जयपाल (Croton Tiglium - क्रोटन टिग्लियम) एक पौधा है जो आयुर्वेद में गंजेपन, स्तंभन दोष, जलोदरता, लंबे समय से चली आ रही कब्ज आदि के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। इसके बीज मुख्य रूप से विरेचक के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। इसलिए इसका नाम परगेटिव (purgation) क्रोटन है। इसे हिंदी में जमालगोटा के रूप में जाना जाता है।
जमालगोटा के पेड़ की ऊंचाई 15-20 फीट होती है जो उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारतीय राज्यों में पाया जाता है। इसके पत्ते 2-4 इंच लंबे, पतले, चिकने और 3 से 5 शिराओं वाले होते हैं। इसका फूल हरा पीला होता है, प्रकृति में 2-3 इंच लंबा होता है। इसका फल 1 इंच लंबा, सफेद और गोल होता है और 3 भागों में बँटा होता है। इसके बीज अंडाकार और भूरे रंग के होते हैं और 0.5 से 0.7 इंच तक लंबे होते हैं। बीज के अंदर लाल भूरे रंग का तेल जैसा पदार्थ होता है। इसके फूलों को गर्मी के मौसम में देखा जाता है और फल सर्दियों के मौसम में दिखाई देते हैं। इस औषधीय पौधे के बीज और उनसे निकलने वाला तेल उपयोग किया जाता है। जमालगोटा स्वाद में तीखा और गुण में रूखा, भारी और तेज होता है। जमालगोटा की तासीर गर्म होती है। गर्म तासीर के कारण इससे शरीर में पित्त बढ़ता है और कफ पतला होता है।
आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल करने से पहले इसके बीज को शुद्ध करने के लिए शोधन (शुद्धि) विधि के बारे में बताया गया है। शुद्धि विधि बीज की विषाक्तता को कम करने के लिए की जाती है। इसके बीज को लेकर दो भागों में काट लिया जाता है फिर बीजों को गाय के दूध में लगभग 3 घंटे के लिए उबाला जाता है और मिट्टी की प्लेट में बीजों को रखकर सूरज की रोशनी में सुखाया जाता है।