ऑटोसमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज क्या है?
ऑटोसमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज (एडीपीकेडी) एक जेनेटिक विकार है। इस बीमारी में किडनी में कई सिस्ट बनने लगते हैं। यह किडनी में होने वाले सबसे आम अनुवांशिक विकारों में से एक है। आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण 30 और 40 वर्ष की उम्र के बीच दिखते हैं, लेकिन कई बार 30 वर्ष से पहले या बचपन में भी इसके लक्षण दिख सकते हैं।
बहुत ही कम लोग इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं। प्रत्येक 1,000 में से केवल 1 या 2 व्यक्ति जन्म से ही एडीपीकेडी से ग्रस्त होते हैं। ऑटोसमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज के सामान्य लक्षणों में कमर दर्द और सिरदर्द सबसे सामान्य है।
ऑटोसमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज के लक्षण
एडीपीकेडी के सबसे आम लक्षणों में पीठ और पसलियों व कूल्हों के बीच में दर्द और सिरदर्द शामिल है। इस बीमारी में दर्द कुछ समय के लिए या लगातार, हल्का या गंभीर हो सकता है। एडीपीकेडी से ग्रस्त लोगों में लिवर और अग्नाशय में सिस्ट, मूत्र मार्ग में संक्रमण, दिल की धड़कन अनियमित होना, हाई बीपी, किडनी में पथरी, मस्तिष्क धमनीविस्फार और डाइवर्टिक्युलाइटिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
ऑटोसमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज के कारण
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज के सभी मामलों में से लगभग 90 प्रतिशत मामले जेनेटिक होते हैं। इसका मतलब यह है कि यदि माता या पिता में से किसी एक को यह बीमारी है, तो उनके बच्चे में इसका खतरा 50 फीसदी बढ़ जाता है। यह बीमारी पीकेडी1 और पीकेडी2 नामक जीन में गड़बड़ी के कारण होती है। पीकेडी1 में गड़बड़ी के कारण करीब 85 फीसदी मामले सामने आते हैं जबकि पीकेडी2 के कारण करीब 15 फीसदी मामले सामने आते हैं।
ऑटोसमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का निदान
आमतौर पर एडीपीकेडी का निदान 30 साल से अधिक उम्र के वयस्कों में किया जाता है। इस बीमारी के लक्षण 30 वर्ष की उम्र से पहले शुरू नहीं होते हैं। निदान करने के लिए, डॉक्टर लक्षणों और फैमिली हिस्ट्री (मरीज और उसके परिवार के सदस्यों में रहे विकारों एवं बीमारियों का रिकॉर्ड) के बारे में पूछ सकते हैं। यदि किडनी का आकार बढ़ गया है, तो डॉक्टर आसानी से इस बीमारी का निदान कर सकेंगे। फिलहाल निदान के लिए कुछ टेस्ट भी किए जा सकते हैं, जिनके जरिए सिस्ट के आकार और संख्या का पता लगाया जा सकता है। इन टेस्ट में शामिल हैं:
ऑटोसमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज का इलाज
एडीपीकेडी का अब तक कोई इलाज नहीं मिल पाया है लेकिन इसके उपचार में बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है जिससे मरीज लंबा जीवन जी सके। किडनी के प्रभावित हिस्से में दर्द होने पर दर्द निवारक दवाइयों का उपयोग किया जा सकता है और यदि दर्द लंबे समय से बना हुआ है तो एंटीडिप्रेसेंट (अवसाद-रोधी दवाएं जो दर्द को भी दूर कर सकती हैं) लेने की सलाह दी जाती है। जब यह तरीके दर्द से राहत दिलाने में असफल हो जाते हैं तब इस स्थिति में किडनी में सिस्ट से फ्लूइड (तरल पदार्थ) को निकाला जाता है।
जब किडनी की कार्यक्षमता कम होने लगती है, तो उपचार से किडनी फेल होने की स्थिति से बचने पर काम किया जाता है। इसमें हाई बीपी को नियंत्रित करना, आहार में प्रोटीन न लेना, एसिड (एसिडोसिस) के जमाव को नियंत्रित करना और फॉस्फेट (हाइपरफॉस्फेटिया) के स्तर को बढ़ने से रोकना शामिल है। जब एडीपीकेडी से ग्रस्त व्यक्ति को किडनी फेल की समस्या होती है, तो उसे डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ती है।