जब गैस, तेल, कोयला और लकड़ी जैसे इंधन सही तरीके से नहीं जल पाते हैं तो एक रंगहीन और स्वादहीन गैस उत्पन्न होती है जिसे कार्बन मोनोऑक्साइड कहते हैं। यह गैस चारकोल यानी लकड़ी का कोयला, कार का ईंजन, सिगरेट का धुंआ और शीशा पाइप जलाने पर भी उत्पन्न होती है। कार्बन मोनोऑक्साइड बेहद जहरीली और हानि पहुंचाने वाली गैस है।
वैसी जगहें जो पूरी तरह से बंद हों और जहां हवा आने-जाने (वायु-संचालन) की कोई व्यवस्था न हो, वहां पर कार्बन मोनोऑक्साइड पोइजनिंग या विषाक्तता के मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। यह गैस बेहद जानलेवा मानी जाती है क्योंकि किसी व्यक्ति को पता भी नहीं चलेगा कि वह जिस कमरे में सो रहा है उसमें कार्बन मोनोऑक्साइड गैस भर गई है और वह व्यक्ति नींद से जगने की बजाए धीरे-धीरे मौत के आगोश में चला जाएगा।
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अगर किसी व्यक्ति को कार्बन मोनोऑक्साइड की हल्की या मध्यम श्रेणी की विषाक्तता होती है तो उस व्यक्ति में चक्कर आना, कमजोरी, जी मिचलाना और उल्टी आना, सांस लेने में कठिनाई और बीमार महसूस होना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। हालांकि अगर किसी व्यक्ति को कार्बन मोनोऑक्साइड की बेहद गंभीर विषाक्तता हो जाए तो उस व्यक्ति में और ज्यादा गंभीर लक्षण नजर आते हैं जैसे- आंखों की रोशनी का खत्म हो जाना, मानसिक स्थिति में बदलाव, वर्टिगो, सांस फूलना, हृदय की धड़कन का तेज होना, सीने में दर्द होना, दौरे पड़ना और बेहोशी आदि।
इलाज की बात करें तो कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता होने पर ऑक्सीजन थेरेपी दी जाती है जिसमें मरीज को 100 प्रतिशत ऑक्सीजन दिया जाता है ताकि उसके खून में से कार्बन मोनोऑक्साइड को हटाया जा सके। जिन मरीजों को कार्बन मोनोऑक्साइड की गंभीर विषाक्तता हो जाती है उन्हें हाइपरबैरिक ऑक्सीजन थेरेपी दी जाती है जो प्रभावित व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीजन के लेवल को बढ़ाने में मदद करता है।
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कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता की समस्या किन वजहों से होती है, इसके लक्षण, जोखिम कारक, डायग्नोसिस, इलाज और बचने के उपाय क्या-क्या हैं इस बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें।