सोलर लेंटिगो (उम्र के धब्बे) - Solar Lentigo in Hindi

Dr. Ayush PandeyMBBS,PG Diploma

December 19, 2019

March 24, 2021

सोलर लेंटिगो
सोलर लेंटिगो

शरीर के अन्य अंगों की तरह त्वचा की भी एक उम्र होती है और वह उम्र जाने के बाद त्वचा भी कमजोर पड़ने लग जाती है। जब त्वचा जवान होती है, तो उस पर सूरज की किरणों का कोई असर नहीं पड़ता है। जीवन भर सूरज के संपर्क में आने के कारण होने वाली त्वचा संबंधी समस्याएं अक्सर 55 साल की उम्र के बाद दिखने लग जाती हैं। सूरज के संपर्क में आने वाली समस्याओं में से एक को "सोलर लेंटिगो" के नाम से जाना जाता है। सोलर लेंटिगो आमतौर पर त्वचा के उन हिस्सों पर होते हैं, जो सूरज के संपर्क में अधिक आते हैं। इनमें चेहरा, गर्दन, कमर, पैर, हाथ और कंधे आदि शामिल हैं। हालांकि, सोलर लेंटिगो कोई गंभीर त्वचा रोग नहीं है और ना ही इससे दर्द संबंधी कोई लक्षण होता है। लेकिन आजकल लोग अपनी त्वचा के सौन्दर्य को बचाए रखने के लिए इनका इलाज करवाना जरूरी समझते हैं।

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सोलर लेंटिगो क्या है - What is Solar Lentigo in Hindi

सोलर लेंटिगो त्वचा संबंधी एक ऐसा रोग है, जो त्वचा के धूप के संपर्क में आने पर होता है। इन्हें एज स्पॉट व लिवर स्पॉट भी कहा जाता है। हालांकि, इस रोक का लिवर से कोई संबंध नहीं है। त्वचा पर होने वाले इन धब्बों की आकृति और रंग लिवर के जैसा होता है, इसलिए ही इन्हें लीवर कहा जाता है। ये रोग आमतौर पर व्यक्ति के 55 साल की उम्र के बाद होता है, इसलिए इन्हें एज स्पॉट कहा जाता है। हालांकि, ये युवावस्था में भी हो सकते हैं।

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सोलर लेंटिगो के लक्षण - Solar Lentigo Symptoms in Hindi

एज स्पॉट्स के लक्षण क्या हैं?

त्वचा में ब्राउन या काले रंग (हल्के या गहरे) के धब्बे बनना सोलर लेंटिगो का मुख्य लक्षण है। ये धब्बे सिर्फ त्वचा के रंग को ही प्रभावित करते हैं इनसे खुजली, जलन या अन्य किसी प्रकार की तकलीफ विकसित नहीं होती है। इनमें त्वचा की संरचना में कोई बदलाव भी नहीं होता है और ना ही इनमें सूजन व लालिमा विकसित होती है। लिवर स्पॉट कुछ इस प्रकार से दिखाई देते हैं -

  • ये रंग में ब्राउन, हल्के लाल या हल्के काले रंग के हो सकते हैं।
  • आकृति में ये गोलाकार, अंडाकार, तिकोने या लिवर की आकृति जैसे हो सकते हैं।
  • इनकी आकृति गोलाकार या अंडाकार हो सकती है। कुछ मामलों में इनकी आकृति लिवर अंग के समान देखी जाती है।

डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?

वैसे तो सोलर लेंटिगो से त्वचा को कोई हानि नहीं पहुंचती है, इसलिए इसकी जांच करवाने की आवश्यकता भी नहीं होती है। लेकिन कई प्रकार के स्किन कैंसर जैसे मेलानोमा आदि इसके लक्षणों से मेल खा सकते हैं, इसलिए इसकी जांच करवाना आवश्यक होता है।

यदि आपको निम्न लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो जितना जल्द हो सके डॉक्टर से जांच करवा लें -

  • त्वचा पर काले या ब्राउन रंग के धब्बे होना
  • धब्बे का आकार तेजी से बढ़ना
  • त्वचा पर बने धब्बों की आकृति असामान्य होना
  • किसी धब्बे में असामान्य रंग होना
  • किसी धब्बे के साथ खुजली, लालिमा, जलन, ब्लीडिंग या छूने पर दर्द होना

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सोलर लेंटिगो के कारण व जोखिम कारक - Solar Lentigo Causes & Risk Factors in Hindi

जब शरीर अत्यधिक मात्रा में मेलेनिन बनाने लगता है, तो सोलर लेंटिगो के लक्षण विकसित होने लगते हैं। मेलेनिंग एक स्किन पिगमेंट है, जो त्वचा को रंग प्रदान करता है। जब त्वचा सूरज की किरणों के संपर्क में आती है, तो शरीर त्वचा को पराबैंगनी किरणों (UV Rays) से सुरक्षित रखने के लिए अधिक मात्रा में मेलेनिन बनाने लगता है। शरीर जितना अधिक मेलेनिन बनाता है त्वचा का रंग उतना ही गहरा होता रहता है। जब त्वचा के किसी हिस्से में मेलेनिन जमा हो जाता है, तो उस हिस्से में एज स्पॉट विकसित हो जाते हैं।

लिवर स्पॉट होने का खतरा कब बढ़ता है?

वैसे तो सोलर लेंटिगो के लक्षण किसी भी उम्र के व्यक्ति में देखे जा सकते है। हालांकि, कुछ स्थितियां हैं जो लिवर स्पॉट होने के खतरे को बढ़ा सकते हैं -

सोलर लेंटिगो से बचाव - Prevention of Solar Lentigo in Hindi

जितना हो सके धूप के संपर्क को कम करके, लिवर स्पॉट्स होने की आशंका को कम किया जा सकता है। 20 साल की उम्र से पहले आप जितना अधिक धूप के संपर्क में आते हैं, बाद मे आपकी त्वचा उतनी ही अधिक प्रभावित होती है। यदि आपकी त्वचा पर पहले ही कोई दाग या धब्बा बना हुआ है, तो जितना कम हो सके धूप में जाएं। ऐसा करने से धब्बे का रंग अधिक गहरा हो जाता है और उसका आकार बढ़ने से रोका जा सकता है।

त्वचा को धूप से बचाने के लिए पैंट, लंबी बाजू वाली शर्ट और टॉपी पहनें। यदि आपको लगातार धूप में खड़ा होना है, तो सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें। अधिक धूप के समय बाहर न निकलें, क्योंकि इस समय सूरज की किरणें अधिक हानिकारक होती हैं, इसलिए यदि संभव हो तो दिन में 10 से 3 बजे तक बाहर न निकलें।

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सोलर लेंटिगो का परीक्षण - Diagnosis of Solar Lentigo in Hindi

वैसे तो लिवर स्पॉट पूरी तरह से हानि रहित होते हैं, लेकिन इनके लक्षण शुरुआती स्किन कैंसर से मेल खाते हैं, इसलिए परीक्षण करवाना बहुत जरूरी होता है। यहां तक कि कुछ मामलों में तो एज स्पॉट और मेलेनोमा स्किन कैंसर के बीच अंतर बताना डर्मेटोलॉजिस्ट (त्वचा के विशेषज्ञ डॉक्टर) के लिए भी मुश्किल हो जाता है।

एज स्पॉट का परीक्षण करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले मरीज का विजुअल एक्जामिनेशन करते हैं, जिस दौरान डर्मेटोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है। डर्मेटोस्कोप एक छोटा आवर्धक लेंस होता है, जिसकी मदद से त्वचा की सूक्ष्म असामान्यताओं को भी देखा जा सकता है।

यदि डॉक्टर स्थिति की पुष्टि न कर पाएं, तो हो सकता है कि उन्हें स्किन बायोप्सी करनी पड़े। इसमें प्रभावित त्वचा से ऊतकों का एक छोटा सा टुकड़ा सैंपल के रूप में ले लिया जाता है और उसे लेबोरेटरी में जांचा जाता है। 

सोलर लेंटिगो का इलाज - Solar Lentigo Treatment in Hindi

एज स्पॉट का इलाज कैसे किया जाता है?

सोलर लेंटिगो एक हानिरहित समस्या है, इसलिए इसका इलाज करना जरूरी नहीं समझा जाता है। हालांकि, इसकी जांच करवाना बेहद आवश्यक होता है, क्योंकि कुछ प्रकार के त्वचा कैंसर भी सोलर लेंटिगो जैसे लक्षण दिखा सकता है।

डॉक्टर द्वारा जांच करने के बाद जब सोलर लेंटिगो की पुष्टि हो जाती है, जो इलाज का निर्णय मरीज पर ही छोड़ दिया जाता है। यदि मरीज सौंदर्य दृष्टि से इन धब्बों को हटाना चाहते हैं, तो निम्न तरीके से इलाज किया जा सकता है -

  • दवाएं -
    कुछ प्रकार की ब्लीचिंग क्रीम (हाइड्रोक्विनोन) का इस्तेमाल किया जाता है कभी-कभी इसके साथ रेटिनोइड्स (ट्रेटिनॉइन) और माइल्ड स्टेरॉयड का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। ये दवाएं धीरे-धीरे कई महीनों में एज स्पॉट्स को गायब कर देती हैं। यदि आप ये दवाएं ले रहे हो, तो कम से कम 30 एसपीएफ (Sun protection factor) वाले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।
     
  • लेजर एंड इन्टेंस लाइट थेरेपी -
    इस थेरेपी की मदद से त्वचा की सतह को क्षति पहुंचाए बिना मेलानिन बनाने वाली कोशिकाओं (मेलेनोसाइट्स) को नष्ट कर दिया जाता है। लेजर या इन्टेंस पल्स्ड लाइट थेरेपी को आमतौर पर दो या तीन बार करना पड़ता है।

    इलाज के बाद एज स्पॉट्स के निशान धीरे-धीरे हल्के होकर कुछ हफ्तों या महीनों के भीतर गायब होने लगेंगे। लेजर थेरेपी से आमतौर पर कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं होता। हालांकि, इससे त्वचा के रंग में बदलाव हो सकते हैं। लेजर व इन्टेंस पल्स्ड थेरेपी के बाद, त्वचा को धूप से बचाकर रखना बहुत जरूरी होता है।
     
  • क्रायोथेरेपी (फ्रीजिंग) -
    इस प्रक्रिया में कॉटन लगे एक स्वैब की मदद से तरल नाइट्रोजन को एज स्पॉट्स पर लगाया जाता है, जिसकी मदद से अतिरिक्त पिगमेंट को नष्ट कर दिया जाता है। कई बार क्रायोथेरेपी में नाइट्रोजन की जगह किसी अन्य फ्रीजिंग एजेंट का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। जैसे-जैसे त्वचा ठीक होती है, इसके निशान कम होने लगते हैं। इस प्रक्रिया से कुछ समय के लिए त्वचा प्रभावित भी हो सकती है और थोड़े-बहुत मामलों में इससे त्वचा के किसी हिस्से में स्कार (ठीक हुई खरोंच जैसा निशान) भी पड़ सकता है।
     
  • केमिकल पील -
    इस प्रक्रिया में त्वचा के प्रभावित हिस्से पर एक विशेष प्रकार का एसिड लगाया जाता है, जो एज स्पॉट की त्वचा की ऊपरी सतह को जला देता है। इसके बाद त्वचा पर पपड़ी बनकर उतरने लगती है और उसकी जगह पर एक नई त्वचा बन जाती है। सही रिजल्ट प्राप्त करने के लिए डॉक्टर कुछ अन्य उपचार प्रक्रियाएं भी कर सकते हैं। केमिकल पील के बाद डॉक्टर विशेष रूप से धूप से बचाव रखने की सलाह देते हैं। इस प्रक्रिया के बाद कुछ समय तक त्वचा में लालिमा रह सकती है और कुछ दुर्लभ मामलों में स्थायी रूप से भी त्वचा के रंग में बदलाव हो जाता है।

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संदर्भ

  1. GOYARTS, E., MUIZZUDDIN, N., MAES, D. and GIACOMONI, P.U. (2007) Morphological Changes Associated with Aging Annals of the New York Academy of Sciences, 1119: 32-39
  2. Choi, W., Yin, L., Smuda, C., Batzer, J., Hearing, V.J. and Kolbe, L. (2017), Molecular and histological characterization of age spots Exp Dermatol, 26: 242-248