ऑटोइम्यून बीमारी वह होती है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस, बैक्टीरिया या अन्य रोगाणुओं पर हमला करने के बजाय शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करती है. ऑटोइम्यून बीमारियां कई प्रकार की होती हैं. इसमें ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस भी शामिल है. यह बीमारी तब होता है, जब प्रतिरक्षा प्रणाली लिवर सेल्स पर ही हमला करना शुरू कर देती है. इस स्थिति में लिवर सेल्स को नुकसान पहुंचने लगता है.
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आज इस लेख में आप ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में विस्तार से जानेंगे -
(और पढ़ें - हेपेटाइटिस का आयुर्वेदिक इलाज)
- ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस क्या है?
- ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के लक्षण
- ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के कारण
- ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का इलाज
- सारांश
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस क्या है?
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस एक क्रोनिक लिवर रोग है. यह रोग तब होता है, जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली लिवर सेल्स पर हमला करती है. यह दुर्लभ, लेकिन गंभीर बीमारी है. कई मामलों में ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस लिवर सिरोसिस या लिवर फेलियर का कारण बन सकती है, लेकिन यह संक्रामक नहीं होती है. आपको बता दें कि ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस टाइप 1 और टाइप 2 दो प्रकार का होता है -
- टाइप 1 ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का सबसे आम प्रकार है. वैसे तो यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है, लेकिन युवाओं में इसके मामले अधिक देखने को मिलते हैं. आपको बता दें कि जिन लोगों को टाइप 1 ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस होता है, उनमें से आधे से अधिक लोगों को कोई-न-कोई ऑटोइम्यून डिसऑर्डर होता है.
- टाइप 2 ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के अधिक मामले बच्चों में देखने को मिलते हैं. इस प्रकार के ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का इलाज करना काफी मुश्किल होता है.
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ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के लक्षण
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस रोग प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है. इसके लक्षण हल्के से लेकर गंभीर हो सकते हैं. एआईएच के लक्षण तब नजर आने लगते हैं, जब लिवर खराब होना शुरू हो जाता है. ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के लक्षण इस प्रकार हैं -
- थकान और कमजोरी
- उल्टी या मतली होना
- जोड़ों में दर्द महसूस होना
- त्वचा और आंखों का रंग पीला होना
- पेशाब का रंग गहरा होना
- लगातार वजन कम होना
- पेट में सूजन और दर्द महसूस होना
- पैरों में सूजन होना
- त्वचा में जलन और चकत्ते होना
- अनियमित मासिक धर्म
- मल का रंग हल्का होना
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ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के कारण
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिक का कोई सटीक कारण स्पष्ट नहीं है. ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस तब होता है, जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली लिवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है. इस स्थिति में प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस, बैक्टीरिया या जीवाणुओं पर हमला करने के बजाय लिवर सेल्स को अपना शिकार बनाती है. इसकी वजह से लिवर में सूजन हो जाती है यानी ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस में लिवर की कोशिकाओं को गंभीर नुकसान हो सकता है. इसके अलावा, कुछ जोखिम कारकों की वजह से भी ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस हो सकता है -
दवाइयों का सेवन करना
वैसे तो इस रोग का कोई ज्ञात कारण नहीं है, लेकिन कुछ मामलों में ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस कुछ दवाइयों का सेवन करने से भी हो सकता है. इस स्थिति में एआईएच दवाइयों से संबंधित हो सकता है.
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आनुवंशिक
अगर किसी के माता-पिता या दादा-दादी को ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस रोग है, तो यह बीमारी उन्हें भी होने की आशंका रहती है. इस स्थिति में यह रोग अपने माता-पिता या दादा-दादी से विरासत में मिल सकता है.
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महिलाओं को
वैसे तो ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस पुरुष और महिला दोनों में विकसित हो सकता है, लेकिन महिलाओं में एआईएच होने की आशंका अधिक होती है. इसलिए, अगर परिवार में किसी व्यक्ति को यह रोग है, तो उसे अपना अधिक ख्याल रखने की जरूरत होती है.
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ऑटोइम्यून बीमारियां
जिन लोगों को पहले से ही कोई ऑटोइम्यून रोग है, उनमें ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस होने की आशंका अधिक होती है. सीलिएक रोग, रूमेटाइड अर्थराइटिस व हाइपरथायरायडिज्म जैसी बीमारियां ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के जोखिम को बढ़ा सकती हैं.
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ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का इलाज
ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस एक क्रोनिक बीमारी है. इस रोग का कोई इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाइयों के माध्यम से इसके लक्षणों को बढ़ने से रोका जा सकता है. इसके साथ ही एआईएच का इलाज करने से लिवर को ठीक करने में कुछ हद तक मदद मिल सकती है. एआईएच के इलाज के लिए आमतौर पर इन दवाइयों का उपयोग किया जा सकता है -
इम्यूनोसप्रेसेंट दवाइयां
इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाइयां ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का इलाज करने में असरदार साबित हो सकती हैं. ये दवाइयां प्रतिरक्षा प्रणाली को लिवर पर हमला करने से रोक सकती हैं. इस रोग का इलाज करने के लिए 6-मर्केप्टोप्यूरिन और अजथियोप्रीन जैसे कॉमन इम्यूनोसप्रेसेंट दवाइयां ले सकते हैं. इन दवाइयों को लेने से शरीर को संक्रमण से लड़ने की क्षमता मिल सकती है.
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कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाइयां
कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाइयां भी ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का इलाज कर सकती हैं. ये दवाइयां लिवर की सूजन को कम कर सकती हैं. साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली को लिवर पर हमला करने से भी रोकती हैं. एआईएच के लिए ओरल प्रेडनिसोन कॉर्टिकोस्टेरॉइड का इस्तेमाल किया जाता है. ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस होने पर डॉक्टर इस दवा को कम-से-कम 18 से 24 महीन तक लेने की सलाह दे सकते हैं, लेकिन डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा और ऑस्टियोपोरोसिस वाले लोगों में इस दवा के कुछ नुकसान हो सकते हैं.
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लिवर ट्रांसप्लांट
जब ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का मामला गंभीर हो जाता है, तो इस स्थिति में लिवर को ट्रांसप्लांट करने की जरूरत पड़ सकती है. इस प्रक्रिया के दौरान लिवर को पूरी तरह से हटा दिया जाता है. फिर नए लिवर को लगाया जाता है, लेकिन सफल लिवर ट्रांसप्लांट के बाद भी व्यक्ति में दोबारा ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस होने का जोखिम बना रहता है.
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सारांश
अधिकतर हेपेटाइटिस वायरस के कारण होते हैं, लेकिन ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस किसी वायरस के कारण नहीं होता है, बल्कि यह तब होता है, जब शरीर का इम्यून सिस्टम लिवर सेल्स पर हमला करती है. इससे लिवर कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है. ऐसा क्यों होता है, इसका कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है. इसकी वजह से लिवर सिरोसिस या लिवर फेलियर हो सकता है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह रोग अधिक देखने को मिलता है. यह बीमारी बेहद गंभीर होती है. इसलिए, अगर किसी को इसका कोई लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से कंसल्ट करें.
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