिए नकारात्मक प्रभाव छोड़ सकते हैं।

  • मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज : जब कोई वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो प्राकृतिक रूप से एंटीबॉडीज बनते हैं जो कि कुछ एंटीजन (शरीर के बाहर के रोगाणु) को बाइंड (एक तरह से उनकी पहचान करके उन्हें प्रभावहीन बनाना) करती हैं। कैंसर के मामले में, ट्यूमर कोशिकाओं में आनुवंशिक रूप से कुछ बदलाव होते हैं यही वजह है कि एंटीबॉडीज इन एंटीजन को बाइंड नहीं कर पाते हैं। (और पढ़ें - कैट क्यू वायरस संक्रमण क्या है)

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी लैब में तैयार किए गए प्रोटीन हैं, जो हानिकारक रोगजनकों (जैसे वायरस) से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता की नकल करते हैं। यह प्रोटीन कैंसर के मामले में इम्यूनोथेरेपी ड्रग्स के रूप में कार्य करते हैं। यह ड्रग्स ट्यूमर की कोशिकाओं को पहचानकर उन्हें प्रभावहीन करने का काम करती हैं, लेकिन एंटीबॉडीज के लिए यह दवाइयां भी किसी एंटीजन की तरह प्रतीत होती हैं। जब मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कैंसर कोशिकाओं को बाइंड करती हैं तो प्रतिरक्षा प्रणाली इन एंटीबॉडीज पर हमला कर सकती है।

कुछ मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज में कीमोथेरेपी वाली दवाई भी जुड़ी होती हैं, जो कुछ कैंसर कोशिकाओं को मारने में मदद करती हैं। कैंसर इम्यूनोथेरेपी में उपयोग किए जाने वाले मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के उदाहरणों में रिटक्सिमैब (rituximab) शामिल है। यह एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है जो बी-कोशिकाओं के सीडी20 रिसेप्टर्स और कुछ ऐसे कैंसर कोशिकाओं को बाइंड करता है, जो ल्यूकेमिया और लिम्फोमा जैसी बीमारियों में उपयोग किया जाता है।

  • एडॉप्टिव टी-सेल ट्रांसफर : वैज्ञानिक ट्यूमर के कुछ हिस्से को निकालते हैं और उसमें टी-कोशिकाओं को ढूंढकर उसे अलग करते हैं। इसके बाद वे आनुवंशिक रूप से उन टी-कोशिकाओं में जीन पर काम करते हैं जो उन्हें और भी मजबूत बनाता है और उन्हें रोगी में आईवी (नसों के जरिये) माध्यम से प्रेषित कर दिया जाता है। इस प्रकार की थेरेपी के उदाहरण में 'कायमेरिक एंटीजन रिसेप्टिर' (सीएआर) थेरेपी शामिल है, जिसका उपयोग बच्चों में एक्यूट ल्यूकेमिया के लिए किया जाता है।
  • इम्युनोमोड्यूलेटर : ये दवाएं शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती हैं। जबकि इम्यूनोसप्रेसेरिव ड्रग्स का इस्तेमाल ऑटोइम्यून बीमारियों, एलर्जी और ऑर्गन ट्रांसप्लांट के बाद किया जाता है। जो दवाइयां इम्यून सिस्टम के प्रतिक्रिया को बढ़ाती हैं उनका इस्तेमाल कैंसर के इलाज में किया जाता है। इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर के अलावा, इम्यूनोथेरेपी एजेंटों की इस श्रेणी में साइटोकिन्स, इंटरल्यूकिन और इंटरफेरॉन शामिल हैं। यह दवाइयां केंसर कोशिकाओं के लिए मरीजों की प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को और बढ़ाने में मदद करती हैं। 
  • कैंसर वैक्सीन : वायरल इंफेक्शन (जैसे हेपेटाइटिस बी से लिवर कैंसर हो सकता है) या संक्रमण की वजह से होने वाले कुछ कैंसर को टीके द्वारा रोका जा सकता है। उदाहरण के लिए ह्यूमन पैपिलोमावायरस इंफेक्शन जिसकी वजह से गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर, ओरल कैविटी कैंसर, गुदा कैंसर और लिंग का कैंसर हो सकता है, को एचपीवी वैक्सीन द्वारा रोका जा सकता है। इसके अलावा, टीबी की रोकथाम के लिए उपयोग किए जाने वाले बीसीजी वैक्सीन का उपयोग मूत्राशय के कैंसर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए किया जाता है। कैंसर उपचार के ऐसे टीके विकसित किए जा रहे हैं, जो प्रतिरक्षा के विभिन्न पहलुओं को लक्षित करते हैं और विशिष्ट कैंसर के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को बेहतर बनाते हैं। सिपुल्यूसेल (Sipuleucel) प्रोस्टेट कैंसर में इस्तेमाल होने वाला कैंसर उपचार का एक टीका है।
  • ऑनकोलिटिक वायरस : ऑनकोलिटिक वायरस एक वायरस है जो अधिमानतः कैंसर कोशिकाओं को संक्रमित करता है और उन्हें मारता है। यह वायरल कणों का ज्यादा मात्रा में उत्पादन करता है और ट्यूमर को पूरी तरह से खत्म करता है। क्लिनिकल उपयोग के लिए पहला ऑनकोलिटिक वायरस थेरेपी टैलिमोजेन (वी-टीईसी) था और इसका उपयोग मेलेनोमा (त्वचा कैंसर) उपचार में किया जाता है।

(और पढ़ें - त्वचा के कैंसर की सर्जरी कैसे की जाती है)

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प्रतिरक्षा प्रणाली के सामान्य कार्य के हिस्से के रूप में, शरीर के इम्यून सिस्टम वाली कोशिकाएं फॉरेन बॉडी (कोई भी ऐसी बाहरी चीज जो शरीर में अटक या फंस जाए) और असामान्य कोशिकाओं पर हमला करती हैं। जब ट्यूमर का विकास होता है, तब भी ठीक ऐसा ही होता है।

हमारा शरीर इन कैंसर कोशिकाओं की फॉरेन बॉडी के रूप में पहचान करता है, प्रतिरक्षा कोशिकाएं शरीर को सुरक्षित रखने के लिए इन पर हमला करती हैं।

ये कोशिकाएं अक्सर मरीजों में कैंसर कोशिकाओं और उनके आस-पास पाई जाते हैं और इन्हें 'ट्यूमर इंफिल्ट्रेटिंग लिम्फोसाइट्स' (TILs) कहा जाता है। जिन रोगियों के ट्यूमर में अधिक मात्रा में टीआईएल होते हैं, वे कैंसर के खिलाफ मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया करते हैं। हालांकि, कैंसर कोशिकाओं में कुछ ऐसे आनुवंशिक बदलाव होते हैं, जिनकी वजह से रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली उन्हें पहचान नहीं पाती है या यह बदलाव प्रतिरक्षा कोशिकाओं को बंद कर सकते हैं। इस प्रकार, कैंसर के खिलाफ अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने और एक्टिव करने के लिए प्रॉपर ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है।

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एक्टिवेशन इम्यूनोथेरेपी से विभिन्न कैंसर में चिकित्सीय लाभ देखे गए हैं। इसके कुछ उदाहरणों में शामिल हैं :

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इम्यूनोथेरेपी ड्रग्स को निम्नलिखित तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है

  • आईवी : इसमें कैंसर इम्यूनोथेरेपी दवा को सीधे नसों के जरिए दिया जाता है।
  • ओरल : इसमें कैंसर इम्यूनोथेरेपी दवाएं टैबलेट या कैप्सूल के रूप में दी जाती हैं, जिन्हें निगल लिया जाता है।
  • टॉपिकल : इसमें कैंसर इम्यूनोथेरेपी दवा को क्रीम के रूप में तैयार किया जाता है, जिसे त्वचा पर लगाया जाता है।
  • इंट्रावेसिकल : इसमें कैंसर इम्यूनोथेरेपी एजेंट को मूत्राशय के कैंसर में सीधे मूत्राशय में इंजेक्ट किया जाता है।

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कैंसर के उपचार के लिए एक्टिवेशन इम्यूनोथेरेपी के कुछ लाभ नीचे बताए गए हैं :

  • यदि कैंसर के उपचार में सर्जरी, कीमोथेरेपी असर नहीं करती है तो ऐसे में इम्यूनोथेरेपी प्रभावी साबित हो सकती है। उदाहरण के लिए, कुछ कैंसर (जैसे त्वचा कैंसर) रेडिएशन या कीमोथेरेपी के प्रति अच्छी तरह से प्रतिक्रिया नहीं करते हैं, लेकिन इम्यूनोथेरेपी एजेंटों के साथ अच्छी प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं।
  • ऐसे मामलों में जहां कैंसर अन्य उपचार के प्रति सही प्रतिक्रिया नहीं कर रहा होता है, वहां इम्यूनोथेरेपी की मदद से उपचार के मुख्य तरीके को बेहतर ढंग से काम करने में मदद मिल सकती है।
  • इम्यूनोथेरेपी के दुष्प्रभाव बहुत कम होते हैं, क्योंकि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को लक्षित करती है न कि कैंसर कोशिकाओं को।

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कैंसर इम्यूनोथेरेपी के दो सबसे आम दुष्प्रभाव नीचे बताए गए हैं :

कैंसर इम्यूनोथेरेपी के अन्य दुष्प्रभाव :

नशीली दवाओं से संबंधित दुष्प्रभाव

  • इम्यून चेकप्वॉइंट इनहिबिटर के कुछ सामान्य दुष्प्रभावों में शामिल हैं :
    • दस्त
    • न्यूमोनाइटिस (फेफड़ों की सूजन)
    • चकत्ते और खुजली
    • कुछ हार्मोन लेवल से जुड़ी समस्याएं
    • किडनी में इंफेक्शन
  • मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के साथ कैंसर इम्यूनोथेरेपी के कुछ सामान्य दुष्प्रभावों में शामिल हैं :
    • एलर्जी रिएक्शन जैसे पित्ती या खुजली
    • फ्लू जैसे लक्षण जैसे ठंड लगना, थकान, बुखार और मांसपेशियों में दर्द और दर्द
    • जी मिचलाना
    • उल्टी
    • दस्त
    • चकत्ते
    • लो ब्लड प्रेशर
  • एडॉप्टिव टी-सेल ट्रांसफर थेरेपी से जुड़े कुछ सामान्य दुष्प्रभाव : सीएआर टी-सेल ट्रांसफर थेरेपी से साइटोकिन रिलीज सिंड्रोम हो सकता है। इसके संकेत और लक्षणों में शामिल हैं :
    • बुखार
    • जी मिचलाना
    • सिरदर्द
    • चकत्ते
    • लो ब्लड प्रेशर
    • सांस लेने में कठिनाई
  • कैंसर इम्यूनोथेरेपी इम्युनोमोड्यूलेटर के कुछ सामान्य दुष्प्रभावों में शामिल हैं :
    • बहुत तेज नींद आना (और पढ़ें - ज्यादा नींद आने का इलाज क्या है)
    • थकान
    • कब्ज
    • रक्त कोशिकाओं में कमी
    • न्यूरोपैथी (तंत्रिका वाले हिस्से में दर्द और प्रभावित हिस्से में महसूस करने की क्षमता में कमी)
  • कैंसर के इलाज के टीकों के कुछ संभावित दुष्प्रभाव :
    • फ्लू जैसे लक्षण : बुखार, ठंड लगना, कमजोरी, चक्कर आना, मतली, उल्टी, मांसपेशियों या जोड़ों में दर्द, थकान, सिरदर्द, सांस लेने में परेशानी, लो या हाई बीपी, 
    • एलर्जी
  • टैलिमोगीन या वी-टीईसी से जुड़े कुछ संभावित दुष्प्रभाव, यह मेलेनोमा (त्वचा कैंसर) के इलाज के लिए मान्यताप्राप्त ऑनकोलिटिक वायरस थेरेपी है :
    • ट्यूमर लिम्फ सिंड्रोम : जैसे-जैसे कैंसर कोशिकाएं मरती हैं और ट्यूमर मास टूटता जाता है, वैसे-वैसे घटक खून में फैलते हैं। इसकी वजह से इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन होता है और विशेष रूप से किडनी, हृदय और लिवर को नुकसान हो सकता है।
    • हर्पीज वायरस संक्रमण जिसकी वजह से मुंह, जननांगों, उंगलियों या कानों के आसपास दर्द, जलन, सिहरन या झनझनाहट होती है। इसके अलावा आंखों में दर्द, संवेदनशीलता, आंखों से कीचड़ आना, धुंधला दिखाई देना, हाथ और पैरों में कमजोरी, अत्यधिक थकान, सुस्ती और भ्रम भी शामिल हैं।

(और पढ़ें - थकान कम करने के उपाय)

Dr. Abhas Kumar

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प्रतिरक्षा विज्ञान
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संदर्भ

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