लिवर में होने वाली सूजन को हेपेटाइटिस के नाम से जाना जाता है। ये बीमारी हेपेटाइटिस वायरसके संक्रमण के कारण होती है। वायरल हेपेटाइटिस के प्रमुख पांच प्रकार हैं जिनमें हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई शामिल हैं।
हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस बी बासी या दूषित भोजन एवं पानी के सेवन के कारण होता है जबकि हेपेटाइटिस सी और हेपेटाइटिस डी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौंन संबंध बनाने या संक्रमित शरीर के फ्लूइड (तरल पदार्थ) के सीधे संपर्क में आने के कारण फैलता है।
हेपेटाइटिस बी भी संक्रमित व्यक्ति के यौन संपर्क में आने से फैलता है। हालांकि, जन्म के दौरान मां से शिशु के अंदर भी संक्रमित खून द्वारा ये वायरस फैल सकता है। इसके अलावा टैटू और एक्यूपंक्चर से भी इस बीमारी का खतरा रहता है। शुरुआत में हेपेटाइटिस बी का कोई लक्षण सामने नहीं आता है लेकिन 8 से 10 साल के अंदर ये समस्या लीवर सिरोसिस या लिवर कैंसर का रूप ले सकती है।
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शराब के सेवन, किसी अन्य संक्रमण और ऑटोइम्यून रोगों (जिसमें इम्यून सिस्टम स्वयं शरीर पर हमला कर देता है) के कारण हेपेटाइटिस रोग हो सकता है। अधिक मात्रा में, रोज़ या लंबे समय तक किसी दवा का सेवन करने पर भी लिवर में सूजन की शिकायत हो सकती है।
हेपेटाइटिस को दो भागों - तीव्र और जीर्ण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। तीव्र हेपेटाइटिस 6 माह से कम अवधि तक होता है जबकि जीर्ण हेपेटाइटिस इससे अधिक समय तक रहता है। आमतौर पर हेपेटाइटिस बी और सी जीर्ण हेपेटाइटिस का रूप लेते हैं।
आयुर्वेद में ऐसे उपचार, जड़ी बूटियों और औषधियों का उल्लेख किया गया है जिनका इस्तेमाल लिवर विकारों (जैसे कि हेपेटाइटिस) के इलाज के लिए किया जा सकता है। हेपेटाइटिस के आयुर्वेदिक इलाज में दीपन (भूख बढ़ाना), पाचन (पाचक), स्नेहन (तेल से चिकनाहट लाने की विधि), स्वेदन (पसीना निकालने की विधि), वमन (औषधियों से उल्टी लाने की विधि), विरेचन (दस्त की विधि), बस्ती (एनिमा) और रक्तमोक्षण (रक्त निकालने की विधि) चिकित्सा दी जाती है।
हेपेटाइटिस के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों और औषधियों में कुटकी, कालमेघ, कुमारी (एलोवेरा), पुनर्नवा, काकमाची (मकोय), गुडूची, दारुहरिद्रा, आरोग्यवर्धिनी वटी, कुमारी आसव और पुनर्नवासव शामिल हैं।