कुष्ठ रोग सदियों पुराना एक रोग है जिसको उस समय छुआछूत की बीमारी समझा जाता था। यह अन्य रोगों के विपरीत इसलिए होता है क्योंकि इसमें भय, अज्ञानता और अंधविश्वास से उत्पन्न होने वाला सामाजिक कलंक इस रोग का पता लगाने और इसका इलाज करवाने में बाधा उत्पन्न करता है। कुष्ठ रोग शिशुओं से लेकर बूढ़े लोगों तक किसी भी उम्र में हो सकता है।
यह "माइकोबैक्टीरियम लेप्री" (Mycobacterium leprae) नामक बैक्टीरिया द्वारा फैलाया जाने वाला एक प्रकार का बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है। यह एक लंबे समय तक रहने वाला और लगातार बढ़ने वाला संक्रमण होता है। मुख्य रूप से यह इन्फेक्शन शरीर की नसों, हाथ-पैरों, नाक की परत और ऊपरी श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग नसों को क्षतिग्रस्त कर देता है और त्वचा में घाव एवं मांसपेशियों में कमजोरी पैदा कर देता है।
कुष्ठ रोग अन्य फैलने वाले रोगों व संक्रमणों के मुकाबले काफी कम संक्रामक होता है। कुष्ठ रोग के सबसे मुख्य लक्षण हैं त्वचा पर घाव बनना और तंत्रिका प्रणाली में सनसनी में कमी होना।
इस रोग का परीक्षण काफी सरलता से हो जाता है, डॉक्टर आपके संकेत और लक्षणों के देख कर कुष्ठ रोग का परीक्षण कर सकते हैं। कुष्ठ रोग की रोकथाम करने के लिए रोगी को इस बारे में पूरी शिक्षा देना, जितना जल्दी हो सके इसका परीक्षण और इलाज करना होता है।
आजकल मल्टी-ड्रग थेरेपी का उपयोग करते हुऐ कुष्ठ रोग का इलाज संभव हो गया है। यदि कुष्ठ रोग का इलाज ना किया जाए तो इससे त्वचा में गंभीर कुरूपता आ जाती है और मरीज विकलांग भी हो सकता है। कुष्ठ रोग का इलाज संभव है और जल्दी इलाज करने से मरीज को शारीरिक विकलांगता से बचाया जा सकता है।
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