इम्यूनोथेरेपी को जैविक चिकित्सा (बायोलॉजिकल थेरेपी) के रूप में भी जाना जाता है। यह एक प्रकार का नैदानिक उपचार है जो रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय (रोग और उसकी प्रगति को नियंत्रित करना) करता है। कैंसर जैसे रोगों में जहां शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है, वहां एक्टिव इम्यूनोथेरेपी की मदद ली जा सकती है। एलर्जी और स्वप्रतिरक्षी बीमारियों जैसे प्रो-इंफ्लेमेटरी स्थितियां हाइपरएक्टिव इम्यूनिटी को दबाता है ऐसे में प्रतिरक्षा को अतिसक्रिय करना बहुत जरूरी होता है। इम्यूनोथेरेपी को इम्यूनोमॉड्यूलेटरी ड्रग्स (प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने वाली दवाएं) और वैक्सीन (कैंसर थेरेपी का हिस्सा) के साथ भी लिए जाने का सुझाव दिया जाता है।
मोटे तौर पर, इम्यूनोथेरेपी दो प्रकार की होती है - सप्रेसन इम्यूनोथेरेपी और एक्टिवेशन इम्यूनोथेरेपी।
सप्रेसन इम्यूनोथेरेपी : जब इम्यून रिस्पॉन्स यानी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बढ़ती है तो इससे सूजन हो जाती है जिसे नियंत्रित करने के लिए इम्यूनोथेरेपी की जाती है। इसके अलावा ऑर्गन ट्रांसप्लांंट के मामलों में रिजेक्शन (जब शरीर नए अंग को नहीं अपनाता है) को रोकने के लिए भी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को कम करने की जरूरत होती है, जिसके लिए इम्यूनोथेरेपी की मदद ली जाती है। फिलहाल, जिन स्थितियों में इस प्रकार की इम्यूनोथेरेपी का उपयोग किया जाता है, उनमें शामिल हैं :
आम इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं में शामिल हैं :
एक्टिवेशन इम्यूनोथेरेपी (या कैंसर इम्यूनोथेरेपी): पारंपरिक रूप से कैंसर का इलाज कैंसर कोशिकाओं को मार कर या ट्यूमर को सर्जरी के जरिये निकालकर किया जाता है। लेकिन एक्टिवेशन इम्यूनोथेरेपी कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए शरीर की कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय (एक्टिवेट) करती है। कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय और नियोजित करने के लिए कई तरीके विकसित किए गए हैं, जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं :
- इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर : यह ऐसे ड्रग्स हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली में स्वाभाविक रूप से मौजूद कुछ चेकपॉइंट को अतिसक्रिय होने से रोकती हैं। बता दें, प्रतिरक्षा प्रणाली में बहुत से ऐसे पॉइंट्स होते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए रेगुलेटर्स (संचालक) की तरह काम करते हैं।
पेम्ब्रोलिजुमैब (कीट्रूडा) और निवोलुमैब (ओपडिवो) जैसी कुछ दवाइयां इम्यून चेकपॉइंट को ब्लॉक कर सकती हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ लड़ने के लिए अधिक मजबूत बना सकती हैं। यहां पर यह भी जानने लायक है कि प्रतिरक्षा प्रणाली का सामान्य से कम एक्टिव होना या ज्यादा एक्टिव होना दोनों शरीर के लिए नकारात्मक प्रभाव छोड़ सकते हैं।
- मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज : जब कोई वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो प्राकृतिक रूप से एंटीबॉडीज बनते हैं जो कि कुछ एंटीजन (शरीर के बाहर के रोगाणु) को बाइंड (एक तरह से उनकी पहचान करके उन्हें प्रभावहीन बनाना) करती हैं। कैंसर के मामले में, ट्यूमर कोशिकाओं में आनुवंशिक रूप से कुछ बदलाव होते हैं यही वजह है कि एंटीबॉडीज इन एंटीजन को बाइंड नहीं कर पाते हैं। (और पढ़ें - कैट क्यू वायरस संक्रमण क्या है)
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी लैब में तैयार किए गए प्रोटीन हैं, जो हानिकारक रोगजनकों (जैसे वायरस) से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता की नकल करते हैं। यह प्रोटीन कैंसर के मामले में इम्यूनोथेरेपी ड्रग्स के रूप में कार्य करते हैं। यह ड्रग्स ट्यूमर की कोशिकाओं को पहचानकर उन्हें प्रभावहीन करने का काम करती हैं, लेकिन एंटीबॉडीज के लिए यह दवाइयां भी किसी एंटीजन की तरह प्रतीत होती हैं। जब मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज कैंसर कोशिकाओं को बाइंड करती हैं तो प्रतिरक्षा प्रणाली इन एंटीबॉडीज पर हमला कर सकती है।
कुछ मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज में कीमोथेरेपी वाली दवाई भी जुड़ी होती हैं, जो कुछ कैंसर कोशिकाओं को मारने में मदद करती हैं। कैंसर इम्यूनोथेरेपी में उपयोग किए जाने वाले मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के उदाहरणों में रिटक्सिमैब (rituximab) शामिल है। यह एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है जो बी-कोशिकाओं के सीडी20 रिसेप्टर्स और कुछ ऐसे कैंसर कोशिकाओं को बाइंड करता है, जो ल्यूकेमिया और लिम्फोमा जैसी बीमारियों में उपयोग किया जाता है।
- एडॉप्टिव टी-सेल ट्रांसफर : वैज्ञानिक ट्यूमर के कुछ हिस्से को निकालते हैं और उसमें टी-कोशिकाओं को ढूंढकर उसे अलग करते हैं। इसके बाद वे आनुवंशिक रूप से उन टी-कोशिकाओं में जीन पर काम करते हैं जो उन्हें और भी मजबूत बनाता है और उन्हें रोगी में आईवी (नसों के जरिये) माध्यम से प्रेषित कर दिया जाता है। इस प्रकार की थेरेपी के उदाहरण में 'कायमेरिक एंटीजन रिसेप्टिर' (सीएआर) थेरेपी शामिल है, जिसका उपयोग बच्चों में एक्यूट ल्यूकेमिया के लिए किया जाता है।
- इम्युनोमोड्यूलेटर : ये दवाएं शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती हैं। जबकि इम्यूनोसप्रेसेरिव ड्रग्स का इस्तेमाल ऑटोइम्यून बीमारियों, एलर्जी और ऑर्गन ट्रांसप्लांट के बाद किया जाता है। जो दवाइयां इम्यून सिस्टम के प्रतिक्रिया को बढ़ाती हैं उनका इस्तेमाल कैंसर के इलाज में किया जाता है। इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर के अलावा, इम्यूनोथेरेपी एजेंटों की इस श्रेणी में साइटोकिन्स, इंटरल्यूकिन और इंटरफेरॉन शामिल हैं। यह दवाइयां केंसर कोशिकाओं के लिए मरीजों की प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को और बढ़ाने में मदद करती हैं।
- कैंसर वैक्सीन : वायरल इंफेक्शन (जैसे हेपेटाइटिस बी से लिवर कैंसर हो सकता है) या संक्रमण की वजह से होने वाले कुछ कैंसर को टीके द्वारा रोका जा सकता है। उदाहरण के लिए ह्यूमन पैपिलोमावायरस इंफेक्शन जिसकी वजह से गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर, ओरल कैविटी कैंसर, गुदा कैंसर और लिंग का कैंसर हो सकता है, को एचपीवी वैक्सीन द्वारा रोका जा सकता है। इसके अलावा, टीबी की रोकथाम के लिए उपयोग किए जाने वाले बीसीजी वैक्सीन का उपयोग मूत्राशय के कैंसर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए किया जाता है। कैंसर उपचार के ऐसे टीके विकसित किए जा रहे हैं, जो प्रतिरक्षा के विभिन्न पहलुओं को लक्षित करते हैं और विशिष्ट कैंसर के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को बेहतर बनाते हैं। सिपुल्यूसेल (Sipuleucel) प्रोस्टेट कैंसर में इस्तेमाल होने वाला कैंसर उपचार का एक टीका है।
- ऑनकोलिटिक वायरस : ऑनकोलिटिक वायरस एक वायरस है जो अधिमानतः कैंसर कोशिकाओं को संक्रमित करता है और उन्हें मारता है। यह वायरल कणों का ज्यादा मात्रा में उत्पादन करता है और ट्यूमर को पूरी तरह से खत्म करता है। क्लिनिकल उपयोग के लिए पहला ऑनकोलिटिक वायरस थेरेपी टैलिमोजेन (वी-टीईसी) था और इसका उपयोग मेलेनोमा (त्वचा कैंसर) उपचार में किया जाता है।
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